चिन्न कथा
चिन्न कथा
दीपावली – दिव्य सन्देश का प्रकाश
नरकचतुर्दशी का पर्व (जिसे छोटी दीपावली के रूप में भी जाना जाता है), मनुष्य को यह याद रखना सिखाता है कि चरित्र, कैसे नियति तय करता है, उपलब्धियों को रेखांकित करता है और किसी को परमात्मा या असुर के रूप में सीमांकित करता है।
नरका, जिसके नाम पर इस दिन का नाम रखा गया, मानव था। लेकिन जब से वह एक दानव के रूप में बड़ा हुआ, उसने सार्थक शीर्षक अर्जित किया, “नरकासुर”। अपने राक्षसी प्रवृत्ति के कारण वह नरक की ओर अग्रसर हुआ। वह एक राजा था, जिसने अपनी प्रजा को अपने दुष्विचारों एवं आदेश से अपने जैसा दुष्ट व्यक्ति बना दिया था। उसके राज्य के लोग दुराचार और हिंसा के नशे में लिप्त थे।
भगवान ने नरकासुर को खत्म करने और लोगों को बर्बादी से बचाने का एवं उन्हें विनम्रता और अच्छाई के पवित्र सात्विक मार्ग की ओर मार्गदर्शन करने का फैसला किया। यहाँ, आपको एक अजीब रणनीति पर ध्यान देना चाहिए जिसे प्रभु ने नियोजित किया था। भगवान ने नरकासुर के राज्य पर आक्रमण किया, एक बार नहीं, बार-बार! बेशक, वह पहले अभियान के दौरान ही असुरों के विनाश के कार्य को पूरा कर सकते थै। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने उसे बार-बार उग्र क्रोध में विस्फोट करने के लिए मजबूर किया, और प्रभु के प्रत्येक हमले ने उसे बार-बार कमजोर बना दिया। उसकी प्रतिरोध करने की शक्ति क्रमशः क्षीण होती चली गई।
क्रोध किसी की शक्ति को बहुत कम कर देता है। इसलिए, भगवान ने नरकासुर को क्रोध में, बार-बार भड़काया, और जब वह दुर्बल और अस्थिर हो गया, तब भी प्रभु ने निश्चय किया कि वह उनके हाथों मृत्यु के योग्य नहीं है। उन्होंने सत्यभामा को अपने साथ लिया और उन्हें आततायी नरकासुर का वध करने को कहा। वह इसे आसानी से कर पाईं, क्योंकि नरकासुर की तीन-चौथाई शक्ति भगवान की रणनीति से घट गई थी। यह दिवस, दीपावली का त्यौहार, ऐसे असुर के विनाश के स्मरण के लिए है। इस उत्सव का महत्व यह है कि इस दिन भगवान ने अज्ञान के अंधेरे का वध किया और लोगों में आत्मा के प्रति जागरूकता का अभाव गायब हो गया। जहाँ आत्मिक जागरूकता का प्रकाश चमकता है, बुरे विचार, दुष्ट वाणी और दुष्कर्म भय से भाग जाते हैं। इसलिए, हमें अपनी वास्तविकता पहचानने के लिए ज्ञान को विकसित करना चाहिए
– बाबा