दिव्य प्रवचनों का संकलन
रघुकुल
महाराज रघु एक अति उत्कृष्ट एवम समर्थ प्रशासक थे | यही कारण है कि उनके नाम से ही उनका वंश जाना जाता है |
बाबा ने स्वयं राम कथा रसवाहिनी में महाराज रघु के अकृत्रिम गुणों की व्याख्या की है | बाबा कहते हैं, “वे आयु में भले ही कम थे, किन्तु महाराज रघु सद्गुणों में सम्पन्न थे | संकट जितना भी दुष्कर हो, वे उसे शीघ्र ही समझकर उसका हल ढूँढ लेते थे | वे अपनी प्रजा को प्रसन्न और तृप्त रखते थे | वे शांतिपूर्वक रीति तथा व्यावहारिक कुशलता से दुष्ट राजाओं को भी राजी कर लेते थे | सेना की छोटी टुकड़ी से ही उनपर विजय प्राप्त कर लेते थे अथवा उनसे आमने-सामने युद्ध कर रणभूमि में उन्हें पराजित कर देते थे |
सीता
माँ सीता प्रकृति की प्रतिनिधि हैं तथा प्रभु श्री राम अनन्त दैवीय चेतना हैं जिनसे प्रकृति उभरती है | प्रकृति पूर्णतः अपनी मूल शोभा व उदारता के साथ दैवीय चेतना की उतनी ही भागीदार है जितना कि हम मानव जाति हैं | क्या हम प्रकृति के बिना जीवन जीने की कल्पना कर सकते हैं? कतई नहीं | प्रकृति निःस्वार्थ है जो बिना किसी अपेक्षा के निरंतर प्रदान करती रहती है| अतः प्रकृति का संरक्षण करना एवं शोषण से सुरक्षित रखना हमारा परम कर्तव्य बनता है | जो प्राकृतिक विपत्ति अकस्मात ही घटित होती है, वह हमारे लिए प्रकृति की चेतावनी है कि हम उसके अमूल्य उपहारों का दुरूपयोग न करें | पारिस्थितिकी में जब सही संतुलन होगी, तब हमें प्रकृति के प्रकोप का कम सामना करना होगा |
सीता वल्लभ
भगवान बाबा वास्तव में प्रकृति रुपी माँ सीता के प्रिय स्वामी प्रभु श्री राम हैं | यह भाववाहक कथा इस बात की पुष्टिकरण करती है |
मदुरान्तकम, चेन्नई से ७० किलोमीटर दक्षिण की ओर स्थित एक छोटा शहर है | वहाँ की एक किंवदंती है कि माँ सीता को ढूँढ़ते हुए प्रभु श्री राम वहाँ आये थे | ऐसा माना जाता है कि वहाँ के एक तालाब में प्रभु श्री राम ने स्नान भी किया था | वर्षों बाद वहाँ एक राम मंदिर की स्थापना भी हुई|
१७९५ में बंगाल की खाड़ी में गहरा अवसाद उत्पन्न होने के कारण मदुरान्तकम में भारी वर्षा हुई | तालाब के भर जाने से आसन्न संकट के विषय में तत्कालीन जिलाधीश, कर्नल प्राइस को आगाह किया गया | इससे आसपास की संपत्ति को गंभीर क्षति पहुँच सकती थी | कर्नल प्राइस ने तालाब का निरीक्षण कर, दरार को तुरंत बन्द करने का आदेश दिया | तत्पश्चात वे राम मंदिर गए | उन्होंने मंदिर को बहुत क्षीण स्थिति में पायाl मंदिर के एक कोने में उन्हें कुछ ईंट दिखीं | मंदिर के पुजारी से पूछताछ करने पर पता चला की वह ईंटें माँ सीता के मंदिर निर्माण के लिए लायी गयीं थीं किन्तु धन के अभाव के कारण वह नहीं हो पाया | प्रति वर्ष भारी वर्षा के कारण होने वाली नष्ट की भरपाई करने के लिए बड़ी मात्रा में धन व्यय हो जाता था | इसलिए वे धन एकत्रित नहीं कर पाए थे|
कर्नल प्राइस ने उपहास करते हुए कहा, “तुम्हारे भगवान राम तुम्हारी रक्षा करने क्यों नहीं आते? तुम्हारी रक्षा कर वे अपनी पत्नी के मंदिर निर्माण में तुम्हारी सहायता क्यों नहीं करते? यह सुनकर मंदिर के प्राधिकारी अत्यन्त दुःखी हुए | जवाब में उन्होंने कहा, “अगली बार आपातकाल में हमारे प्रभु श्री राम अवश्य हमारी रक्षा के लिए आएँगे|”
उसके कुछ समय बाद ही पुनः भारी वर्षा हुई और इस बार स्थिति और अधिक गंभीर हो गई | कर्नल प्राइस झटपट वहाँ पहुँचे और उन्हें एक भयंकर तूफ़ान उठता दिखाई दिया | प्रकृति के इस भयावह रूप को देखकर वे दंग रह गए | उन्हें लगा कि अब ईश्वर का ही आश्रय है | इतने में उन्होंने देखा कि कई गाँववासी राम मंदिर में शरण ले रहे थे और उनमें से एक वयोवृद्ध लगातार श्री राम की महिमा और शक्ति की व्याख्या कर रहे थे | ईसाई होने के बावजूद कर्नल प्राइस ने मन-ही-मन प्रार्थना की, “हे प्रभु राम! सब कहते हैं कि तुम महान हो | यदि ऐसा है तो हमारी रक्षा करो | यदि तुमने मेरी प्रार्थना सुन ली तो मैं तुम्हारी प्रिय सीता का मंदिर बनवाऊँगा|”
कर्नल प्राइस की प्रार्थना समाप्त होते ही जोर से बिजली चमकी और उन्हें प्रभु श्री राम और लक्ष्मण के दर्शन हुए | “वो देखो” चिल्लाकर वे मूर्छित हो गए | होश आने पर कर्नल प्राइस ने स्वयं को अपने आवास के आरामदायक खाट पर पाया | उन्हें यह सुनकर राहत मिली कि वर्षा चमत्कारपूर्ण ढंग से रुक गई थी और तालाब में पानी अब सुरक्षित स्तर पर था | कर्नल प्राइस ने मन-ही मन प्रभु श्री राम के प्रति कृतज्ञता प्रकट की|
केवल कर्नल प्राइस ही नहीं, अपितु सारे मदुरान्तकम वासियों को यह एहसास हुआ कि प्रभु श्री राम ने ही उन सबकी रक्षा की | इसलिए आज तक उस मंदिर के देवता को केवल राम ही नहीं, अपितु सरोवर रक्षक राम के नाम से जाना जाता है | इस घटना से यह सिद्ध होता है कि भगवान वास्तव में प्रकृति के प्रिय स्वामी हैंl इस संदर्भ में माँ सीता प्रकृति की प्रतीक हैं | अतः प्रभु श्री राम को सीता वल्लभ कहना उचित होगा |