कृपणता (लोभ)
लोभ या अत्यंत कँजूसीपन से कोई सुखी नहीं बनता। कँजूस व्यक्ति न तो स्वयं अपने धन का उपभोग करता है, न ही किसी और को अपने धन का आनंद लेने देता है। अपनी जायदाद खोने या धनराशि के कम होने के डर से एक लोभी व्यक्ति, सदा पीछे ही रहता है।
इसी संदर्भ में एक छोटी सी कहानी दो भाई थे – छोटा लोभी व बड़ा लोभी। अपने नामों के अनुरूप, वो इतने कँजूस थे, कि वे सही मात्रा में भोजन भी नहीं करते थे। जब लौकिक धनदौलत हेतु ईश्वर की पूजा करते, तो नैवेद्य (ईश्वर का चढावा भोग) भी अर्पण नहीं करते उल्टे वो स्वयं खा जाते। चीनी के नैवेद्य को, ईश्वर के सामने से बड़ी जल्दी खा लेने का कारण – कहीं चींटी न खा ले और इन्हें चीनी का एक भी कण, कम न मिले।
एक दिन, उनको समाचार मिला, कि उनके किसी नजदीक रिश्तेदार का देहांत हो गया हैं। बड़े वाले लोभी भाई ने निश्चय किया, कि वह स्वयं जाकर शोकसंतप्त रिश्तेदारों से मिलेगा। अतः सुबह पैदल निकला। पैसे बचाने के उद्देश्य से उसने बस या ट्रेन से रात की यात्रा नहीं की।
बड़े भाई के जाने के बाद छोटे भाई, छोटे लोभी ने दीया बुझाया और उसे खिड़की पर रखने गया, तभी एक भयानक बिच्छू ने उसे काट लिया। तब तक, बडे लोभी जी, दो मील आगे पहुँच चुके थे। पर अचानक ही उसे वापस लौट आया देख कर, छोटे लोभी ने बड़े भाई से वापस लौटने का कारण पूछा, तो वह बोला, “ओ मेरे भाई! मुझे तो लगा कि तुमने दीया बुझाया नहीं होगा। अतः वापस लौटा याद दिलाने।” छोटे लोभी ने अफसोसपूर्वक उत्तर दिया, “तेल बचाने का तुम्हारा प्रयास तो अति सराहनीय है मेरे भाई, लेकिन वापस लौटते समय तो तुम्हारी चप्पल घिस गयी होगी |”
बड़े लोभी ने उत्तर दिया, “प्रिय छोटे भाई, तुम चिंता मत करो, मैं तो चप्पल हाथ में लेकर, नंगे पैर ही चला आया |” यही लोभ की वस्तुस्थिति होती है।
प्रश्न-
- दोनों भाई ईश्वर के प्रति कैसे कँजूसी दिखाते थे?
- घर में रह गए भाई के कँजूसीपन का उल्लेख करो।
- बड़े लोभी ने क्या किया?
- बड़े लोभी की क्या योजना थी?