जल्दबाजी हानिप्रद है
एक बार सम्राट शिवाजी अधिक से अधिक दुर्गों (किलों) पर आधिपत्य करने के उद्देश्य से, एक नगर से दूसरे नगर जा रहे थे। भ्रमण के दौरान वे मार्ग भटक गए। उन्होंने एक शिखर पर खड़े होकर चारों ओर नज़र दौड़ाई, किन्तु दूर-दूर तक उन्हें एक भी गाँव नज़र नहीं आया। रात हो जाने के कारण घना अन्धकार छाने लगा। जब वे उस शिखर से नीचे उतर रहे थे, उन्हें टिमटिमाता हुआ एक मंद प्रकाश दिखाई पड़ा। प्रकाश की दिशा में आगे बढ़ते हुए, वे एक झोंपड़ी के पास पहुँच गये। वह झोंपड़ी एक वृद्धा स्त्री की थी,उसने शिवाजी को एक मराठी वीर समझकर प्यार से उसे आमंत्रित किया।थके हुए, शिवाजी भूखे भी थे।वृद्धा ने पहले उन्हें हाथ, पाँव, मुख धोने के लिए गरम पानी दिया, तत्पश्चात् विश्राम करने के लिए एक चटाई बिछा दी।तदुपरान्त उसने एक थाली में गरम खिचड़ी (एक धान्य से बनाई गई) लाकर शिवाजी के सामने रखकर खाने का आग्रह किया।
शिवाजी बहुत भूखे थे, इसलिए उन्होंने तुरंत थाली के बीच में शीघ्रता से हाथ रखा। गरम भोजन के कारण उनका हाथ जल गया, तुरंत हाथ बाहर निकालकर वे हिलाने लगे, फलस्वरूप हाथ में लगा भोजन चारों ओर छिटक गया। जो कुछ हुआ उसे वह बूढ़ी स्त्री ध्यान से देख रही थी।वह कहने लगी, “तुम भी हमारे राजा की तरह, अधीरता पूर्वक, शीघ्रता से कार्य करने वाले दिखते हो, इसीलिए उँगलियों को जलाकर, अन्न बिखेर कर, भोजन बर्बाद कर दिया”। शिवाजी उनकी यह बात सुनकर बड़े आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने पूछा, “मेरे स्वामी शिवाजी को, अधीर एवं शीघ्रता से कार्य करनेवाले, क्यों कहती हो? ऐसा सोचने का क्या कारण है?”
इस पर उस बूढ़ी स्त्री ने अपने मन की बात कही।उसने समझाने वाले स्वर में कहा, “देखो पुत्र! शिवाजी अपने विरोधियों के, छोटे-छोटे किलों को, नज़रंदाज़ करके सीधे बड़े किलों को, अधिकार में करने का प्रयत्न करता है। धीरे-धीरे, छोटे-छोटे निवालेखाने की बजाय, भोजन का एकदम बड़ा निवाला, जल्दबाजी में लेने की वजह से, तेरी उँगलियाँ, जल गईं और खाना भी बिखर गया। वैसे ही अपने विरोधियों को पराजित करने की, शिवाजी की शीघ्रता, उसके लिए चिंताजनक है, और इसमें उसे अपने कई वीर सैनिकों को भी खोना पड़ा है”।
“पहले तुम्हें, किनारे से, कम गरम भोजन को थोड़ा-थोड़ा लेते हुए, बाद में बीच में रखे भोजन को लेना चाहिए था।इसी प्रकार शिवाजी को भी, पहले, छोटे-छोटे साम्राज्यों एवम किलों को, जीतकर अपनी स्थिति को दृढ तथा सबल करना चाहिए था।इस तरह, वह बड़े-बड़े किलों को, आसानी से जीत सकता है। इससे उसका सैन्य-बल भी ज्यादा क्षतिग्रस्त नहीं होगा”।
शिवाजी ने उस बूढ़ी स्त्री के ज्ञानमय कथन में छिपे अर्थ को शीघ्र ही ग्रहण कर लिया| वे जान गए कि एक मनुष्य को अपने कार्य में सफलता पाने के लिए बेसब्री और जल्दबाजी न कर के, अच्छी तरह सोचकर, सावधानी से कार्य करना चाहिए।
अच्छी तरह सोच लो, स्पष्ट रूप से योजना बनाओ, फिर छोटे छोटे सशक्त कदमो से आगे बढ़ो। फिर यही उनका ध्येय बन गया| शिवाजी ने अपने, एक बड़े मराठी साम्राज्य के स्थापना के स्वप्न को ऐसे ही अच्छी तरह कार्य करके स्थापित किया।।
प्रश्न:
- किसी भी कार्य में हड़बड़ी अथवा जल्दबाजी किस प्रकार हानि पहुँचाती है?
- जब उस बूढ़ी स्त्री ने उन पर दोष लगाया तब शिवाजी क्रोधित क्यों नहीं हुए?3
- जल्दबाजी हानि पहुँचाती है – इसके बारे में आपके या किसी अन्य लोगों के अनुभव का वर्णन करो |