भगवान कहते हैं, अगर हमारे सभी कार्य प्रेम से भरे हुए हैं, तो हमारे सभी कार्य धार्मिकता को व्यक्त करेंगे। जीवन के प्रारम्भ में प्रत्येक प्राणी को माँ के प्रेम से प्रेम का अनुभव होता है। जैसे ही बच्चे अपने बड़ों का अनुसरण करना शुरू करते हैं, उनके भीतर प्रेम पल्लवित होने लगता है। मित्रता और ईमानदारी, प्रेम के दो उप-मूल्य हैं, जो बच्चे छोटी उम्र से ही विकसित करते हैं।
इस संदर्भ में “निस्वार्थ मैत्री” और “अच्छे कर्मों का फल अच्छा ही होता है” की कहानियाँ बताती हैं कि कैसे विचार, कार्य, भावना और समझ में प्रेम का वास हो सकता है। यदि पौधों और जानवरों को प्यार से चेतना के उच्च स्तर तक ले जाया जा सकता है, तो क्या मनुष्य पर इसके प्रभाव को नजरअंदाज किया जा सकता है? एक जापानी कहावत है, “एक प्रेम पूर्ण शब्द या कर्म सर्दियों के तीन महीनों तक ऊष्मा प्रदान कर सकता है|”
[Source : Towards Human Excellence – Book2 – Sri Sathya Sai EHV Trust, Mumbai]