लुई पाश्चर

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लुई पाश्चर

एक दिन एक छोटा बालक लुहार की दुकान के एक दृश्य को चकित एवं दर्द भरे भाव से देख रहा था। एक व्यक्ति को पागल कुत्ते ने काट लिया था ,उसका जहर व्यक्ति में न फैल जाए इसलिए लुहार लोहे की छड़ को तपा कर घाव में दाग रहा था। उसके साथी ने उसको कस कर पकड़ कर रखा था। गर्म लोहे के दागने के दर्द से व्यक्ति चीख़ता हुआ बेहाल हो रहा था।

यह घटना सन् 1831 की थी, बालक लुई पाश्चर के पिता जीन जोसफ पाश्चर एक चमड़े के कारीगर थे।उन दिनों पागल कुत्ते के काटने से होने वाली गम्भीर बीमारी रैबिज के इलाज का यही एक उपचार ज्ञात था। आधी शताब्दी बाद इसी बालक का एक महान वैज्ञानिक बनना तय था, जो इस गम्भीर बीमारी का इलाज खोजने वाला था।

रैबिज एक ऐसी बीमारी है जो कुत्ते लोमड़ी, सियार, और चमगादड़ से होती है पर मुख्यतया इस बीमारी से पागल हुए भौंकते कुत्ते के काटने से ज्यादा फैलती है।

यह बीमारी कुत्तों से दूसरे जानवरों में फैलती है और इलाज न होने पर दर्दनाक मृत्यु में परिणित होती है।

पाश्चर की खोज से पहले इसका इलाज गर्म लोहे की छड़ से जख्म को गोदने तक सीमित था। परंतु इससे बीमारी दूर नहीं होती थी अपितु कष्ट की मात्रा और अधिक हो जाती थी।

लुई पाश्चर का जन्म 1822 में, फ्रांस के डोले गाँव में हुआ था, कुछ खास लक्षण नहीं थे बच्चे में, न ही किसी ने सोचा था कि एक साधारण सा बालक एक असाधारण कार्य करके पूरे विश्व को चकित एवम् उसका ऋणी कर देगा।

युवावस्था में उनको भौतिक और रसायन शास्त्र में बेहद रुचि थी।आगे चलकर इस रुचि ने उन्हें रसायन शास्त्र के प्राध्यापक पद पर, लील नामक शहर जो अँगूर की खेती और उससे बनने वाले वाइन के लिए प्रसिद्ध था, आसीन किया।

इस शहर से ही उनकी कई खोज, आविष्कारों की शुरूआत हुई, जो मानव कल्याणकारी साबित हुई।

उन्होंने साबित किया कि वाइन, दूध तथा मक्खन को खट्टा करने वाले एक प्रकार के सूक्ष्म जीवाणु होते हैं। इन जीवाणुओं को साधारणतया सूक्ष्मदर्शी यंत्र के द्वारा ही देखा जा सकता है। इन जीवाणुओं को नष्ट करने का एक मात्र उपाय है गर्म करना। ये उपाय आज तक, दूध को उबाल के सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है। इस से यह तथ्य प्रकट हुआ कि मनुष्य, जानवर और पेड़ पौधों में बीमारी इन सूक्ष्म खतरनाक जीवाणुओं के कारण होती है।

उन दिनों फ्रांस के रेशम उद्योग को एक महामारी के प्रकोप ने घेर लिया। रेशम बनाने वाले लाखों कीड़े एक अंजान बीमारी से ग्रसित होकर मर रहे थे। इन उद्योगों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा था।

पाश्चर ने इस बीमारी पर गहन शोध कर पाया कि, एक प्रकार के कीटाणुओं के कारण ये समस्या हो रही है। उन्होंने किसानों को इस महामारी से बचने के उपाय बताए।

Louis Pasteur doing reseach

उनका अगला अविष्कार था, रैबिज नामक बीमारी पर विजय हासिल करना। उन्होंने कई प्रयोग किये, जिनमें हैजा के जीवाणुओं को प्रयोगशाला में उत्पन्न कर स्वस्थ्य मुर्गियों में इंजेक्शन द्वारा प्रेषित किया गया। मुर्गियां बीमार होकर मरने लगीं। इससे विश्वास हो गया कि जीवाणु द्वारा रोग फैलते हैं।

इस के बाद उन्होंने रैबिज के जीवाणु कहाँ मिलेंगे इसकी खोज शुरू की। उनको लगा पागल कुत्तों के लार में इसका होना तय है, क्योंकि उनके काटने से ही मनुष्य, उस लार से संक्रमित होता है।

इस तथ्य को साबित करने हेतु, उनको बीमार कुत्ते की लेसर की आवश्यकता थी, जो बहुत खतरनाक कार्य था। इस कार्य के लिए दो हृष्ट पुष्ट व्यक्तियों को कस कर कुत्ते को एक बेंच पर पकड़ना होता, पाश्चर तब एक काँच की नली द्वारा थोड़ा लार निकाल पाते थे। ये उन व्यक्तियों का साहस और कर्तव्य निष्ठा ही थी जो यह कार्य सम्पन्न कर सकी। जरा सी चूक उनके जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकती थी।

उस लार को फिर एक स्वस्थ कुत्ते में इंजेक्ट कर दिया गया। पर इसमें एक कठिनाई यह महसूस हुई कि, कई महीने लग जाते थे, इस बीमारी को उत्पन्न होने में।

इस मुश्किल से निजात पाने हेतु, उन्होंने इस बार लार को सीधे दिमाग मे इंजेक्ट किया, क्योंकि ये जीवाणु सीधे, जंतु के दिमाग पर असर करते हैं। ऐसा करते ही उनको सफलता मिली, स्वस्थ कुत्ता दो हफ्ते में बीमार हो गया।

अगला कदम था, कि क्या स्वस्थ जानवरों को इस बीमारी से सुरक्षित करने हेतु, कमजोर रैबिज जीवाणुओं को इंजेक्ट कर दिया जाए। यदि हैजा को रोकने में ये उपाय उपयुक्त रहा तो इस क्षेत्र में भी होगा।

उन्होंने एक खरगोश पर इस जीवाणु युक्त लार का प्रयोग दिमाग मे किया। उसकी मृत्यु के उपरांत एक दिमाग के हिस्से को एक जीवाणु रहित काँच की शीशी में 14 दिन रख कर जीवाणु को कमज़ोर किया गया। फिर उस दिमाग के अंश को पीस कर पानी में मिला कर, इंजेक्शन द्वारा स्वस्थ कुत्तों में डाला गया।

अगले दिन दिमाग के उस अंश को जो 13 दिन रखा गया था, इंजेक्ट किया गया। ऐसे ही हर बार अलग अलग स्तरों पर जीवाणु की उपस्थिति के रहते, ये इंजेक्ट किया गया। सबसे अंत मे ,एक दिन के लिए रखे गए अंश को इंजेक्ट किया गया। ये प्रयोग 14 दिन चला, उन्होंने अपने कुत्ते को रैबिज ग्रसित कुत्ते से कटवाया और उत्साहित होकर पाया कि उनके कुत्ते इन जीवाणुओं से लड़ने में सक्षम हैं।

अब बारी थी, इंसान में इसका प्रयोग करना। इसके लिए उन्होंने जोसफ मेस्टर नामक एक व्यक्ति को चुना जिसको कई बार पागल कुत्तों ने काटा था, और शरीर के घाव को अब और लोहे के गर्म छड़ से गोदने की गुंजाइश भी नहीं थी।

उन्होंने जोसफ को उसी प्रकार इंजेक्शन दिया जिस प्रकार कुत्तों को दिया था। दस इंजेक्शन दिए गए, विषैलेपन की मात्रा को बढ़ाते हुए। इससे लड़के की बीमारी ठीक होने लगी और वह स्वस्थ होकर गाँव लौट गया।

उनका अगला मरीज था, जुबली नामक लड़का, जिसे बुरी तरह एक पागल कुत्ते ने काटा था, अपने मित्र को बचाते हुए। पाश्चर ने यही प्रयोग उसपर भी किया और सफल हुए, जुबली कुछ दिनों में ठीक हो गया।

पूरे विश्व मे यह खबर फैल गई। लोग उनके पास फ़्रांस के विभिन्न शहरों से ही नहीं अपितु अमेरिका, जैसे विकासशील देशों से भी आने लगे। उनका जगह जगह सम्मान होने लगा और वे फ्रांस के सुनामधन्य पुत्र के रूप में विख्यात हुए।

प्रश्न:
  1. वह कौन सी घटना थी जिसने बालक को विचलित किया?
  2. पुरातन समय में कुत्ते के काटने पर कैसा इलाज होता था?
  3. उन्होंने कौन सा अविष्कार किया?
  4. लुइस पाश्चर ने मानव जाति की सेवा और भलाई के लिए कौन सा अभूतपूर्व कार्य कि?

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