राधा वह है जो भगवान को समर्पण करती है
भगवान कहते हैं, “जब आप अपने मन-वचन-कर्म कृष्ण को समर्पित कर देंगे, तब आप राधा के स्तर पर पहुँच जाएँगे | हमें यह समझना है कि जो कोई कृष्ण के प्रति आत्म-समर्पण करेगा, वह राधा बन जाएगा |”
राधा हमें यह सिखाती है कि अपने मन को केवल ज्ञान और पाण्डित्य से नहीं अपितु अपने हृदय को अत्यन्त प्रेम से परिपूर्ण करना चाहिए | वह हमें सिखाती है कि मन को ज्ञान से भरने से श्रेष्ठतर है, हृदय में प्रेम भरना| वह हमें बताती है कि हमें दैवत्व में अनेकत्व ढूँढना चाहिए, जो सार्वलौकिक है| राधा का कहना है कि हमें अपने ज्ञानेन्द्रियों को कृष्ण को समर्पित करना चाहिए, अन्यथा वे हमें कुमार्ग पर ले जाएँगे |
राधा से हमें यह भी सीखने को मिलता है कि हमें इस क्षणिक तथा अनस्थिर संसार पर विश्वास नहीं करना चाहिए | हमें भगवान के स्थिर तत्व पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिये। संसार को सही नहीं मानना, मृत्यु से भय नहीं करना तथा ईश्वर को कभी नहीं भूलना, ये तीन निषेधाज्ञा हमें राधा ने ही दिया है |
सदैव हर गुण में ईश्वरीय आनन्द का रसपान करना हमें राधा ही बताती है | राधा का कहना है कि हमें कभी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए, विशेषतः दूसरों की सफलता से | गोपियों का सन्देह दूर कर, ईर्ष्या त्यागना, उन्हें राधा ने ही सिखाया है |
[Source: http://sssbpt.info/summershowers/ss1978/ss1978-23.pdf]