ॐ नमो भगवते भजन – गतिविधि
रोले पले : प्रह्लाद का कहानी
हिरण्यकशिपु दैत्यों के राजा थे| एक ही माँ के संतान होने के बावजूद, दैत्यों व देवों के बीच स्दैव शत्रुता पनपती थी। दैत्यों को मानव जाती के पुनरुत्थान या विश्वप्रशासन का उत्तरदायित्व या तत्संबंधी मार्गदर्शन में कोई योगदान नहीं था | लेकिन एक बार वे शक्तिशाली बनकर देवों को स्वर्ग से भागकर, स्वयं राजा बने| देवों ने सर्वान्तर्यामी भगवान् श्री विष्णु जी को प्रार्थना की | उनको पराजित कर, दैत्यों को भागकर देव फिर से राजा बनें | लेकिन दैत्यों के राजा, हिरण्यकशिपु ने, अपने चचेरे भाई देवों को हराकर, तीनों लोकों के राजा बनकर , स्वर्ग के सिंहासन पर अपना साम्राज्य स्थापित किया | वे – मध्यम लोक के मानव व् पशुपक्षी ; देवों व देवरूपी जीवों के स्वर्ग लोक तथा भूमि के निचे भाग में स्थित राक्षसों के दैत्य लोक – तीनों लोकों के राजा बने | हिरण्यकशिपु ने घोषणा की कि सभी केवल उसी की ही पूजा करें, सर्वान्तर्यामी श्री विष्णु जी प्रार्थना या नामजप बिलकुल न करें |
हिरण्यकशिपु के घर में एक पुत्र प्रह्लाद ने जन्म लिया | प्रह्लाद, जन्म से ही, भगवान् के बड़े भक्त थे | प्रह्लाद के दैविक भक्ति के चिन्ह देखकर, उसके पिताजी ने, उसे दो कठोर अनुशासक शिक्षक शंद और अरम्का, के अधीन शिक्षा दिलवाई व सुनिश्चित किया कि प्रह्लाद विष्णु के नामोनिशान से परिचित न हों | शिक्षकों ने प्रह्लाद को अपने घर ले जाकर, उसे दूसरे बच्चों के साथ, पुस्तकों का ज्ञान सौंपा लेकिन छोटे प्रहलाद ने पुस्तकों की पढ़ाई न कर, दूसरे बच्चों को विष्णु के पूजा पाठ करने का ज्ञान दिया | शिक्षकों को पता चलते ही, सजा के क्रोध से भयभीत होकर, प्रह्लाद को विष्णु पूजा से दूर रखने के पूर्ण प्रयास किए, लेकिन प्रह्लाद ने निष्ठापूर्वक विष्णु आराधना पर बल दिया, सभी को विष्णु पूजा व नामजप की महिमा की सिख पढ़ाई | शिक्षकों ने भयभीत होकर राजा को सच बताया | प्रह्लाद की शिकायत की, न केवल स्वयं, नामजप करता है, दूसरे बच्चों को भी भगवान् की पूजापाठ सिखाता है | हिरण्यकशिपु अव्यन्त क्रोधित हुए | प्रह्लाद को पास बुलाकर, उसे प्रेम से समझाया कि विष्णु का नाम न लें चुंकि उसके पिता ही भगवान् हैं । प्रह्लाद ने पिता की बात न माने, सर्वान्तर्यामी विष्णु के आशीर्वाद से ही राजा का शासन संभव है – उसका कथन था | क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को नोचिले अस्त्र शास्त्र से दहन चाहा, लेकिन दैत्यगण प्रह्लाद को मार न पाए, विष्णु की परमकृपा जो उसपर थी | हिरण्यकशिपु किसी भी हद पर जाने तैयार, पुत्र को हाथी के पदतले मार डालने का आदेश, लेकिन हाथी कुछ न कर सका – लोहे के तरह बन प्रह्लाद सुरक्षित रहे | फिर उसे पर्वत के उपरिभाग से फेंका गया, प्रह्लाद बच गए, फूल के समान आ पृथ्वी पर गिरे | विष, अग्नि, कुएं में गिराना, जादूटोला, खाना न देकर (उपवास ) कई अन्य प्रयास किए | लेकिन प्रह्लाद में स्थित विष्णु ने उन्हें हर बार बचाया | अंत में राजा ने अपने पुत्र को बड़े विषाली साँपे से बांधकर, उसे पहाड़ों से दबाकर , समुद्र के जमीं पर सुलाया | प्रह्लाद ने विष्णु की स्मृति की ” जग के नाथ ! आपको मेरा प्रणाम ओ सुन्दर विष्णु!” प्रह्लाद जान गए कि विष्णु उसी के हृदय निवासी , विष्णु सर्वव्यापी सर्वान्तर्यामी हैं | तुरंत सब सांप खुल गए , पहाड़ शक्ति खो बैठे, समुद्र ने प्रह्लाद को धीरे से लहरों से ऊपर, समुद्र किनारे ला छोड़ा | प्रह्लाद भूल गए कि वो दैत्य है , भौतिक शरीर के स्वरूप हैं , उन्हें लगा कि वे विश्व रूप हैं, विश्व के सभी शक्ति उसमें निहित हैं, कोई उनें हानि नहीं पहुंचा सकता, वे प्रकृति के राजा हैं | समय बीता , परमानंद का अनुभव हुआ — काफी समय बाद प्रह्लाद को अपना नाम, अपनी काया याद आयी, अंदर व बहार चारों और उनहोंने विष्णु को ही देखा | जब हिरण्यकशिपु को पता चला कि परमभक्त प्रह्लाद को मारने के हर प्रयास असफल हो रहे हैं , उसने प्रह्लाद को पुन : बुलाकर प्रेम से उसे सलाह देने का प्रयास किया | पुन: शंद और अमर्व दवारा प्रह्लाद को राजा के कर्तव्यों संबधी परीक्षण देने का निर्देश दिया | प्रह्लाद ने उनके प्रचार में दिलचस्पी नहीं दिखाई व अपने पाठशाला के बन्धुगण को विष्णु के ईश्वरभक्ति ही सिखाई | हिरण्यकशिपु अपने पुत्र की करतुते सुनकर बहुत क्रोधित हुए, उसे बुलाया व भगवान् विष्णु को बड़ी बुरी भाषा में कोसने लगे | प्रह्लाद ने निर्भरता से विश्व के प्रभु का गुणगान किया, उन्हें सर्वान्तर्यामी, अनंत, अनादि व सर्वेत्कृष्ट, स्वरूप बताया | क्रोधित हिरण्यकशिपु ने विष्णु को ललकारते हुए पूछा “क्या तुम्हारे विष्णु इस खम्बे में मौजूद है?” राजा बोले “अगर हों तो तुम्हारी रक्षा करें। मैं तुम्हे अभी इस तलवार से ह्त्या करूंगा|” बड़ा आवाज़ आया, खम्बे से विष्णु ने नरसिम्हा अवतार का रूप धारण कर – आधा सिंह आधा मानव बन कर प्रत्यक्श हुए | हिरण्यकशिपु ने उनसे काफी समय तक लडाई की , लेकिन पराजीत हुए | राजा का दहन हुआ ॥ स्वर्ग से देव आए, उन्होँने विष्णुं भक्ति गित गए, प्रह्लाद ने भी प्रभु चारणी सुन्दर भक्ति व आराध्य महिमा गाने गए | ईश्वर ने कहा “मेरे प्यारे बच्चे प्रह्लाद ! माँगों , तुम्हें जो चाहे माँगों ! वरदान माँगों तुम्हारी इच्छा पूरी करुँगा !” प्रह्लाद बोला “प्रभू , आपके सुन्दर अति उतन दर्शन प्राप्त हुए ! यही बहुत है ! मुझे कुछ नहीं चाहिए | मुझे भौतिक या पार लौकिक वरदानों से लोभी न करें! दिव्या आवाज बोला “मेरे बेटे, बच्चे पूछो !” तब प्रह्लाद बोला ” हे प्रभू ! मुझे उस परम प्रेम का दान दें जो अज्ञानी लोग विश्व के लौकिक वस्तुओं के प्रति रखते हैं, मुझे वही अलौकिक, दिव्य, अटूट प्रेम केवल आपके प्रति निरंतर हो, सदैव हो ! यही मेरी मनोकामना है|” प्रभू बोले “प्रह्लाद! मेरे परम भक्त, कुछ न चाहते हुए भी, मेरा आदेश है कि इस विश्व की हर ख़ुशी तुम्हारे साथ हो, सदैव प्रभू चिंतन में रहकर लोकहित अच्छे कार्य करते रहो ! तुम्हारे भौतिक यात्रा के अंता में तुम निश्चयपुर्वक मुझे प्राप्त करोगे!” आशीर्वाद देने के बाद, विष्णु गायब हो गए | ब्रह्मदेव के प्रमुखता के अधीन अन्यदेवगण ने एकत्र होकर, प्रह्लाद को दैत्य राज्य का राजा बनाया व तत पश्चात् चले गए |