गायत्री मंत्र

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श्लोक
- ॐ भूभुर्व: स्व:
- तत् सवितुर वरेण्यं
- भर्गो देवस्य धीमहि
- धियो यो न: प्रचोदयात्।।
भावार्थ
हम भगवान सूर्य के तेजस्वी दैवीय प्रकाश का ध्यान करते हैं; वह स्वर्गीय प्रकाश हमारी बुद्धि में हमारे विचार प्रवाह को प्रकाशित करे।
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व्याख्या
| ॐ | प्रणव ध्वनि, सृष्टि का आधार |
|---|---|
| भू | पृथ्वी, स्थूल, भौतिक शरीर |
| भुव: | मन, बुद्धि और प्राण शक्ति |
| स्व: | स्वर्ग, भूतल से परे का क्षेत्र |
| तत् | वह, परमात्मा |
| सवितुर | दिव्य सावित्री, सूर्य की विशुद्ध प्राणदायिनी ऊर्जा |
| वरेण्यं | सर्वोच्च, सूर्य एवं तीनों लोकों में व्याप्त जीवनदायिनी शक्ति |
| भर्गो | प्रखर |
| देवस्य | दैवी कृपा |
| धीमहि | हम चिंतन/ध्यान करते हैं |
| धी | बुद्धि |
| यो | वह जो |
| न: | हमारा |
| प्रचोदयात् | प्रार्थना करना |
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