अर्थ और प्रतीकवाद
शिवरात्रि
‘शिवरात्रि’ का अर्थ है ‘शुभ रात्रि’। प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चौदहवीं तिथि को शिवरात्रि कहते हैं। माघ (फरवरी-मार्च) के महीने में आने वाली शिवरात्रि, महाशिवरात्रि कहलाती है।
शिवरात्रि को शुभ क्यों माना जाता है? चंद्रमा के 16 कला (पहलू) हैं और इसी तरह मन भी है। शिवरात्रि के दिन 15 विलीन हो जाते हैं और केवल एक ही शेष रह जाता है। मन को ईश्वर की ओर मोड़कर शेष एक पहलू को परमात्मा में विलीन किया जा सकता है। इस दिन ईश्वर का ध्यान करने से मन पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए इसे शुभ दिन माना जाता है।
औपचारिक अनुष्ठानों में शिव मंदिरों का दर्शन, शिव लिंगम को पंचामृत (दूध, दही, घी, चीनी और शहद) (यानी अभिषेक) से स्नान कराना और त्रिपत्री बिल्व के पत्तों को अर्पित करना शामिल है। लोग पूरे दिन और रात उपवास करते हैं। पूरी रात भजन गाकर जागरण किया जाता है।
प्रतीकात्मकता
लिंगम, अनादि और अनंत का प्रतीक है, और अनंग है, क्योंकि इसका कोई अंग नहीं हैं, कोई चेहरा नहीं है, कोई पीठ नहीं है, और कोई आगे नहीं है; इसकी कोई शुरुआत नहीं है और न ही कोई अंत।
‘ली’ का अर्थ है लेयते (वह जिसमें सभी नाम और रूप विलीन हो जाते हैं) और ‘गम’ का अर्थ है गम्यते (जिसकी ओर सभी रूप और नाम पूर्णता प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ते हैं)।। उपवास शब्द का शाब्दिक अर्थ है ईश्वर के समीप रहना (उप = निकट। वास = रहना)। उपवास करते समय, मन को नियंत्रित करना और उसे ईश्वर की ओर निर्देशित करना आसान होता है ताकि ‘उनके पास रह सकें’। ईश्वर के समीप रहने का अर्थ है कि हमारे विचार, शब्द और कर्म पवित्र होने चाहिए। यह केवल भोजन से परहेज नहीं है।
जागरण का अर्थ है शब्द विचार और कर्म में सतर्कता।
बिल्व पत्र तीन गुणों सत्व, रजस और तमस का प्रतीक है। मनुष्य को विवेक, भक्ति और वैराग्य के माध्यम से इन्हें पार करना चाहिए।