मानव सेवा ही माधव सेवा है।

Print Friendly, PDF & Email
मानव सेवा ही माधव सेवा है।

मार्टिन जूते बनाता था। वह सोते समय बाईबल अपने हृदय पर रखकर सोया। सोते समय क्राइस्ट के निम्न शब्दों पर ध्यान था, “देखो, मैं द्वार पर ही खड़ा होता हूँ, दरवाजा खटखटाता हूँ। यदि कोई व्यक्ति मेरी पुकार सुनकर द्वार खोल देगा तो मैं अंदर उसके पास आ जाऊँगा। मैं उसके साथ भोजन करूँगा और जो मेरे साथ कष्टों को पार करेगा मैं उसे अपनी गद्दी पर बैठाने का आश्वासन देता हूँ। ठीक वैसे ही जैसे मैंने कष्टों को पार कर अपने पिता के साथ उनकी गद्दी पर बैठने में सफलता प्राप्त की है।”

प्रभु उस दिन उसके सपने में आए एवं उसको वचन दिया कि दूसरे दिन वे उसे भेंट देंगे। अत: अपने स्नान ध्यान के बाद उसने स्टोव पर दुगुना भोजन एवं चाय बनाई एवं अत्यंत आतुरता से प्रभु के आने की प्रतीक्षा करने लगा। अभी बर्फ पड़ ही रही थी कि जिस व्यक्ति पर उसकी प्रथम दृष्टि पड़ी वह नगर पालिका का सड़क का रखरखाव करने वाला व्यक्ति था। उसे लोगों के जागने एवं द्वार खोलने से पहले अपना काम पूर्ण करना था। मार्टिन के मन में विचार कौंधा कि यह बूढ़ा बाहर बर्फ में ठिठुर कर उन लोगों के घरों की सीढ़ियों एवं खिड़कियों की बर्फ हटाने में लगा है जो अपने घर में अंगीठी जलाकर एवं कंबलों को ओढ़कर आराम कर रहे हैं।

मार्टिन ने उसे अपने पास अंदर बुलाया अपने हिस्से की चाय दी एवं स्टोव पर हाथ तापने के लिए कहा। दूसरा व्यक्ति जो उसने अपने द्वार पर देखा वह एक महिला थी। वह इतनी भूखी थी तथा शीत से इतनी ठिठुर रही थी कि उसे एक कदम भी चलना दुष्कर हो रहा था। मार्टिन ने उसे अंदर बुलाया उसे अपना कंबल उतारकर ओढ़ाया और अपने हिस्से का भोजन खिलाया। वह बूढ़ी महिला भी उसे धन्यवाद देकर चली गई।

तत्पश्चात् उसने एक महिला को वहाँ से गुजरते हुए देखा जिसकी गोद में एक बच्चा था और वह भूख से बिलख-बिलख कर रो रहा था। मार्टिन ने उस महिला को अंदर बुलाया, उसे प्रभु के हिस्से का भोजन दिया एवं बच्चे को प्रभु के हिस्से का दूध पीने को दिया। फिर उसने उस महिला को अपनी मृत पत्नी का ड्रेस ढूँढ़कर पहनने को दी। वह महिला भी आभार व्यक्त कर चली गई।

सारा दिन बीत गया शाम हो रही थी अब प्रभु के आने की आशा समाप्त हो चुकी थी। वह अब निराश एवं दुःखी होकर बैठ गया। उसने सोचा कि यदि अब प्रभु आएँगे तो उनका स्वागत वह कैसे करेगा?

अब उसके पास उन्हें देने के लिए न तो भोजन था न ही दूध जैसे ही उसके मन में यह विचार आया उसका मन अंधकार में डूब गया। किंतु जैसे ही रात हुई और सारा संसार अंधकार में डूब गया, उसे अपनी कुटिया में किसी के चलने की पदचाप सुनाई दी। उसने झोपड़ी में एक विचित्र प्रकाश देखा जिससे सारी झोपडी प्रकाशित हो गई थी। उसने कोई दीपक भी जलाकर नहीं रखा था अतः वह आश्चर्यचकित था।

उसने उस प्रकाश में सड़क का रखरखाव करने वाले बूढ़े के दर्शन किए। वह बूढ़ा उसे धन्यवाद देकर ओझल हो गया। फिर उसके स्थान पर उसने बूढ़ी महिला को देखा। वह भी उसे आशीर्वाद देकर अदृश्य हो गई। अंत में उसने उस भूखी महिला को उसके भूखे बच्चे के साथ प्रकाश में देखा। वे भी अंतर्ध्यान हो गए। अब वहाँ कौन था? वहाँ और कोई न था। यह तो प्रभु ही थे जिन्होंने उसकी परीक्षा ली थी। वह प्रभु ही थे जिसकी उसने विभिन्न रूपों में पूजा की थी। उसने आवाज सुनी, “यह मैं और केवल मैं ही था।” प्रभु ने उसे आशीर्वाद दिया एवं अदृश्य हो गए।

प्रश्न:
  1. मार्टिन कैसा व्यक्ति था?
  2. ईश्वर ने मार्टिन को सपने में क्या कहा?
  3. उसने सड़क के रख-रखाव करने वाले कर्मचारी को किस प्रकार सहायता पहुँचाई?
  4. इस कहानी से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है?

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

error: