खोया और पाया
फादर लेवि एक खुशमिजाज इंसान थे। उन्होंने जीवन भर कड़ी मेहनत की थी, फलस्वरूप अब वो एक बड़े खेत के मालिक थे। पर्याप्त धन के अलावा, उन्हें दो अच्छे पुत्रों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। वे उनका विवाह कर, अपने पोते-पोतियों को देखने के लिए उत्सुक थे। ताकि उनका जीवन और आनंदमय हो सके। फादर लेवि अपने मकई के खेतों, अपनी भेड़ों, और मवेशियों, अंगूर के बाग-बगीचों की देखरेख में प्रसन्न रहते थे।
उसे तो बड़े शहरों की शान शौकत देखने की इच्छा थी| यह सोचकर कि शहर की मौज-मस्ती में ही असली आनंद और जिंदगी का मजा है, उसने अपना निर्णय लिया कि वह इस नीरस फार्म में एक पल नहीं रहेगा| वह अपने पिता के पास गया और बोला, “पिताजी, आपके धन में से मुझे अपना हिस्सा तुरंत दे दें| मैं घर छोड़कर जा रहा हूँ|”
फादर लेवि यह सुनकर अत्यंत दुखी हुए| उन्हें पता था कि उनके छोटे बेटे साईमन को धन से असली ख़ुशी प्राप्त नहीं होगी। वे अपने बेटे से बहुत प्रेम करते थे पर उसे घर में रहने की जबरदस्ती न कर पाए| उन्होंने विचार किया कि साईमन को अपना जीवन जीना होगा व सीखना होगा| बुद्धिमान व शुभचिंतक पिता ने पुत्र को निराश नहीं किया|
फादर लेवि ने अपने कई भेड़, केटल (मवेशी) व जायदाद का एक हिस्सा बेचा| अपने जीवन का एक तिहाई भाग बेचकर, उससे प्राप्त पूरा धन (चाँदी के सिक्के) साईमन को दे दिया|
किन्तु उनकी यह प्रसन्नता एवं संतोष कुछ ही दिनों तक रहा| उनका बड़ा बेटा तो अत्यंत परिश्रमी तथा अपने काम से संतुष्ट था| परंतु, छोटा बेटा खेती के काम से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं था| वह अपने जीवन से निरुत्साहित था |
साइमन खुशी से फूला न समाया। वह जितनी जल्दी हो सके, घर से निकल जाना चाहता था| उसने अपनी सबसे अच्छी पोशाक पहनी, चांदी के सिक्कों की थैली अपने बेल्ट के नीचे छुपाकर वह घर से निकल पड़ा| उसने अपने पिताजी फादर लेवि को बताने तक की जरूरत नहीं समझी। पिताजी ने पुत्र को दूर से ही घोड़े पर सवार होकर जाते देखा| पुत्र के चले जाने से वे बहुत दुखी थे| अब तो वे केवल पुत्र के वापसी का इंतजार कर सकते थे|
खेतीबाड़ी के माहौल से दूर होकर, साईमन बहुत प्रसन्न था| अब वह अपनी ज़िंदगी सही रूप से जिएगा! कितना आनंदित होगा!
अपरिपक्व साईमन के पास भरपूर धन था व पिता से प्राप्त धन के कारण उसके बहुत मित्र बने| उसका जीवन मात्र मौज मस्ती, पार्टी, नाच गाने व खाने पीने में बीतता रहा|
पिताजी के परिश्रम से इकट्ठे किए धन की पूर्णरूपेण बरबादी होती गई| पहले तो साईमन को चिंता नहीं हुई| काफी समय तक उसने अपने मित्रों पर अपना धन गवाँया , सोचा अब तो वे उसकी देखेरख करेंगे| लेकिन ऐसा नहीं हुआ| जब उसके पैसे खतम हो गए, तो मित्रों ने उसका साथ छोड़ दिया| अब उन्हें उसकी संगति नहीं चाहिए थी क्योंकि अब वह धनवान नहीं था| साईमन ने अपने नए पोशाक भी बेचे, कुछ न रहा |
बड़े शहर की गलियों में भटकते भटकते, साईमन दुखी हुआ| अपनों के बीच न होकर, किसी से मदद भी न मांग पाया| एक नए अजनबी शहर में अकेला पड़ गया- मित्र रहित, धन रहित!
अंत में, थक-हारकर साईमन ने शान शौकत भरा शहर छोड़कर गांव की ओर प्रस्थान किया| शायद से कोई किसान उसे एक नौकरी दे| खेती बाड़ी का ज्ञान होने के नाते, उसे एक नौकरी तो मिले| लेकिन उसे कोई नौकरी देने तैयार नहीं था| उसके पोशाक पूरे फट गए, वह भूखा था| अंत में एक किसान ने उस पर दया दिखाई| साईमन को उसके पशुओं की देखभाल करने का काम मिला। मवेशियों में भी शूकरों (सुअर) की देखभाल का कार्य उसे करना पड़ा। लेकिन साईमन बहुत भूखा था| उसका स्वाभिमान एक तरफ रह गया| उसने नौकरी ले ली| भूख मिटाने के लिए साइमन ने पशुओं को खिलाने वाली पेड़ की फलियाँ तक खा लीं|
पशुओं की देखरेख करते करते, साईमन को विचार विमर्श करने का बहुत समय मिला| वह सोचने लगा, “मैं कितना मूर्ख था! घर में मेरी कितनी अच्छी स्थिति थी, अब मेरी परिस्थिति देखो| मेरे पिताजी के नौकर भी मुझसे अधिक नसीबवान हैं| मैं वापस जाऊँगा| मैं अपनी गल्ती स्वीकार कर लूँगा| मैं कबूल करूंगा कि मैं एक कपूत बना, स्वयं के पिता को आदर सम्मान न देकर, मैंने उनकी इच्छा/आकाक्षांओं के विरुद्ध घोर अपराध किया है| मैंने पिताजी के धनजायदाद का हिस्सा तो हड़प लिया अत: मैं उनके पुत्र के रूप में वहाँ रह नहीं सकता| लेकिन उनके फार्म में एक नौकर के रूप में मुझे स्वीकार करें मैं उनसे प्रार्थना करूंगा कि मैं आपका पुत्र कहलाने के काबिल तो नहीं हूँ परंतु कृपया मुझे अपने सेवक के रूप में स्वीकार करें|
घर वापसी एक बहुत ही लम्बी यात्रा थी| मीलों पैदल चलते चलते, साईमन ने धूल भरे रास्तों को पार किया, रास्ते पर ही रात गुजारी| इस गंदे, गरीब भिखारी को फादर लेवि के पुत्र के रूप में कोई न पहचान पाया|
लेकिन एक इंसान ने उसे पहचाना। जब से उनके छोटे पुत्र ने घर छोड़ा, फादर लेवि बहुत दुखी थे| प्रतिदिन, वे अपने घर के उपरी मंजिल जाकर, रास्ते को देखते रहते, छोटे पुत्र का इंतजार करते, चाहते कि वो भटका राही वापस आए| फादर लेवि ने उस भिखारी को पहचाना, वे सीढियाँ उतरकर नीचे आए। अपना स्वाभिमान भूल कर, रास्ते पर दौड़ते हुए आगे बढ़कर, साईमन को अपने बाहों में समेट प्रेमपूर्वक उसका आलिंगन किया|
पिताजी के प्रेमभरे आलिंगन से साईमन कुछ बोल न पाया| उसने पश्चाताप भरे दबे स्वर में पिताजी से कहा, “मैं बहुत ही शर्मिंदा हूँ| मैं ईश्वर के समक्ष पापी हूँ| मैंने आपकी इच्छाओं का अनादर किया है| मैं आपका आज्ञाकारी व आदर्श पुत्र न बन पाया| मुझे अपने पुत्र बनने का सम्मान न दें, केवल आपके फार्म में एक नौकर के रूप में रखें।”
लेकिन फादर लेवि ने उसकी एक न सुनी| उन्होंने तुरन्त सेवकों को बुलाकर उन्हें आज्ञा दी “मेरा पुत्र घर वापस आया है, उसके लिए सबसे बेहतरीन वस्त्र,आभूषण तथा उत्तम स्वादिष्ट भोजन की व्यवस्था करो| हम सब आज खायेंगे, पिएंगे और मौज मस्ती करेंगे। चूँकि मेरा पुत्र जो खो गया था, आज पुन: मिल गया है| सभी नौकर चाकर अपने मालिक की आज्ञा पालन करने में व्यस्त हुए| पूरे घर में खुशखबरी फैली, फादर लेवि की ख़ुशी में सब खुश हुए|
बहुत बड़े भोज का आयोजन हुया| खाने, पीने के बाद मौजमस्ती, संगीत! सर्वत्र आनंद, शोर ही शोर! तभी बड़ा भाई जूड खेत में पूरा दिन परिश्रम कर, थका-मांदा घर आया। आते ही उसने शोर सुना! किस बात पर इतना नाच-गाना, शोर-शराबा हो रहा है? नौकर ने जूड को बताया कि साइमन के घर वापसी की खुशी में भोज आयोजित हुआ है| जूड अति क्रोधित हुआ|
नौकर ने भागते भागते फादर लेवि को जाकर जूड के खेत से वापस लौटने की खबर दी| तुरन्त फादर लेवि ने कहा “जूड को भी भोज में शामिल होने कहो| “क्या”- जूड नौकर पर चिल्लाया “क्या उन्हें लगता है कि एक बेकार पुत्र की वापसी पर मैं खुश हूँगा? उस आलसी शख्स को मैं सम्मान दूँगा?”
नौकर ने फादर लेवि को जूड का उत्तर बताया| फादर लेवि स्वयं बाहर बड़े बेटे को मिलने आए| उन्होंने जूड को दया व प्रेम भरे शब्दों में समझाया| लेकिन क्रोधित जूड गुस्से में कुछ सुनने तैयार नहीं था| पिताजी के प्रति अपना आदर सम्मान भी भूल गया| मैंने इतने वर्ष आपकी खेती (फार्म) में परिश्रम किया! हर वक्त आपकी आज्ञा का पालन किया। आपकी सेवा की, लेकिन आपने मेरे लिए कभी भी एक भोज का आयोजन किया? ताकि मैं अपने मित्रों के साथ मौज करूँ? नहीं! लेकिन मेरे उस निकम्मे भाई के वापस लौटने से उसे क्या मिला? उसके लिए तो हम सब बेकार थे! उसने तो आपका पूरा धन गंवाया, बड़े शहर में जाकर सब कुछ बरबाद किया, और तब भी उसे भोज मिल रहा है!
फादर लेवि जूड को भी उतना ही प्यार करते थे जितना साईमन से! उन्हें जूड का क्रोध समझ आया, उन्होंने जूड पर गुस्सा नहीं दिखाया व उसके अपने भाई के प्रति प्रेम के अभाव पर संकोच नहीं किया| जूड के कन्धों पर हाथ रखते हुए उन्होंने कहा, “मेरे प्यारे पुत्र जूड, तुम तो मेरे साथ ही हो| मैं जानता हूँ कि मैं तुम पर निर्भर रह सकता हूँ| मेरा जो कुछ है वो तुम्हारा ही है। चूंकि साईमन को अपना हिस्सा मिल चुका है| लेकिन वह भी मेरा बेटा है, जैसे कि तुम हो| मैं दोनों को बहुत प्यार करता हूँ| मैंने तो सिर्फ उसका घर में स्वागत किया| जैसे मैं तुम्हारी उपस्थिति में खुश हूँ वैसे ही मैं उसकी उपस्थिति में खुश हूँ| जब वह चला गया, मैंने सोचा मैं उसे कभी न देख पाऊँगा। अब वह मृत्युलोक से वापस लौटा है! मृत था, अब जीवित है| वह खो गया था, अब पुन: मिल गया है! प्यारे जूड, मेरे साथ अंदर आओ| मेरे साथ अंदर आकर मेरा आनंद मेरे साथ बाँटो!”
प्रश्न:
- फादर लेवि के दूसरे पुत्र के चरित्र पर प्रकाश डालें?
- छोटे पुत्र ने जायदाद का अपना हिस्सा मांगने पर फादर लेवि ने क्या किया?
- फादर लेवि को अपना खोया हुआ पुत्र कब मिला? उन्होंने क्या किया?
- बड़ा पुत्र फादर लेवि से क्यों क्रोधित हुआ व फादर लेवि ने उसे क्या जवाब दिया?