कर्म का पवित्र फल
शनिवार को पिता ईश्वर-पूजा में निमग्न थे| उन्होंने अपने पुत्र को बुलाकर उसे एक रुपये के केले लाने को कहा| वह बहुत अच्छा लडका था अतः उसने जाकर केले खरीद लिए|
किंतु मार्ग में उसने देखा कि एक माँ और बेटा बहुत भूखे थे| जब उस भूखे बालक ने केले देखे तो वह उनकी ओर दौड़ा| उसकी भूखी माँ ने जब बेटे को भागते देखा तो वह भी उसके पीछे भागी और उसे पकड़ लिया किंतु वह दोनों क्षुधा पीड़ित थे|
जब इस लडके ने माँ-बेटे को भूख से तड़पते देखा तो सोचा कि केलों को घर ले जानेकी अपेक्षा उन क्षुधितों को दे देना ही श्रेष्ठ था| उसने वह केले माँ-बेटे को दे दिए और फिर उनके लिए पानी लाकर उन्हें पिलाया| माँ व पुत्र की भूख एवं प्यास शांत हो गई और उन्होंने अनेक प्रकार उस लड़के के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की तथा हर्ष के कारण उनके नेत्र सजल हो उठे|
यह युवा विद्यार्थी खाली हाथ अपने घर पहुँचा| जब उसके पिता ने पूछा कि क्या वह केले लाया था तो पुत्र ने कहा ‘हाँ’, जब उसने पूछा – “केले कहाँ है” पुत्र ने उत्तर दिया, “में जो केले लाया था वह पवित्र थे| वह सड़ेंगे नहीं और अदृश्य हैं|”
पुत्र ने उसे बताया कि उसने उन केलों से दो क्षुधित आत्माओं को संतुष्ट किया और वह कर्म का पवित्र फल लेकर ही घर आया था| तब पिता ने अपने पुत्र की योग्यता अनुभव की और उसे आभास हुआ कि उस दिन उसकी सभी प्रार्थनाएं सफल हो गई थीं| उसने सोचा कि उसका जीवन अति पुनीत था क्योंकि उसे ऐसा श्रेष्ठ पुत्र मिला| उसी दिन से पिता को अपने पुत्र से अगाध स्नेह हो गया| पिता व पुत्र का ऐसा गूढ सम्बन्ध आजकल अति दुर्लभ है|
यदि तुम ऐसी भावना का विकास कर सकते हो तो तुम अपनी मातृभूमि को त्यागभूमि और योगभूमि में परिणत कर महान परम्परा स्थापित कर सकते हो|
[स्रोत – चिन्ना कथा, भाग-1]
चित्रण: कुमारी सैनी
अंकीकृत: कुमारी साई पवित्रा
(श्री सत्य साई बालविकास भूतपूर्व छात्रा)