शत्रौ मित्रे
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श्लोकाचे बोल
- शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ
- मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ
- सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं
- सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम्
अर्थ
कोणाकडेही मित्र वा शत्रु, पुत्र, बंधुबांधव ह्या दृष्टीने पाहू नका. मित्रत्व वा शत्रुत्व ह्या विचारांमध्ये तुमच्या मानसिक उर्जेचा अपव्यय करु नका. सर्वत्र आपल्या आत्मस्वरुपाला पाहा, सर्वांप्रती आपुलकी व समभाव बाळगा, सर्वांशी एकसमान वागणूक ठेवा.
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स्पष्टीकरण
शत्रौ | शत्रुंच्या प्रती |
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मित्रे | मित्राप्रती |
पुत्रे | मुलाप्रती |
बन्धौ | बांधवांप्रती |
मा | करु नका |
कुरु | करणे |
यत्नं | प्रयत्न |
विग्रहसन्धौ | मतभेद, कलह किंवा शांतता निर्माण करणे |
सर्वस्मिन्नपि | सर्व प्राणिमात्रात किंवा सर्व जीवांमध्ये |
पश्यात्मानं | स्वतःला पाहा |
सर्वत्र | सर्वत्र |
उत्सृज | त्याग करणे |
भेद अज्ञानम् | फरक / द्वैत |
Overview
- Be the first student
- Language: English
- Duration: 10 weeks
- Skill level: Any level
- Lectures: 0
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