मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह समाज प्रेमी है| अपने सतत् अस्तित्व के लिए उसे प्रकृति पर निर्भर रहना पड़ता है| उसे जन्म तथा बचपन में पालन के लिए माँ-बाप पर निर्भर रहना पड़ता है| जीवन भर वह उन वस्तुओं का उपयोग करता है, जो वास्तविक रूप में उसके स्वामित्व नहीं है| इन ऋणों से वह भिन्न- भिन्न रूप में ऋण चुकाकर अंशत : मुक्त होता रहता है, किन्तु उसे इस शरीर की जो देन प्राप्त हुई है, उस ऋण का क्या होगा? उसे प्रतिदिन आवश्यक हवा, पानी, सूर्यप्रकाश और अन्य हजारों छोटी-मोटी चीजें ये सब सृष्टि (प्रकृति) की देन हैं| परमेश्वर सृष्टि का स्वामी है, और वह सृष्टि उसका महल है| इसी कारण सौजन्यता की यह आवश्यकता है कि, उस कृपालु परमेश्वर द्वारा किये गये हमारे आदर आतिथ्य के बदले में मनुष्य को भगवान के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए, और उसका आभार मानना चाहिए|
नवरात्रि उत्सव भी इस प्रकार आभार मानने तथा कुतज्ञाता व्यक्त करने का एक उत्सव है|
- देवी सरसरती ने ज्ञान की देन प्रदान की है|
- देवी लक्ष्मी ने हमारी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति की देन दी है|
- भगवान् ने हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर रूपी आंतरिक दुष्पवृतियों तथा बाह्य दुष्ट शक्तियों से अपनी रक्षा करने की दुर्गा शकित दी है|
नवरात्रि का उत्सव दुष्ट शक्तियों पर पवित्र शक्तियों द्वारा विजय प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है|
लोकप्रिय उतस्वों में से एक नवरात्री उत्सव संपूर्ण भारत में भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है| भारत के एक बड़े-भू-भाग में इसे दूर्गा-पूजा उत्सव के रूप में जाना जाता है| मनुष्य की विनाश से रक्षा करने के लिए महिषासुर नामक राक्षस का वध करने वाली रणचंडी के रूप में दुर्गा देवी की इस दिन आराधना की जाती है|
सर्वलोकप्रिय नवरात्रि का यह उत्सव अश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा के दिन से आरंभ होता है| इतने लम्बें समय (नौ दिन) तक चलने वाला यह उत्सव हिन्दुओं के उत्सवों में एक मात्र उत्सव है| नौ दिन तथा नौ रात्रियों में मनाये जाने के कारण इसे नवरात्रि उत्सव कहते हैं| इस उत्सव को नौ दिन तक मनाने का एक विशेष महत्व है| प्रथम तीन दिन देवी काली की उपासना की जाती है बाद के तीन दिन लक्ष्मी की तथा अन्तिम तीन दिन देवी सरस्वती की उपासना की जाती है| देवी काली बुरी बातों का नाश करने वाली है| अत: मनुष्य के दुर्गुणों का नाश करने के लिए माता काली की उपासना की जाती है| लक्ष्मी गुण सम्पत्ति की वृद्धि करती है| गुण सम्पत्ति का तात्पर्य है- अच्छे व शुद्ध विचार, जो हमारे हृदय के दुर्गुणों पर काबू पाने के बाद ही वृद्धि पा सकते हैं|
मनुष्य सद्गुण रूपी सम्पत्ति की समृद्धि के लिए ही देवी लक्ष्मी की उपासना करता है| जब हमारे दुर्गुण नष्ट हो जाते है, और सद्गुण समृद्ध होते हैं, और ज्ञान ही मनुष्य को आत्म ज्ञान के मार्ग पर अग्रसर करता है| इसी उद्देश्य से ‘नवरात्री’ के अंतिम तीन दिन नीचे की सीढ़ियों से ऊपर की सीढ़ियों पर जाकर जीवन से साक्षात्कार करने के लिए देवी सरस्वती का पूजन किया जाता है|
नवरात्रि उत्सव के चलते तीन से दस वर्ष तक की कुमारी कन्याओं को भोजन, नये वस्त्र देकर उनकी भी पूजा की जाती है- ऐसा उल्लेख शास्त्रों में लिखा है|
उत्तर भारत में रामायण के विविध प्रसंगों पर आधारित रामलीला का आयोजन कर दशहरा का उत्सव मनाया जाता है| इसमें राम- रावण के युद्ध का प्रसंग आद्योपांत दिखाया जाता है|
राक्षसों पर विजय का उत्सव दसवें दिन मनाया जाता है| इस दसवें दिन को ही विजयदशमी (दशहरा) कहते हैं| इस दिन रावण का पुतला बनाकर जलाया जाता है|
भारत के दक्षिण भाग में इन दस दिनों में समृद्धि का प्रदर्शन किया जाता है और इस प्रदर्शन में भाग लेने के लिए आस-पास की एवं ग्रामीण स्त्रियों को आमंत्रित किया जाता है|
अंतिम दिन शस्त्र पूजा का दिन भी है| इस दिन जिन हथयारों और उपकरणों की सहायता से मजदूर अपना जीवन निर्वाह करते हैं, उनकी पूजा की जाती है| सुनार, लुहार आदि की ऐसी श्रद्धा है कि शस्त्र पूजा के समय देवी का आव्हान कर आशीवार्द मांगने से देवी, कार्य में अधिक कुशलता और भाग्य प्राप्ति का वरदान देती है|
दशहरा उत्सव के दौरान भगवान एक सप्ताह के लिए “वेद पुरुष सप्ताह ज्ञान महायज्ञ” का आयोजन करते हैं, जो पूरे ब्रह्मांड के कल्याण के लिए होता है। यह यज्ञ विजयदशमी के दिन समाप्त होता है। इस अवधि में भगवान अपने छात्रों को पुट्टपर्ती के आसपास के गाँवों में ग्राम सेवा हेतु भेजते हैं, जहाँ वे सेवा भाव के साथ, ग्रामीणों को उनके घर-घर जाकर पवित्र प्रसाद के रूप में भोजन तथा वस्त्र प्रदान करते हैं।