हाथ समाज में, मस्तिष्क जंगल में!
भगवान श्री सत्य साई बाबा ने अपने श्री सत्य साई बालविकास कार्यक्रम के माध्यम से विश्वव्यापक तौर पर, एक सार्थक संस्कारी जीवन का निर्माण करने का व्यक्तिगत उत्तरदायित्व निभाने की प्रेरणा दी।
भगवान बाबा का कथन है अध्ययन से ही स्थिरता आती है। शिक्षा का लक्ष्य मात्र सैद्धांतिक ज्ञान की प्राप्ति ही न हो, बल्कि उससे हम व्यवहारिक जीवन में भी लाभ उठायें। पशु-पक्षी तो शिक्षा के बिना ही जी लेते हैं, परन्तु एक सक्षम, सुचरित्रवान मनुष्य का निर्माण ही मानव शिक्षा का मुख्य ध्येय है।
अतः श्री सत्य साई बाबा द्वारा स्थापित श्री सत्य साई बालविकास, ईश्वरीय उक्ति “अच्छे चरित्र का निर्माण ही शिक्षा का लक्ष्य है” पर आधारित है।
बालविकास का अर्थ है – मूल्यवान संस्कारों का निर्माण। व्यक्तिगत मूल्यों को हम न तो पुस्तकों से, और न ही अन्य किसी से भेंट स्वरूप प्राप्त कर सकते हैं। ये मूल्य हर व्यक्ति में निहित होते हैं। श्री सत्य साई बालविकास द्वारा सही रूप में उचित परिवेश का निर्माण किया जाता है जहाँ प्रत्येक बच्चे के आंतरिक सद्गुण पल्लवित होते हैं और उनमें उत्कृष्ट परिवर्तन हो पाता है।
बालविकास का मुख्य उद्देश्य हर बच्चे में आंतरिक परिवर्तन लाना है, अतः श्री सत्य साई संस्थानों के अंतर्राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत बालविकास कक्षाओं का होना अनिवार्य है, चूँकि यही बच्चे आत्म खोज (सेल्फ डिस्कवरी) व आत्म परीक्षण (सेल्फ़ ईन्क्वायरि) के द्वारा आनेवाले समाज के पथप्रदर्शक बनेंगे। अतः श्री सत्य साई बालविकास कार्यक्रम के माध्यम से हर बच्चे को मूल मानवीय मूल्यों – सत्य, धर्म, शांति, प्रेम व अहिंसा को अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करने की शिक्षा दी जाती है।
प्रार्थना, सामूहिक गान, ध्यान, कहानी कथन व समूह कार्यकलापों जैसे सहज शैक्षणिक तकनीकों द्वारा बालविकास गुरू, बच्चों को उनमें अंतर्निहित क्षमता का स्मरण दिलाकर आत्मविश्वास से उत्तम नागरिक बनने का प्रोत्साहन देते हैं।
बच्चों को मानवीय मूल्यों के पथ पर आजीवन चलने की प्रेरणा देना ही श्री सत्य साई बालविकास कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य है।