जप और ध्यान – एक अवलोकन
“मनुष्य द्वारा अपनी बुद्धि अनुसार अथवा कल्पना के अनुरूप, ईश्वर के असंख्य नामों में से चुने हुए किसी भी नाम का निरंतर जप ही, मनुष्य के हृदय को पवित्र करने का एक सर्वोत्तम उपाय है।”
-श्री सत्य साई स्पीक्स भाग 6, पृष्ठ-133
स्वामी ने कहा था, “बहुत लोग मुझसे पूछते हैं, “स्वामी! मुझे नाम जप के लिए कोई नाम दीजिए |” “कोई भी नाम जो तुम्हे पसन्द हो, उसको जपो। उसके सभी नाम मीठे हैं|”
-श्री सत्य साई स्पीक्स, भाग 5, पृष्ठ-33
भगवद गीता कहती है, सभी यज्ञों में सर्वोच्च है जप यज्ञ। दूसरे यज्ञों में मनुष्य कुछ न कुछ वस्तु का त्याग करते हैं, परन्तु नाम जप यज्ञ में मनुष्य स्वयं का त्याग करते हैं, और उस नाम के स्वरूप स्वयं बनने लगते हैं।
सर्वप्रथम जप की शुरुआत जिव्हा के अग्र भाग से सस्वर शुरू होती है। फिर वही मंत्र धीरे धीरे मानसिक रूप से कंठ से होने लगता है। कुछ समय पश्चात् यह नाम जप, हृदय के मध्य में उतरने लगता है और इसके बाद नाभि के मध्य स्थित होने लगता है। “ज” का अर्थ है, जन्म नाशक। “प”का अर्थ है पाप नाशक। निरन्तर नामस्मरण से हमें जीवन चक्र और पाप से मुक्ति मिलती है।
ध्यान
“सच्चे ध्यान का अर्थ है, ईश्वर में पूरी तरह से डूब जाना, केवल एक उद्देश्य भगवान, और केवल भगवान। मात्र ईश्वर को सोचना, उनको साँसों में महसूस करना, उन्हें प्यार करना, उनके साथ ही रहना”
-कन्वर्सेशन विथ सत्य साई, भाग-६, पृष्ठ १३३
“ध्यान के द्वारा, शारीरिक कमजोरी दूर होती हैं, मानसिक उद्वेग कम होता है, और स्वतः ही मन स्थिति उच्चतम कृपा की ओर अग्रसर होने लगती है। व्यक्ति एकात्मकता की ओर बढ़ने लगता है। एकाग्रता बढ़ने लगती है। इच्छाशक्ति, कौशल का बढ़ना, और हर कार्य की सफलता आसानी से प्राप्त होने लगती है।”
-टीचिंग्स ऑफ श्री सत्य साई बाबा, पृष्ठ-13