अहंकार
एक बार एक युद्ध में देवताओं ने दानवों पर जीत पाई। ईश्वर की कृपा से ही यह संभव हो पाया था, लेकिन मूर्खता के कारण अपने ही बड़प्पन से फूले न समा रहे देव, अहंकार से भर उठे। उन्होंने सोचा जीत हमारी, यश भी हमारा!
ब्रह्मा जी को जब यह ज्ञात हुआ,तब उन्होंने देवों को एक पाठ पढ़ाने व उनकी गलतफहमी को दूर करने का निश्चय किया। देवताओं के जश्न के बीचों-बीच, ब्रम्हा जी वहां प्रगट हुए। लेकिन देव उन्हें पहचान न पाए, उनके अहंकार ने उन्हें अन्धा बना रखा था। उन्होंने केवल एक सुन्दर उज्जवल व्यक्ति को देखा, पर समझ नहीं पाये कि वे कौन थे। देवों ने निर्णय लिया कि जरूर पता लगायेंगे कि वह व्यक्ति कौन है। देवों ने अग्निदेव (सर्वज्ञानी) को जाँच हेतु भेजा।
अग्निदेव आगे आए, ब्रम्हा जी ने उन्हें पूछा, “आप कौन हैं?”
अग्निदेव बोले “मैं तो लोकप्रिय अग्नि हूँ। सभी मुझे सर्वज्ञानी कहते हैं |”
ब्रम्हाजी – “आपका इतना नाम व लोकप्रियता है तो, क्या आपकी शक्ति परख सकता हूँ?”
अग्निदेव बोले – “मैं तो इस पृथ्वी, आकाश व सभी सात लोकों को जला सकता हूँ |”
ब्रम्हाजी घास के एक सूखे तिनके को सामने रखकर कहा, “चलो, शक्तिशाली देव, इस घास के तिनके को जलाओ |”
अग्निदेव के सभी प्रयत्न नाकामयाब हुए, वे कोमल से घास के तिनके को जला नहीं पाए । व्याकुल शर्मिंदा होकर वापस लौटे, सबसे बोले कि वे उन अजनबी को पहचानने में असमर्थ हैं।
इसके पश्चात् पवनदेव वायु को भेजा गया। वायुदेव बड़े आत्मविश्वास से जीत की पूरी उम्मीद लेकर आए। ब्रम्हाजी ने उन्हें पूछा “आप कौन हैं?”
मैं वायु हूँ! मेरा वेग पूर्ण आकाश को हिला देता है |” ब्रम्हा ने पूछा, “आपकी क्या शक्ति है?”
“सम्पूर्ण पृथ्वी से, मैं सब कुछ उड़ा सकता हूँ” – वायु ने कहा ।
ब्रम्हाजी ने उनके समक्ष भी घास का एक तिनका रखा व उसे उड़ाने को कहा ।
वायुदेव की पूर्ण कोशिश असफल रही। निराश होकर वो भी वापस लौटे।
देवों ने अब उनके राजा इंद्रदेव से कहा, “हे पराक्रमी इंद्र देव! कृपया जा कर पता लगायें कि वे महापुरुष कौन हैं जिन्होंने दोनों देवों को पराजित कर दिया |”
सर्वशक्तिमान इंद्रदेव मान गए। लेकिन जब वे इस महापुरुष की जाँच करने आए, ब्रम्हाजी गायब हो गए। उनकी जगह थी एक सुन्दर सी महिला! वो थी उमादेवी, सोने के गहनों से लदी दिव्य ज्ञान की देवी।
इंद्रदेव ने उन्हें पूछा, “यहाँ अब तक कौन महापुरुष विद्यमान थे, जहाँ अभी आप हैं?” उमा देवी ने जवाब दिया “ओ! मूर्ख देवों! वो थे ब्रम्हदेव! ब्रम्हदेव की परम इच्छा से ही आपकी जीत संभव हुई। उनकी कृपा से ही आप दानवों को पराजित कर पाए थे। उनकी शक्ति/कृपा में विश्वास न रख कर कृतज्ञ न होकर अपने अज्ञानतावश घमण्ड में चूर आप उत्सव मना रहे हैं |”
जब इन्द्र को पता चला कि वे ब्रम्हदेव थे, उन्होंने अपने अन्य देवताओं को जाकर सत्य बताया। सभी देवता गण अपने अहंकार/घमंड से शर्मिन्दा हुए और त्रिदेवों की दिव्य शक्ति के गुणगान में मग्न हो गए।
प्रश्न
- देव अहंकारी क्यों बने?
- अग्निदेव कैसे शर्मिन्दा हुए?
- पवनदेव घास के तिनके को क्यों नहीं हिला पाए?
- उमा देवी ने इंद्र को क्या बताया?
- इस कहानी से हमने क्या सीखा है?