बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म की स्थापना गौतम बुद्ध द्वारा लगभग पाँच सौ वर्ष ईसा पूर्व की गई थी।
गौतम बुद्ध का जीवन परिचय
बुद्ध कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन के पुत्र थे। वे विलासिता के वातावरण में पले थे। उनका विवाह यशोधरा से हुआ था। उनका राहुल नाम का एक पुत्र था। संसार के दुःखों से दूर उनका जीवन महलों में सुरक्षित था। ऐसा कहते हैं कि एक समय वे जब अपने महल के बाहर गए हुए थे तो उन्होंने एक वृद्ध व्यक्ति को देखा और यह अनुभव किया कि समस्त मानव प्राणियों को बुढ़ापा आएगा, एक बीमार व्यक्ति को देखा और यह अनुभव किया कि समस्त मानव प्राणी बीमार एवं दुःखों से पीड़ित होते हैं, एक शव को देखा और अनुभव किया कि, समस्त प्राणी मृत्यु को प्राप्त होंगे। अंत में उन्होंने एक तपस्वी को देखा जिसके चेहरे पर अखण्ड शांति एवं आनंद की आभा प्रस्फुटित हो रही थी। जब पूछा गया कि वे कौन हैं तो साधु ने राजकुमार को बताया कि मैं एक श्रमण एवं तपस्वी हूँ और जन्म मृत्यु के भय से मुक्ति हेतु मैने गृहस्थ जीवन त्याग दिया है। शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ, यद्यपि जीवन के सुखों से रहित तथापि मन से प्रसन्न उस पवित्र व्यक्ति के दर्शन और इस धारणा से बुद्ध अत्याधिक प्रभावित हुए कि मनुष्य का लक्ष्य केवल धर्म की खोज करना तथा साथ ही साथ जीवन-मुक्त होने के लिए प्रयास करना है। अर्थात् तपस्वी का अनुकरण करते हुए वृद्धावस्था, बीमारी एवं जीवन के समस्त दुःखों से मुक्ति। तदुपरांत बुद्ध अपनी पत्नी, पुत्र एवं राजमहल को छोड़कर आत्मानुभूति की खोज में वन में चले गए। सात वर्ष पश्चात् बोध गया में बोधि वृक्ष की छाया में जब वे गहरी एवं अतिगम्भीर ध्यानावस्था में लीन थे, उनको आत्मबोध अर्थात निर्वाण प्राप्त हुआ।
आत्मबोध होने के बाद बुद्ध स्वयं को अन्य पुरुष ‘तथागत’ के नाम से संबोधित करने लगे। तथागत का अर्थ है “जो सत्य तक पहुँच चुका है।” उनके मन में विचार आया कि उन्हें जो ज्ञान प्राप्त हुआ है उसका वे जगत में प्रचार करें। तब उन्होंने निश्चय किया “मैं वाराणसी जाऊँगा तथा वहाँ संसार के अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने के लिए एक ज्ञान रूपी दीप को प्रज्जवलित करूँगा।” मैं दुन्दुभी बजाऊँगा जिससे मानव प्राणी जाग उठेंगे। मैं ‘धम्म’ के सिद्धांत की शिक्षा दूँगा।” उन्होंने एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए भ्रमण किया। वे सैकड़ों, हजारों सभी प्रकार के लोगों, राजकुमार, किसान आदि के सम्पर्क में आए। सदैव शांति, प्रेम एवं अपार दया को प्रस्फुटित कर रहे उनके भव्य व्यक्तित्व से सभी मंत्र मुग्ध हो जाते थे। उन्होंने 45 वर्षों तक दान की महानता, वैराग्य का आनंद, सरलता, समानता, नैतिक जीवन की प्राथमिकता आदि का पाठ पढ़ाया।
अस्सी वर्ष की आयु में, कुशीनगर में, उन्होंने परिनिर्वाण प्राप्त किया। वैशाख मास की पूर्णिमा का दिन बुद्ध के जीवन की 3 महत्त्वपूर्ण घटनाओं, उनके जन्म, बोध एवं – परिनिर्वाण से जुड़ा हुआ है। यह बौद्ध कैलेंडर में सबसे पवित्र दिन है।
जल्दी ही बौद्ध धर्म को एक धर्म के रूप में स्वीकार कर लिया गया और एशिया के अधिकांश हिस्सों में इसका पालन किया जाने लगा।
बौद्ध धर्म के चार प्रधान सिद्धांत हैं:
- सर्वम् दुःखम् – जीवन दुःखमय है।
- सर्वम् क्षणिकम् – प्रत्येक वस्तु क्षण भंगुर है। (सब कुछ अस्थिर है)
- सर्वम् अनात्मम् – प्रत्येक वस्तु सार रहित है।
- निर्वाणम् शान्तम् – निर्वाण शांति है।
चार उदात्त सत्य:
- जीवन दुःखमय है।
- इच्छाएँ दुःख का मूल एवं कारण हैं।
- इच्छाओं का दमन तथा दुःख का अंत किया जा सकता है।
- आठ प्रकार के मार्ग हैं जिनके द्वारा दुःख का अंत होता है।
निर्वाण के लिये अष्टांग मार्ग:
- सम्यक दृष्टिकोण (चार उदात्त सत्य विषयक)
- सम्यक संकल्प
- सम्यक वाणी
- सम्यक आचरण
- सम्यक व्यवसाय (जीवन यापन के उचित साधन)
- सम्यक प्रयास/उद्यम
- सम्यक मनोवृत्ति (उचित प्रवृत्ति/विचार)
- सम्यक ध्यान
बुद्ध ने प्रत्येक व्यक्ति द्वारा दैनिक जीवन में पालन करने योग्य पंचशील या पांँच गुण नियमों को निर्धारित किया। ये निम्नलिखित हैं-
- जीवों को कभी नुकसान नहीं पहुँचाना (अहिंसा)
- असत्य कभी न बोलें (सत्यम)
- कभी चोरी न करना (अस्तेय)
- इन्द्रियों के सुख में लिप्त न होना (ब्रह्मचर्य)
- नशा न करें।
बुद्ध के उपदेश बहुत सरल हैं। उन्होंने अपनी शिक्षाओं में ईश्वर या आत्मा का उल्लेख नहीं किया है। वे ‘मानस’ या मन को संदर्भित करते हैं, जो सभी कार्यों और शब्दों को प्रेरित करता है। इसलिए उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि व्यक्ति को मन, भावनाओं, शब्दों तथा कर्मों की शुद्धता की खेती करनी चाहिए।
भारत में बौद्ध धर्म को अपने मातृ धर्म हिंदू धर्म में शामिल कर लिया गया, यानी हिंदुओं ने बुद्ध को भगवान विष्णु के 9वें अवतार के रूप में स्वीकार कर लिया। हालाँकि, बौद्ध धर्म अन्य देशों में फैल गया और आज यह कई पूर्वी एशियाई देशों में लोगों का धर्म है।
प्रार्थना
बुद्धं शरणं गच्छामि
(मैं बुद्ध की शरण लेता हूँ)
धम्मम शरणं गच्छामि
(मैं धर्म की शरण लेता हूँ)
संघं शरणं गच्छामि
(मैं संघ की शरण लेता हूँ)
धर्मचक्र
Iयह बौद्ध धर्म का प्रतीक है। इस चक्र में आठ तीलियाँ हैं। प्रत्येक तीली बौद्ध धर्म के आठ सिद्धांतों में से एक का प्रतिनिधित्व करती है। इस प्रकार यह चक्र धर्म की पूर्णता का प्रतीक है।
पाली त्रिपिटक – बौद्ध धर्मग्रंथ
पाली त्रिपिटक (त्रि का अर्थ है ‘तीन’, पिटक का अर्थ है ‘टोकरी’) से तात्पर्य है:
- विनयपिटक, जिसमें बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए अनुशासनात्मक नियम शामिल हैं, साथ ही इन नियमों को क्यों और कैसे स्थापित किया गया, इसकी व्याख्या और सहायक सामग्री।
- सुत्त पिटक में गौतम बुद्ध के प्रवचन हैं।
- अभिधम्मपिटक में गौतम बुद्ध की शिक्षाओं की व्याख्या है