अपने ही तकिए के नीचे
एक बार एक धनवान व्यापारी, एक तीर्थदर्शन को गए। एक चोर ने , उनके पैसे चुराने के मकसद से, उनका पीछा किया।
चोर, व्यापारी का शुभचिंतक साथी बनने का नाटक करता रहा और उनके साथ साथ मित्रता का ढोंग करता रहा। दोनों रात को,एक धर्मशाला में ठहरे।
रात को जब सब गहन निद्रा में डूबे हुए थे, तब चालाक चोर उठ बैठा, और उसने व्यापारी के पैसे हेतु, पूरे कक्ष का कोना-कोना छान मारा,पूर्णरूपेण खोजने पर भी वह असफल रहा।
सुबह उसने व्यापारी को बड़ी ही मित्रतापूर्वक बताया- “यहाँ चोर जरूर होंगे, आशा करता हूँ आपने अपना धन ध्यानपूर्वक रखा होगा”। व्यापारी बोला, “हाँ जरूर, कल रात मैंने अपना धन, तुम्हारे ही तकिए के नीचे रखा था, देखो कितना सुरक्षित है”। कहते कहते उन्होंने पैसों की पोटली को चोर के तकिए के नीचे से निकाला।
ईश्वर उस व्यापारी के समान हैं, उन्होंने आत्मशांति, आत्मज्ञान और पूर्ण सुखशांति के खजाने (धनराशि) को मनुष्य के अन्दर ही, उसके मन में छुपाया है, लेकिन मूर्ख मानव उसे बाहर ढूँढता है।
[स्रोत: चिन्ना कथा, भाग – 1]
चित्रण: कुमारी सैनी
अंकीकृत: कुमारी साई पवित्रा
(श्री सत्य साई बालविकास भूतपूर्व छात्रा)