आदनूर के नंदनार
नंदनार का जन्म लगभग छह सौ वर्ष पूर्व पारिया जाति में हुआ था। वह भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे।
नंदा, अपने शुरुआती लड़कपन में भी, पैराचेरी के अन्य लड़कों से भिन्न थे। वह मिट्टी के देवताओं के साथ खेलते थे और उनके चारों ओर नृत्य करते थे। वह अपने देवताओं के लिए जुलूसों और उत्सवों की व्यवस्था करते। वह हमेशा अदनूर के शिव मंदिर की ऊंची मीनार को आश्चर्य से देखते रहथे थे। उनका मानना था कि ईश्वर अवश्य ही बहुत महान, भव्य और अद्भुत होगा। एक दिन उन्होंने सोचा कि उसे भगवान के दर्शन अवश्य करना चाहिए।
यही उनका खेल और विहार था। उनके कुछ दोस्त थे, जो उनके उत्साह को साझा करते थे और उनके काम के प्रति सहानुभूति रखते थे। वो अक्सर भगवान की महिमा के बारे में बात करते और कभी-कभी बहुत खुशी में गाते व नाचते थे। यह सोचकर उनके गालों से आँसू बहने लगते कि उन्हें पवित्र लिंगम के दर्शन करने के लिए मंदिर में जाने और दीपक, कपूर और अन्य चीज़ों से पूजा करने वाले लोगों के दृश्य का आनंद लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी। कभी-कभी वह ईश्वर के विचार में इतना खो जाते थे कि अपनी चेतना खो बैठते थे।
एक दिन, उन्होंने एक महान विद्वान को लोगों से यह कहते हुए सुना, “चिदंबरम सबसे पवित्र स्थान है; जो कोई भी मंदिर में जाता है, भले ही वह चांडाल हो, मोक्ष प्राप्त करेगा।” हाँ, शैवों के लिए चिदम्बरम वही है जो मुहम्मदियों के लिए मक्का है। पंडित नटराज की छवि का महिमामय वर्णन कर रहे थे। इन शब्दों ने नंदनार पर जादू की तरह काम किया। उन्होंने शीघ्र ही चिदम्बरम जाने का निश्चय किया।
उस दिन से, उन्होंने अपना जीवन केवल नटराज के बारे में सोचने, नटराज के गायन और खेतों में काम करते हुए नटराज के बारे में बात करने में बिताया। वह लगातार भगवान के बारे में सोचने में इतने व्यस्त थे कि लगभग दीवाने हो गये। वह चिदम्बरम की अपनी यात्रा स्थगित नहीं कर सके। इसलिए, वह अपने ब्राह्मण मालिक के पास गये और कहा, “श्रीमान, मैं तुरंत चिदंबरम जाना चाहता हूंँ; कृपया मुझे सिर्फ एक दिन के लिए अनुमति दें।”
जमींदार बहुत क्रोधित हुआ। वह चिल्लाया, “ऐ, तुम, पारिया, चिदम्बरम से मिलने जाना चाहते हो; तुम्हें इसके लिए पीटा जाना चाहिए।”
नंदनार चौंक गये, लेकिन उन्होंने कोई बहस नहीं की. “उनकी इच्छा अवश्य पूरी होगी,” उन्होंने ऐसा सोचा और धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा की। उन्होंने यह भी सोचा, “शायद, मेरी भक्ति अभी पर्याप्त नहीं हुई है। मुझे और अधिक ध्यान करना चाहिए।”
एक दिन, फसल के दौरान, जमींदार नंदा के चेहरे पर चमकती खुशी, विनम्रता और शांति को देखकर आश्चर्यचकित रह गया। उन्होंने कहा, “नंदा, तुम सच में एक अच्छे इंसान हो। इस फसल की कटाई में अपना काम अच्छे से करो और मैं तुम्हें चिदम्बरम जाने की अनुमति दे दूंँगा।”
यह सुनकर नंदनार नाचने-गाने लगे। वह खेतों में कूद गये और तेजी से अपना काम करने लगे।
उस शाम, नंदा अपने मालिक के पास गया और बोला, “आओ और खेत देखो, मालिक।” मालिक यह देखकर हैरान रह गया कि धान के खेत काटे गए और फसल इकट्ठी होकर सोने का पहाड़ बन गई थी। वह केवल इतना ही कह सका, “नंदा, तुम सबसे पवित्र और पावन मनुष्य हो। इस क्षण से, मैं तुम्हारा दास हूंँ, क्योंकि मुझे यकीन है कि स्वयं ईश्वर ने तुम्हारे माध्यम से मेरे खेतों में काम किया है।”
अंततः नंदा अपने दोस्तों के साथ चिदम्बरम की ओर चल पड़े। वहाँ, चिदम्बरम में, उन्हें अग्निकुंड के माध्यम से चलने के लिए कहा गया। उन्होंने इसे गाते हुए और नृत्य करते हुए किया और सुरक्षित बाहर आ गए। लोगों का मानना था कि वह सचमुच एक महान भक्त था। आख़िरकार, उन्हें मंदिर के पुजारियों द्वारा नटराज की उपस्थिति में ले जाया गया। वहांँ भी नंदा ने नाचना और गाना शुरू किया,
नटराज, नटराज
नर्तनसुन्दर नटराज।
कुछ देर बाद वह मृत अवस्था में फर्श पर गिर पड़े। उनकी सांँसें भगवान नटराज में विलीन हो गईं।
प्रश्न:
- नंदा किस जाति से थे?
- वह दूसरे लड़कों से किस तरह अलग थे?
- उन्होंने परमेश्वर की सेवा कैसे की?
- ब्राह्मण मालिक को कैसे विश्वास दिलाया गया कि नंदा एक महान भक्त है?
- नंदा की चिदम्बरम यात्रा का वर्णन करें।
[Source:Stories for Children – II, Sri Sathya Sai Books & Publications, PN.]