ऋषि नारद की कहानी भगवान विष्णु के साथ गतिविधि स्थल: विभिन्न स्थान पात्र: भगवान नारायण, ऋषि नारद, राजा, राजकुमार। बच्चे कौए, तोता और बछड़े के रूप में अभिनय करें। संबंधित मूल्य:जन्म और मृत्यु का मूल्य।
दृश्य: (एक बार ऋषि नारद भगवान नारायण से मिलने गए। नारायण ने उनसे पूछा..) नारायण: कैसे हो नारद? नारद: मैं ठीक हूंँ और हमेशा की तरह तीनों लोकों में भ्रमण कर रहा हूंँ। नारायण: आप किस विचार से भ्रमण करते हैं? नारद: प्रभु, केवल आपका। मैं नारायण, नारायण का जप करता रहता हूंँ। परंतु प्रभु, आपके नाम जपने का फल क्या है, यह मेरी समझ में नहीं आता। नारायण: हे नारद! आप नामस्मरण करते हैं, लेकिन आपको उसका स्वाद नहीं पता। जाओ और उस पेड़ पर बैठे कौए से पूछो। नारद कौवे के पास गए और पूछा, "नारायण का जप करने का फल क्या है?" यह प्रश्न सुनते ही कौआ मर गया। नारद नारायण के पास गए और उन्होंने यह घटना प्रभु को बतायी... नारद: मैंने कौवे से पूछा, वह तुरंत मर गया। क्या यही सुपरिणाम है? नारायण: सत्य को खोजने के लिए व्यक्ति को अपने समय का सदुपयोग करना चाहिए। नारद, तुम उस गरीब ब्राह्मण के घर जाओ। वहाँ एक पिंजरे में एक सुन्दर तोता है। इसका शरीर हरा और चोंच लाल है। जाकर तोते से पूछो। नारद ने जाकर तोते से पूछा, "नारायण नारायण जपने का फल क्या है?" यह सुनकर तोता तुरंत गिर पड़ा और मर गया। नारद पुनः नारायण के पास गये। नारद: मैंने तोते से पूछा। वह भी तुरंत मर गया। क्या नामस्मरण का यही सुफल है? नारायण: जब तक कोई पूर्ण सत्य न जान ले, तब तक उसे दृढ़ निश्चय करना चाहिए। ब्राह्मण के घर जाओ। कल ही एक बछड़ा पैदा हुआ है। जाओ और उससे पूछो। नारद बछड़े के पास गए और पूछा, "नारायण के जप का फल क्या है?" बछड़े ने अपना सिर उठाया और नारद को देखा, उसकी भी मृत्यु हो गई। नारद मुनि फिर नारायण के पास गये| नारद: जब तक मुझे सच्चाई का पता नहीं चल जाता, मैं नहीं जाऊँगा। हे प्रभो! क्या यही परिणाम है? नारायण: जल्दबाजी मत करो। जल्दबाजी गलत है। उतावली चिंता पैदा करती है, इसलिए जल्दबाजी न करें, धैर्य रखें। कल ही इस देश के राजा के घर एक बेटा हुआ है। जाओ और उस बच्चे से पूछो। नारद डर गये। उन्होंने सोचा, "अगर बच्चा भी मर गया तो सिपाही मुझे गिरफ्तार कर लेंगे। मैं भी मर जाऊंँगा। क्या यही परिणाम है?" नारायण: जल्दबाजी मत करो। जाकर बच्चे से पूछो। नारद राजा के पास गये। बालक को सोने की थाली में लाया गया। नारद ने राजा से पूछा, "हे राजन! क्या मैं बालक से एक प्रश्न पूछ सकता हूँ?" राजा सहमत हो गये। नारद: नारायण का नाम जपने का फल क्या है? यह सुनकर बालक राजकुमार बोला। राजकुमार: नारद, क्या आपने यही सब सीखा है? आप 24 घंटे भगवान का नाम जपते हैं, लेकिन उसका स्वाद नहीं जानते। पहले मैं एक कौआ था। आपने आकर मुझसे पूछा कि नारायण का नाम जपने का फल क्या है? जिसे सुनकर मेरा जीवन पूर्ण हो गया। मेरी मृत्यु हो गई। इसके बाद मेरा जन्म तोते के रूप में हुआ। तोते का पालन-पोषण पिंजरे में होता है। आपने आकर मुझसे वही प्रश्न पूछा। इसके बाद मेरा जन्म बछड़े के रूप में हुआ। यह तो और भी बेहतर जीवन है। भारतीय गाय की पूजा करते हैं। मैंने प्रभु का नाम सुना और मर गया। अब मेरा जन्म एक राजकुमार के रूप में हुआ है। कहाँ कौआ, तोता, बछड़ा और कहाँ राजकुमार? भगवान का नाम जपने से हम उच्च गति को प्राप्त होते हैं। अब मैं राजकुमार बना हूँ, यह मेरा भाग्य है। यह नारायण का नाम जपने- सुनने का फल है। नारायण का नाम सुनकर कौआ तोता, बछड़ा और अंततः राजकुमार बन गया। उसे मनुष्य जन्म प्राप्त हुआ। यदि भगवान का नाम सुनने में इतनी शक्ति है, तो भगवान का नाम लेने में क्या शक्ति होगी। इसलिए नामस्मरण में महान शक्ति है।