जगन्नाथ पुरी
यह किंवदंती उस समय की है जब इन्द्रद्युम्न, देश के विशाल हिस्से पर राज्य कर रहे थे। एक रात भगवान उनके स्वप्न में आये और उन्हें एक मंदिर बनवाने का आदेश दिया। महाराज ने अपना धन समय, और ऊर्जा सब लगा दिया इस भव्य मंदिर बनाने में। उन्हें फिर स्वप्नादेश हुआ, समुद्र तट पर एक लकड़ी का टुकड़ा तैरता हुआ आया है उससे भगवान की मूर्ति गढ़ो। अब समस्या यह थी कि मूर्ति कौन बनाएगा? अचानक एक वृद्ध व्यक्ति राजा के समक्ष उपस्थित हुआ और उसने मूर्ति बनाने का काम माँगा। वह वृद्ध और कोई नहीं स्वयं ईश्वर के शिल्पकार थे। उन्होंने एक शर्त रखी, उन्हें एक कक्ष दिया जाए और उस कक्ष में किसी को भी इक्कीस दिनों तक प्रवेश की अनुमति न दी जाए।
पन्द्रह दिनों तक महारानी को उस कमरे से आवाज़ आती रही, फिर एकदम सन्नाटा। रानी का धैर्य समाप्त हो गया और उन्होंने कपाट तोड़ कर कमरे में प्रवेश किया। वे वृद्ध तुरन्त अदृश्य हो गए और वहाँ तीन अपूर्ण मूर्तियाँ रह गईं, श्री कृष्ण, उनके भाई बलराम जी और बहन सुभद्रा जी की, जैसा कि आज हम देखते हैं।
प्रतिवर्ष लाखों भक्त, ऐतिहासिक रथ यात्रा के उपलक्ष्य में पुरी जाते हैं। उस समय इन तीन भाई बहनों को लकड़ी के विशाल रथ पर जिसमें 16 चक्के होते हैं, में लेकर गुंडिचा मन्दिर ले जाया जाता है। इस यात्रा को श्री कृष्ण की गोकुल से मथुरा की यात्रा कहते हैं।
स्रोत – बच्चों के लिए कहानियाँ – भाग 2
प्रकाशन – श्री सत्य साई बुक्स एंड पब्लिकेशन ट्रस्ट, प्रशांति निलय
[Source- Stories for Children – II]
Published by- Sri Sathya Sai Books & Publications Trust, Prashanti Nilayam