दैवीय सिद्धांत
“भवानी शंकर का आंतरिक अर्थ” (प्रथम समूह भजन हे शिव शंकर के लिए)
भगवान कहते हैं, “भवानी शंकर’ शिव और शक्ति के अवतार का प्रतीक है। ‘भवानी’ श्रद्धा (लक्ष्य के प्रति ईमानदारी) का प्रतीक है और ‘शंकर’ विश्वास का। जहाँ श्रद्धा का प्रतीक, देवी भवानी होती हैं, तो वहांँ शिव नृत्य करते हैं जो प्रतीक हैं विश्वास का। लक्ष्य और विश्वास की ईमानदारी के बिना जीवन बेकार हो जाता है। लेकिन आज मनुष्य में विश्वास की कमी है, जबकि ‘भवानी’ और ‘शंकर’ दोनों उसमें निवास करते हैं। संपूर्ण सृष्टि अर्धनारीश्वर का सिद्धांत है, जो पुरुष और स्त्री दोनों सिद्धांतों का अवतार है। प्रत्येक मनुष्य को अपने भीतर की दिव्यता को पहचानने का प्रयास करना चाहिए। इससे बढ़कर कोई आध्यात्मिकता नहीं है। इस ‘भवानी शंकर’ सिद्धांत का पालन करना प्रत्येक मनुष्य का परम कर्त्तव्य है।
सद्भावना में रहने का आदर्श – उदाहरण
इसके लिए हमारे महाकाव्यों से एक अच्छा उदाहरण, भगवान शिव का परिवार उद्धृत किया जा सकता है।
आइए ‘भगवान शिव’ के परिवार का विश्लेषण करें। शिव के सिर पर गंगाजल और माथे पर दोनों नेत्रों के मध्य अग्नि है। इसलिए, वह त्रिनेत्र या ‘तीन आंँखों वाले’ भगवान’ हैं। जबकि ‘जल’ और ‘अग्नि’ स्वभाव से एक-दूसरे के विरोधी हैं और एक साथ नहीं रहते। शिव पन्नगधर, नागभूषण हैं क्योंकि उनके गले में विषैले सांँप हैं।
उनके बड़े बेटे भगवान सुब्रह्मण्यम का वाहन मोर है। साँप और मोर शत्रु हैं। शिव की पत्नी देवी पार्वती का वाहन शेर है; वह सिंहवाहिनी है। शिव के दूसरे पुत्र का मुख हाथी का है। इसी कारण से गणेश को गजानन कहा जाता है। हाथी स्वप्न में भी सिंह के दर्शन की कल्पना नहीं कर सकता। पार्वती के पास सभी आभूषण हैं, लेकिन उनके भगवान, शिव दिगंबर हैं, न्यूनतम वस्त्र धारण किए हुए तथा भस्म विभूषित यानी उनके पूरे शरीर पर विभूति लगी हुई है।
यद्यपि शिव का परिवार विरोधों और विरोधाभासों से भरा है, फिर भी इसमें एकीकरण, समन्वय, सद्भाव और एकता है। इसी प्रकार, आपके परिवारों में भी, सदस्य एक-दूसरे से भिन्न हो सकते हैं, फिर भी आपको शिव के परिवार की तरह पूर्ण सामंजस्य के साथ रहने में सक्षम होना चाहिए। यह वह सबक है जो युगों-युगों से भगवान शिव दुनिया को सिखाते रहे हैं।
[स्रोत: साई से वार्तालाप, सत्योपनिषद भाग 4]