सादगी का फल
विश्व में जितने भी श्रेष्ठ, महान एवं प्रसिद्ध व्यक्ति हुए हैं, वे सभी अपने पहनावे, बोलचाल, रीति-रिवाज आदि में बहुत सादा जीवन बिताते थे। हमारा सनातन धर्म भी “सादा जीवन, उच्च-विचार” की नीति पर चलता है।
गाँधीजी कैसे कपड़े पहनते थे? कितने ही बड़े-बड़े जगत्प्रसिद्ध नेता, राजाधिराजा, बड़े-बड़े शासक, रईस और उनकी पत्नियाँ, जो भी उनसे मिलते वे सभी से सादगी से, सादे वस्त्रों में मिलते तथा सरल भाषा में ही बातें करते थे न?
भारत के श्रेष्ठ ईश्वर चंद्र विद्यासागर भी सरल जीवन को ही अपनाकर रहते थे। वे एक उत्तम शिक्षक और समाज सुधारक भी थे। इसलिए वे अक्सर, कई सभा और दावतों में बुलाये जाते थे। एक बार, वे एक दावत में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किए गए। उनको हमेंशा अपने देश की संस्कृति के अनुसार कपड़े पहनना बहुत पसन्द था। इसलिए वैसे ही कपड़े पहनकर गए। लेकिन भोज-भवन के द्वार पर खड़े रहनेवाले प्रहरी ने उनको आधुनिक वस्त्र न पहनने के कारण, अंदर जाने से रोक दिया।
तुरंत विद्यासागर जी वापस चले गए। थोड़ी देर के बाद, वे पाश्चात्य वेष-भूषा में भोज-भवन के सामने आकर खड़े हो गए। प्रहरी की समझ में नहीं आया कि कुछ देर, पहले आनेवाले सज्जन तो, वे ही थे। अब तो प्रहरी उनको देखकर – “जी! आइये-आइये” कहते हुए उनका स्वागत करके अंदर आने का आग्रह करने लगा। सब लोग खाने के लिए बैठे, विद्यासागर जी मुख्य अतिथि होने के कारण सब लोग दावत शुरू करने के लिए उनकी ओर देखने लगे। पर वे तो स्वयं न खाकर अपने कपड़ों को ही खिला रहे थे। उनकी यह करतूत देखकर सब लोग विस्मित हो गए कि उनको ये क्या हुआ? तब मेजबान ने उनके पास आकर पूछा, “जी, आपने क्यों नहीं खाया?” इसपर विद्यासागर जी ने जवाब दिया, “मैं पहले धोती पहनकर यहाँ आया था, तब प्रहरी ने बाहर ही रोक दिया। लेकिन मैं जब पाश्चात्य कपड़े पहनकर आया तो, उसने सम्मान सहित स्वागत किया। इसलिए यह भोज पाश्चात्य कपड़ों के लिए है, मेरे लिए नहीं”। मेजबान और अन्य अतिथि सब यह जानकर बहुत लज्जित हुए। मेजबान ने उनके दोनों हाथ पकड़कर, विनती करते हुए कहा, “प्रहरी की गलती के लिए मैं आपसे माफ़ी माँगता हूँ, कृपया क्षमा कीजिये”।
प्रश्न
- द्वारपाल ने विद्यासागर जी को प्रवेश करने से क्यों रोका?
- विद्यासागर जी ने तब क्या किया?
- अतिथि लोग किस बात पर चकित थे?
- विद्यासागर जी ने उनको क्या उत्तर दिया?