गुरु कृपा ही अमर कीर्ति प्रदायक है।
महान् शंकराचार्य के चार प्रमुख शिष्य थे; तोटक, हस्तामलक, सुरेश्वर और पद्मपाद| इनमें से पद्मपाद केवल गुरु सेवा का ही इच्छुक था।
वह अपने पाठ पर ध्यान नहीं देता था। वह अध्ययन में पिछड़ा हुआ था इसलिए उसके सहपाठी उसकी खिल्ली उड़ाते थे। किन्तु गुरु के प्रति उसकी गहन भक्ति ने उसकी अभाव पूर्ति कर दी। एक दिन वह अपने गुरु के कपड़े नदी के बीच एक चट्टान पर सुखाते समय नदी के भंवर में आ गया। किन्तु वह चट्टान के ऊपर अति कठिनतापूर्वक पैर जमाये खड़ा रहा।
समय बीतता जा रहा था; गुरु को धुले कपड़ों की आवश्यकता पड़ती अतः पद्मपाद ने उस तूफान युक्त नदी को पार करने का निश्चय किया। उसे ज्ञात था कि गुरु कृपा ही उसकी रक्षा करेगी। ऐसा ही हुआ। जहाँ-जहाँ उसने चरण रखा वहीं-वहीं पुष्ट कमल खिल गया और उसने सारा भार अपनी पंखुड़ियों पर ले लिया। इसी कारण उसका नाम पद्मपाद पड़ा।
गुरु कृपा ने उसे सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने तथा प्राचीन ज्ञान के दैदीप्यमान व्याख्याकार के रूप में चमकने योग्य बनाया।
[स्रोत: चिन्न कथा – भाग-1]
चित्रण: कुमारी सैनी
अंकीकृत: कुमारी साई पवित्रा
(श्री सत्य साई बालविकास भूतपूर्व छात्रा)