कृतज्ञता
कृतज्ञता एक दैवी गुण है, और स्वामी के कार्यों में, वह सदैव परिलक्षित होता है।
कई वर्ष पूर्व बाबा, अपने कुछ भक्तों के साथ होर्सले की पहाड़ियों में रहे थे। यह नयनाभिराम स्थल, समुद्र तल से 3800 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। उनका कैम्प पहाड़ियों के बीच में था, जहाँ केवल जीप के द्वारा ही, पहुँचा जा सकता था। अतः भोजन और पानी, गाँव वालों को पहाड़ियों की तराई में स्थित, छोटे गाँव से ढोकर, कैम्प तक पहुँचाना पड़ता था। एक बैल की पीठ पर, मशक रख दी जाती थी और वह दिन में कई चक्कर लगाकर पानी ढोता था। बाबा की मधुरवाणी में सुंदर उपदेश सुनते हुए प्रत्येक व्यक्ति ने कैम्प के वे शांति पूर्ण दिन आनंद से बिताए।
लौटते समय बाबा ने सलाह दी, कि चलो हम पैदल ही पहाड़ी से उतरते हैं। एक स्थान पर वे एकाएक रुक गए और बोले, “रुको, मैं उस अति विशिष्ट व्यक्ति से तो बिदाई ले लूँ।” कुछ भक्तों ने चुपके से बाबा का पीछा किया, तो क्या देखते हैं कि बाबा तो बैल से बिदाई ले रहे हैं। उन्होंने बड़े स्नेह से उसकी पीठ थपथपाई और कहा, “बंगारु, तुमने मेरी बहुत सेवा की।” (बंगारु एक स्नेहभरा सम्बोधन है जिसका अर्थ है सोना )। बाबा सेवा के छोटे से छोटे काम का भी ध्यान रखते हैं और उसकी प्रशंसा करते हैं।