मोची की कहानी
यह घटना स्वामी की किशोरावस्था की है, जो उनके प्रेम और करुणा को दर्शाती है। बैंगलोर में एक मोची सड़क के किनारे बैठकर जूते सुधारने का काम करता था। एक दिन उसने अपनी छोटी सी गुमटी के सामने के बंगले में बाबा को आते देखा। उस बंगले में कई कारें आ जा रहीं थीं और लोगों के छोटे-बड़े समूह भी आ-जा रहे थे। उसने ध्यान दिया कि जो लोग भीतर से बाहर आते हैं, उनके चेहरे आनन्द से चमकते रहते हैं, और वे सभी श्रीकृष्ण और साई बाबा के अवतार की चर्चा करते हुए कहते हैं कि, इनका अवतार हो चुका है। किसी प्रकार साहस करके वह बंगले के मुख्य द्वार से भीतर गया और सहमते हुए उसने बड़े से हॉल में झाँक कर देखा कि, बाबा एक विशेष सिंहासन पर बैठे हुए थे। उनके एक ओर पुरुष और दूसरी ओर स्त्रियां बैठी हुई थीं। जैसे ही उसकी दृष्टि बाबा पर पड़ी वैसे ही बाबा ने भी, उसकी ओर देखा। उसे देखते ही बाबा अपने आसन से उठकर सीधे दरवाजे पर उसके पास आए। वह डरते डरते, सूखे हुए फूलों की वह माला जो वह लेकर आया था, बाबा को समर्पित करता इसके पहले ही बाबा ने उसके हाथों से माला ले ली और तमिल (उसे केवल वही एक भाषा आती थी) में उससे पूछा, “तुम्हें क्या चाहिए?” बाबा ने ही उस कमजोर वृद्ध को इतने सुन्दर शब्दों में अपनी इच्छा प्रकट करने की शक्ति दी होगी, क्योंकि उसने बिना किसी हिचकिचाहट के ये शब्द कहे, जिन्हें सुनकर सभी उपस्थित लोग आश्चर्यचकित रह गए। “कृपया मेरे घर आकर कुछ ग्रहण करिए।” बाबा ने बड़े प्रेम से उसकी पीठ थपथपाते हुए आश्वासन दिया, “ठीक है, मैं आऊँगा।” और वे वापस हॉल में चले गए।
वह बहुत देर तक वहाँ खड़े रहकर इंतजार करता रहा, क्योंकि वह बाबा को अपने घर का पता बताकर पूछना चाहता था कि, वे उसके घर कब आएँगे, ताकि वह घर को साफ कर उनके आगमन की तैयारी कर सके। परन्तु देर होने के कारण उसे अपनी दुकान पर काम करने के लिए वापस लौटना ही पड़ा। उस भीड़ की रेलमपेल में सबने उसे धक्का दे दिया और किसी ने भी उसकी यह बात नहीं सुनी कि बाबा ने, उसकी झोपडी में आने का वचन दिया है। वह वृद्ध मोची चाहता था कि कोई बाबा से पूछकर बता दे कि वे कब उसके घर आएँगे। पर कुछ लोग उस पर हँसने लगे, कोई कह रहे थे, शायद शराबी है, कोई उसे पागल समझ रहे थे। इसी प्रकार दिन बीतते गए और उसने बाबा से फिर से मुलाकात होने की आशा का परित्याग ही कर दिया।
एक दिन एकाएक एक कार आकर उस वृद्ध मोची की दुकान के सामने रुकी। वह भौंचक्का और भयभीत हो गया कि कहीं पुलिस या कोई अन्य अधिकारी उसे पटरी पर दुकान लगाने के जुर्म में, दंडित करने के लिए तो नहीं आ गए। परंतु कार में साई बाबा बैठे थे। उन्होंने मोची से कार में बैठने का आग्रह किया। वह मोची इतना घबड़ा गया कि, वह ड्राइवर को अपने घर का रास्ता भी न बता पाया। परंतु शायद बाबा रास्ता जानते थे। रास्ते के किनारे कार रोककर बाबा उतरे और ऊबड़खाबड़ पत्थर लगी गली पार कर, झोपड़-पट्टी स्थित, उस मोची की झोपड़ी में पहुँचे। मोची ने दौड़कर अपने परिजनों को सावधान किया। बाबा उसके घर में दीवार से लगे एक लकड़ी के पटे पर बैठ गए। उन्होंने कुछ मिठाई और फल सृजित करके परिवार के सब सदस्यों को दिए। मोची दौड़कर पास की दुकान से केले ले आया। बाबा ने उसको आनंद देने के लिए केले स्वीकार कर लिये। मोची की आँखों से आनन्द-अश्रु बह निकले, और बाबा ने उसके सर पर अपने कर-कमल रखकर उसे आशीर्वाद दिया उसके बाद बाबा वहाँ से चले गए। परंतु कहने की आवश्यकता नहीं कि वह झोपड़ी आस-पास रहने वाले लोगों के लिए तीर्थस्थल बन चुकी थी।