बाघ की कहानी
स्वामी सभी जीव-जन्तुओं से एक समान प्रेम करते हैं और पशुओं की हत्या या शिकार बिलकुल सहन नहीं कर सकते।
बाबा के उर्वाकोंडा से पुट्टपर्ती लौट आने के बाद एक दिन एक विचित्र घटना घटित हुई। एक अंग्रेज अफसर जो एक बहुत बड़ा शिकारी भी था, चित्रावती नदी के दूसरे किनारे पर स्थित जंगल में, शिकार करने के लिए गया। उसने एक बाघ का शिकार किया और वह अनंतपुर वापस जा रहा था। एकाएक बिना किसी कारण उसकी जीप पुट्टपर्ती ग्राम के बाहर रुक गई। उस अफसर और उसके ड्राइवर ने बहुत प्रयास किया, परंतु वे जीप चलाने में असमर्थ रहे।
संयोग से ड्राइवर ने, बाल साई की लीलाएँ सुन रखी थीं, उसने उस अंग्रेज को बताया कि निकट के ही गाँव में एक बालक रहता है जो हाथ घुमाकर विभूती का सृजन कर सकता है। यह विभूति सब कुछ ठीक कर सकती है। शायद वह इस जीप को भी ठीक कर दे। चूँकि वह अंग्रेज बीच रास्ते में असहाय खड़ा था और समझ ही नहीं पा रहा था कि क्या किया जाए, इसलिए उस अफसर ने ड्राइवर की बात मान ली। अफसर जीप में ही बैठा रहा, जबकि ड्राइवर बाबा को ढूँढते हुए गाँव में पहुँचा।
ड्राइवर पुट्टपर्ती की सड़कों पर घूम ही रहा था, कि उसने एक बालक को देखा। वह बालक और कोई नहीं, स्वयं बाबा थे। इसके पहले कि वह ड्राइवर कुछ बोलता, बाबा ने कहा, “मैं स्वयं तुम्हारे साथ जीप तक आऊँगा”। स्वामी नदी का रेतीला किनारा पार कर रेत पर चलते हुए वहाँ पहुँचे, जहाँ जीप रुकी हुई थी। उन्होंने जीप में झाँककर देखा, तो वहाँ वह खूबसूरत बाघ रखा हुआ था, जिसे अभी दो घंटे पूर्व ही उस अफसर ने मारा था। स्वामी ने वहाँ उपस्थित लोगों से कहा, “मैंने ही यह जीप पुट्टपर्ती के निकट रोक दी है, क्योंकि यह बाघ जिसका शिकार किया गया है, वह तीन बच्चों की माँ है। उसके बच्चे माँ को खोज रहे हैं और भूख से रो रहे हैं। अभी उन शावकों की उम्र मात्र दो सप्ताह ही है।” बाबा ने दृढतापूर्वक आज्ञा दी, “जाओ, वापस जाओ और उन शावकों को लेकर आओ। उन्हें किसी चिड़ियाघर में दे देना ताकि उनकी देखभाल भलीभाँति हो सके। भविष्य में फिर कभी शूट करने की इच्छा हो, तो बंदूक से नहीं कैमरा से शूट करना। तुम लोग क्यों जानवरों को मारना या पकड़ना चाहते हो।” बाबा के अनुसार कैमरा बेहतर अस्त्र है, जो मूक पशुओं को पीड़ा नहीं पहुँचाता और न ही उनकी हत्या करता है। उस अंग्रेज ने बाबा की आज्ञानुसार ही कार्य किया। उसने उन शावकों को सुरक्षित, चिड़ियाघर में पहुँचाया और उस दिन के बाद सिर्फ कैमरे का प्रयोग किया। उसे शीघ्र ही यह ज्ञान हो गया कि कैमरे से शूट करना, बंदूक से शूट करने से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है। साथ ही यह कार्य शांति, अहिंसा और पवित्रता से भरपूर है।
वह अफसर बाबा के विवेकपूर्ण विचारों से इतना अधिक प्रभावित हुआ, कि जब उस बाघ की खाल बनकर आई, तो वह उसकी ओर देख भी नहीं पाया। अतः वह उस खाल को लेकर पुट्टपर्ती गया और पुनः बाबा से मुलाकात की तथा वह खाल उन्हीं के श्रीचरणों मे भेंट कर दी।
[Source: English lesson adapted from the Divine Life of Young Sai, Sri Sathya Sai Balvikas Group I, Sri Sathya Sai Education in Human Values Trust, Compiled by: Smt. Roshan Fanibunda]