विश्वामित्र
हिन्दू महाग्रन्थों और पुराणों में महर्षि विश्वामित्र का नाम एक महान लोकप्रिय ऋषि के रूप में प्रसिद्ध है। लेकिन, अपने क्रोध और ईर्ष्या के कारण वे घोर तपस्या से प्राप्त शक्ति और बल, कई बार खो बैठते थे।
शुरुआत में राजा होने के दौरान, वे वशिष्ठ जी से ईर्ष्या करते थे, क्योंकि महाराज वशिष्ठ के पास, इच्छा पूर्ण करनेवाली पवित्र गाय, कामधेनु थी। जब वशिष्ठ जी ऋषि बन गए, तब उन्हें ब्रह्मऋषि का पद मिला तो वे उनसे अत्यधिक क्रोधित हुए, क्योंकि सभी मनुष्य और देवताओं ने मिलकर उन्हें ब्रह्मऋषि की पदवी दी थी। जबकि विश्वामित्र अपनी घोर तपस्या के बाद भी “राजऋषि” ही रहे। अत: उन्होंने वशिष्ठ मुनि को मारने का निश्चय किया।
एक रात, चंद्रमा की किरणों के प्रकाश में विश्वामित्र, वशिष्ठ मुनि के कुटीर गए। आश्रम में वे नहीं थे, इधर-उधर खोजा, नहीं मिले अंत में वे अपनी पत्नी अरुंधति के साथ मिले। विश्वामित्र हाथ में चाकू लेकर पेड़ के पीछे छिपकर, वशिष्ठ मुनि एवम अरुंधति के मध्य चल रहे, वार्तालाप को सुनने लगे।
अरुंधति बोली “प्रिय स्वामी! कितनी ठंडी, शीतल, रात्रि है! बहुत शांत व आनंदमय वातावरण है!”
वशिष्ठ जी बोले, “हाँ प्रिये! यही तो मेरे प्रिय विश्वामित्र की घोर तपस्या का आनंदमय प्रभाव है!”
यह सुनकर विश्वामित्र जी, स्वयं को रोक नहीं पाए दौड़ कर वसिष्ठ जी के चरणों पर जा गिरे! वो तो वसिष्ठ जी को मारने के विचार से आये थे। विश्वामित्र जी का मन पछतावे से भर गया। वसिष्ठ मुनि ने बड़े प्रेम और करुणा से उनके कंधों पर हाथ रखकर उनसे कहा, “उठिए! ओ ब्रह्मऋषि!”
विश्वामित्र जी की परम इच्छा पूर्ण हुई! क्रोध और ईर्ष्या के त्याग के बाद ही, उन्हें ब्रह्मऋषि की पदवी मिली।
प्रश्न
- राजा होने के दौरान, विश्वामित्र जी को विशिष्ठ जी से ईर्ष्या क्यों थी?
- उन्होंने तपस्या की शक्ति कैसे खोई?
- उनमें परिवर्तन कैसे आया?
- उन्हें ब्रह्मऋषि की पदवी कब मिली?