इस्लाम एवं रमज़ान का सार – भगवान श्री सत्य साई बाबा

Print Friendly, PDF & Email

इस्लाम एवं रमज़ान का सार – भगवान श्री सत्य साई बाबा

सभी धर्मों के संस्थापकों ने ईश्वर की उस अलौकिक वाणी को सुना है जो संपूर्ण सृष्टि की रचना करने वाली आत्मा के विषय में बताती है। जिस तरह वेदों (पवित्र शास्त्रों में वर्णित लेख) को ‘सुना’ गया और उन्हें श्रुति के रूप में प्रचारित किया गया था उसी प्रकार हज़रत मुहम्मद द्वारा कुरान को भी ‘सुना’ गया था। कुरान में सलात और ज़कात को दो नेत्रों के समान माना गया है। सलात का मतलब है प्रार्थना; ज़कात का मतलब दान है। जो लोग दान को एक उच्च कर्तव्य मानते हैं और प्रार्थना के माध्यम से अपनी चेतना को ऊंचा करते हैं और भगवान पर निरंतर ध्यान देते हैं वे मुस्लिम हैं। ‘इस्लाम ’ एक ऐसा शब्द है जो किसी धर्म विशेष को नहीं बल्कि मन की स्थिति को दर्शाता है, ईश्वर की इच्छा के प्रति पूर्ण समर्पण की स्थिति को। इस्लाम का अर्थ है समर्पण, शरणागति और शांति।

इस्लाम उस सामाजिक समुदाय को दर्शाता है जिसके सदस्यों ने परम-दयालु, सर्वशक्तिमान ईश्वर के सामने आत्मसमर्पण के माध्यम से सर्वोच्च शांति प्राप्त की है, और जिन्होंने अपने साथियों के साथ शांति से रहने की कसम खाई है। बाद में, इसे उन समुदायों पर लागू किया गया जो खुद को बाकी लोगों से अलग और शत्रुतापूर्ण मानते थे। इस्लाम ने कुछ ऊँचा सिखाया। इसने विविधता में एकता, अनेकता में एकता की ओर ध्यान आकर्षित किया और लोगों को ईश्वर नाम की वास्तविकता तक पहुँचाया।

अपमान से आत्मा को कभी आहत नहीं किया जा सकता। प्रत्येक मनुष्य की तीन मूलभूत आवश्यकताएं हैं: भोजन, वस्त्र और आश्रय। अपनी खाने की मांग को पूरा करने के लिए मनुष्य ने भोजन के मूल उद्देश्य को अनदेखा करते हुए अपने छोटे पेट को भरने के लिए कई प्रकार के खाद्य पदार्थ विकसित किए हैं। शरीर को ठंड से बचाने के लिए कपड़े पहनने पड़ते हैं। लेकिन हम कपड़ों पर अत्यधिक अतिरंजित मूल्य संलग्न कर रहे हैं। बेशक, रहने और शरीर को विश्रान्ति के लिए घर होना चाहिए। मुस्लिम, गिब्रान, पूछता है कि इन विशाल आवासों का निर्माण क्यों करें? वे स्वयं के लिए नहीं बल्कि किसी और के खजाने एवं धन को हड़पने के लिए बनाए गए हैं। गिब्रान का कहना है कि ये हवेलियाँ मृत लोगों के रहने के लिए बनाई गई कब्रें हैं।

हज़रत मुहम्मद ने भगवान से सुने संदेश की घोषणा, मक्का के वासियों को सुनाई। उस समय, लोगों ने उन ईश्वरीय घोषणाओं को ध्यान में नहीं रखा। उन्होंने मुहम्मद को वह स्थान छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन, हज़रत मुहम्मद जानते थे कि सत्य की जीत होगी और ईश्वर का प्रचार होगा। वे जानते थे कि अपमान और चोट केवल शरीर के लिए थी; आत्मा को कभी चोट नहीं पहुंच सकती।

रमज़ान के महीने को, हज़रत मुहम्मद के पवित्र कार्य को स्मृति में लाने के लिए और उनकी शिक्षाओं का अभ्यास करने के लिए निर्धारित किया गया है, जो एकता एवं पवित्रता के दैवी पथ को प्राप्त करने के लिए उन्होंने बताईं थीं। इस्लाम धर्म चंद्रमा को महत्व देता है जो महीनों को नियंत्रित करता है। हिन्दू चंद्रमा को, मन को नियंत्रित करने वाला देवता मानते हैं। नवचन्द्र के दर्शन के साथ, रमज़ान का उपवास शुरू होता है और अगले नवचन्द्र के दर्शन पर ही व्रत समाप्त होता है। ‘फास्ट (व्रत या उपवास)’ केवल खाने और पीने से संबंधित नहीं है।

उपवास सूर्योदय से शुरू होता है और सूर्यास्त के बाद ही तोड़ा जाता है और बहुत ही अनुशासित तरीके से किया जाता है। रमजान महीने के दौरान ब्रह्म मुहूर्त में तीन या चार बजे तक उठकर प्रार्थना करना और पूरे दिन, भगवान की निरंतर उपस्थिति का अनुभव करने की भावना शामिल है। यही उपवास (व्रत) का अर्थ है। इसके अलावा, रमजान महीने के दौरान, प्रतिद्वंद्विता से बचा जाता है, नफरत को हटा दिया जाता है। पति-पत्नी एक ही घर में अनुशासित तरीके से रहते हैं। माँ और बच्चे दोनों एक ही आध्यात्मिक आहार का पालन करते हैं, और भाईचारे का माहौल बना रहता है। शरीर, इंद्रियाँ और मन कठोर अनुशासन के अधीन होते हैं।

Experts from the divine discourse -2

भगवान बाबा श्री सत्य साईं इंस्टीट्यूट ऑफ हायर लर्निंग के मुस्लिम छात्रों के साथ रमजान ईद के अवसर पर कुरान देख रहे हैं।

सभी धर्मों में उपवास की अवधि एक महीना मानी गयी है। हिंदू माघ और श्रावण महीनों में इसका पालन करते हैं। जोरोस्ट्रियन और ईसाइयों ने इस उद्देश्य से उनके खुद के महीने निश्चित किये हैं। कुरान यह कहती है कि सभी लोगों को एकता की भावना, अन्योन्याश्रितता, निस्वार्थ प्रेम और दैवत्व की भावना को पल्लवित करना चाहिए। प्रायः सभी व्यक्ति दिन में पांच बार शरीर के लिए किसी न किसी तरह का भोजन लेते हैं। सुबह कॉफी, दो घंटे बाद नाश्ता, दोपहर में भारी भोजन, चार बजे चाय और नौ बजे रात का भरपेट भोजन।

इस्लाम मनुष्य के आध्यात्मिक स्वभाव के दृष्टिकोण से भोजन निर्धारित करता है जिसे उसे दिन में पाँच बार प्रार्थना स्वरूप लेना चाहिये। आत्मिक अनुभूति, आध्यात्मिक आनन्द और उस आत्मिक प्रकाश के प्रस्फुटन हेतु प्रार्थना भी दिन में पाँच बार करने का निर्देश है, जागरण की बेला से लेकर मृत्यु पर्यंत| एकता हर धर्म का मूल उपदेश है। इस्लाम धर्म में प्रार्थना भी एक सामूहिक गतिविधि है। एक समूह में प्रार्थना लाभदायक स्पंदन उत्पन्न करती है। जब इस्लाम ईश्वर के प्रति हृदय में उमड़ने वाले विशाल से प्रभावित होता है, तो वह परमानंद के प्रबल प्रवाह का आश्वासन देता है । ये सभी मस्जिद की ओर नज़र करते हुए थोड़ा झुकते हैं। अपने झुके हुए घुटनों पर पंक्तियों में बैठते हैं और तब तक आगे झुकते हैं जब तक कि उनकी हथेलियां और माथे ईश्वर की इच्छा के प्रति विनम्र भाव से जमीन को छू नहीं जाते। गलतफहमी, संघर्ष और आपसी वैमनस्य से इस अवसर की शांति को भंग नहीं करना चाहिए।

इस प्रकार इस्लाम में अनेकता में एकता पर जोर दिया गया है। ईश्वर के प्रति निवेदन है जो विभिन्न मस्तिष्क में विभिन्न प्रकार से प्रकट होता है। एकता हर धर्म का मूल उपदेश है। एकता में विश्वास सबका आधार है। इसके बिना कोई भी आस्था और आचरण धर्म नहीं हो सकता। ईश्वर एक है और सभी धर्मों में जो उपदेश हैं, वे सभी प्रेम, करुणा, सहिष्णुता और सहानुभूति पर आधारित हैं। विडम्बना यह है कि न तो मुस्लिम, न ही हिंदू, और न ही अन्य धर्मों के अनुयायी दैनिक जीवन में इन गुणों का अभ्यास कर रहे हैं। इस्लाम सिखाता है कि ईश्वर का अनुग्रह, न्याय और धार्मिक जीवन के माध्यम से पाया जा सकता है; धन, विद्वता या शक्ति इसे अर्जित नहीं कर सकते। पवित्र प्रेम ही प्रभु को प्रसन्न कर सकता है। यह हर धर्म का संदेश है। लेकिन मानव जाति ने इस महत्वपूर्ण बिंदु को अनदेखा किया है।

रमज़ान स्वजनों, निकट एवं दूर के संबंधियों, मित्र तथा शत्रुओं को प्यार के बंधन में एक साथ बाँधता है। इस प्रकार की लापरवाही हर धर्म में हो रही है। अनुयायी उन नियमों को अपनाते हैं जिन्हें वे पसंद करते हैं और उन्हें तोड़ देते हैं जो उन्हें कठोर लगता है। तो, वे संकीर्ण और कुटिल हो जाते हैं। वे अपने दोषों को युक्तिसंगत बताते हैं और अपनी असफलताओं को उचित ठहराते हैं। उन्हें आत्म-प्रवंचना की आदत हो गई है। दैनिक क्रियाकलापों में प्यार और सहनशीलता की अभिव्यक्ति करें। चूँकि इस्लाम का अर्थ है ईश्वर के प्रति समर्पण । जो समर्पण की भावना से ओतप्रोत हैं, समाज में शांति और सद्भाव में रहते हैं, वे वास्तव में इस्लाम से संबंधित कहने योग्य हैं। इस्लाम विचार, वचन और कर्म के बीच पूर्ण समन्वय पर जोर देता है।

मुस्लिम पवित्र पुरुष और संत इस बात पर जोर देते रहे हैं कि हमें ‘मैं’ की वास्तविकता के बारे में जिज्ञासा करनी चाहिए।हमें जो भी अनुभव होता है वह शरीर और मन के स्तर पर ,किन्तु वास्तव में हम मात्र शरीर और मन नहीं हैं। असली “मैं” सर्वव्यापी है – ईश्वर के रूप में। रमजान माह, व्रत और प्रार्थना के माध्यम से इसी अहसास को जगाने और प्रकट करने के लिए बनाया गया है।

कोई भी धर्म हो, उसका जोर एकता, सद्भाव, एवं आपसी समभाव पर है। इसलिए, प्रेम, सहिष्णुता और करुणा का विकास करें और हर दैनिक गतिविधि में सत्य की अभिव्यक्ति करें। यह मेरा संदेश है जो मैं आप सभी को आशीर्वाद के रूप में दे रहा हूँ।

[प्रशांति निलयम १२ जुलाई, १९८३, रमज़ान के अवसर पर दिया गया दिव्य प्रवचन]

Adapted from: https://sathyasaiwithstudents.blogspot.com/2014/07/sri-sathya-sai-zgives-essence-of-islam.html?m=1

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

error: