नागपंचमी – महत्व
महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर बंगाल और कर्नाटक राज्यों में श्रावण मास में शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन, नागपंचमी का उत्सव बड़े उत्साह से मनाया जाता है। “सर्प संस्कार” किसी परिवार मे पुत्र न होने पर, किया जाने वाला पवित्र ‘होम’ करने के बाद पत्थर पर उत्कीर्ण नाग की आकृति की स्थापना मन्दिर के बाहर पीपल के वृक्ष के नीचे करके, वर्ष में एक बार वे उस आकृति की, पूजा करते हैं। वे उस नाग-देवता को दूध तथा पंचामृत से स्नान कराते हैं। हल्दी, कुमकुम, रूई की माला चढ़ाते हैं। फूल चढ़ाते हैं, नैवेद्य रखते हैं, दीपक दिखाते हैं, तथा आरती करते हैं। कुछ लोग रंगोली से नाग की आकृति बनाते हैं, और पूजा करते हैं। आपने कुछ लोगों को एक जीवित सर्प रखकर “नाग को दूध पिलाओ” इस प्रकार पुकार करते देखा होगा। इस दिन चचेडे के समान लम्बी भाजियाँ नहीं खाते। घर में मिष्ठान्न बनाते हैं, तथा उन्हें नाग देवता को अर्पित किया जाता है।
कुछ नाग मन्दिरों मे जीवित नाग रहते हैं। दक्षिण कर्नाटक मे, सुब्रह्मण्यम और विट्ठल के अत्यन्त प्रसिद्ध मन्दिर हैं। वहाँ जीवित नागों के लिए अलग कमरा है। सुब्रह्मण्यम मन्दिर में नाग का कमरा बहुत बड़ा है, तथा उसे “आदि सुब्रह्मण्यम” के नाम से जाना जाता है।
यदि इन स्थानोँ पर प्रार्थना करने जाना हो तो वहाँ केवल पुरुष ही, वहाँ के पुजारी के साथ हाथ-पैर धोकर, केवल धोती पहनकर जा सकते हैं। कमीज नहीं पहनी जाती। पुजारी जब आपके लिए उक्त जीवित नाग की प्रार्थना करते हैं, तो वह नाग अपना फन उठाते हैं, और इस प्रकार उनका आशीर्वाद प्राप्त होने से आनन्द होता है। पुजारी नैवेद्य के रूप में मन्दिर के भीतर भात ले जाते हैं, और रखते हैं। जिस स्थान पर भात रखा जाता है, उसे धोकर स्वच्छ किया जाता है। वहाँ की आरती देखना अत्यंत आनन्द मय होता है। जब पुजारी मन्दिर का द्वार खोलते है, तब ऐसा लगता है, मानो नाग देवता नृत्य कर रहे है। आरती की ज्योति नाग के फन के समान हिलती-डुलती दिखती है। जिस चम्मच से भात निकाला जाता है, वह चम्मच लेकर पुजारी बाहर आते हैं, उस चम्मच में सोने का नागफन बना होता है। वह हमेशा नागमूर्ति के पास ही रखा जाता है। वाद्ययंत्र के साथ पुजारी वह चम्मच लेकर परिक्रमा करते हैं, और फिर उस चम्मच को तैयार भात में फन की ओर से गड़ा दिया जाता है।
यहाँ सभी भक्तों को प्रतिदिन नि: शुल्क भोजन दिया जाता है, और भगवान की कृपा से तैयार किया गया अन्न, सबके लिए पर्याप्त होता है।
विट्ठल मन्दिर में वहाँ के पुजारी, प्रतिदिन एक बर्तन भरकर दूध तथा छिले केले, नाग के कमरे में रखते हैं। एक बार विट्ठल मन्दिर में, नाग के रहने के कमरे का नवीनीकरण किया जाना था, अतः वहाँ के स्वामीजी नाग के कमरे में, गये और उन्होंने नागदेव की पूजा कर उनसे प्रार्थना की “इस पुरानी जगह के नवीनीकरण के पश्चात पुनः यहाँ आ जावें”। तब एक के पीछे दूसरा इस प्रकार सभी नाग नई जगह चले गये। वह देखकर सभी आश्चर्य चकित हो गये। स्वामीजी पुराने कमरे का नवीनीकरण पूरा होने तक दूसरे स्थान पर नागों के साथ रहे। नवीनीकरण सम्पन्न होने के दूसरे ही दिन सभी नाग पुनः अपनी पुरानी जगह पर आ गये।आज भी वे वहीं हैं।
द्वापर युग में, जब भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में अवतार लिया था, तब कालिया नामक नाग ने यमुना नदी में, पानी पीने के लिए आने वाली गायों को अपनी फुफकार से डरा रखा था। एक दिन यमुना के किनारे खेलते-खेलते, श्रीकृष्ण ने अपनी गेन्द नदी में डाल दी और उसे वापस लाने के लिए वे नदी में कूद पड़े। ग्वालों ने बाहर उनकी बहुत राह देखी, किंतु कृष्ण का कहीं पता नहीं लगा। अंत में, वे सब रोते-रोते घर वापस गये। नन्द-यशोदा के साथ सभी लोग नदी किनारे इकट्ठा हुए और उन्होंने, कृष्ण को पुकारना शुरू किया तथा प्रार्थना की। अंत में नागपंचमी के दिन कालिया की पूँछ पकड़े उसके फन पर बांसुरी बजाते खड़े श्री कृष्ण सबको दिखाई पड़े।
प्रत्येक व्यक्ति अति आनन्दित हुआ। कालिया का घमण्ड चूर-चूर होने तक श्रीकृष्ण ने पानी में, कालिया से युद्ध किया। कालिया, भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आया और उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर यमुना नदी छोड़कर समुद्र में चला गया।
नागपंचमी सम्बन्धी एक और कथा है। एक गाँव में एक किसान था। उसने नागपंचमी के दिन अपने खेत में हल चलाया, जिससे हल के नुकीले भाग के कारण वह मिट्टी में घुस गया। परिणाम स्वरूप वहाँ रहने वाली नागिन के सभी बच्चे मर गये। नागिन ने किसान से बदला लेने के लिए उसके कुटुम्ब के, सभी सदस्यों को मार डाला। नागिन को यह भी मालूम था कि, किसान की पुत्री पास के गाँव में रहती है। उसे भी डस कर मार डालने के लिए वह सन्ध्या समय उस गाँव में गई। उस लड़की ने उस दिन अपने घर में, नाग-पूजा की थी। यह देखकर नागिन आश्चर्य चकित हो गई। उसे उस लड़की के परिवार जनों को मारने का पश्चाताप हुआ और उसने उस लड़की से क्षमा माँगी। लड़की को अमृत लाकर दिया और उसे पिता तथा अन्य परिवार जनों पर छिड़कने के लिए कहा, और आश्वासन दिया कि वे पुनः जीवित होंगे, तदनुसार सबके जीवित होने पर चारों ओर आनन्द ही आनन्द हुआ और उन सबने नागपंचमी के दिन नाग-पूजा करना प्रारम्भ कर दिया। मन्दिर में रहने वाले जीवित नाग पीले रंग के होते हैं, और उनके शरीर पर काले धब्बे होते हैं। श्रीविष्णु हमेशा शेषनाग पर सोते हैं, अतः हम उन्हें, शेषशायी कहते हैं। शांता दुर्गा के पास भी सर्प होते हैं। आदिशेष ने समूची पृथ्वी को, अपने फन पर उठा रखा है। शिवलिंग पर भी फन फैलाए नाग होता है।
अमृत प्राप्ति के लिए देवासुरों ने मन्दराचल पर्वत को मथनी बनाकर रस्सी के रूप में, वासुकी नाग का उपयोग किया। कई लोग इस दिन जनेऊ बदलते हैं।
महाराष्ट्र के सातारा जिले में बत्तीस शिराले नामक ग्राम है। जो बम्बई से 250 मील दूर, स्थित है। नागपंचमी के दिन यहाँ मनुष्यों के साथ, नाग खेलते हैं, और उनके साथ खेलकर लोग भी आनन्दित होते हैं। वे नाग किसी का अहित नहीं करते और यह देखने के लिए हजारों लोग हर वर्ष वहाँ एकत्रित होते हैं। सर्पों के इस चमत्कार के कारण, यह ग्राम अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर रहा है।