उद्धरेदात्मनात्मानं
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श्लोक
- उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्
- आत्मैव ह्यात्मनो बंधुरात्मैव रिपुरात्मन:।।
भावार्थ
मनुष्य को चाहिए कि वह स्वयं को अपने आप ऊपर उठाए। अपनी आत्मा को अधोगति में न पहुँचने दे। क्योंकि यह जीवात्मा स्वयं ही उसका मित्र है और स्वयं ही उसका शत्रु है।
व्याख्या
उद्धरेत | उठाओ |
---|---|
आत्मना | अपने आप से |
ना | नहीं |
आत्मानम् | स्वयं |
अवसादयेत् | डूबने दें |
आत्मैव (आत्मा+येव) | वह स्वयं ही |
ह्यात्मनो (हि+आत्मनाः) | उसके लिए |
बंधु: | दोस्तों |
आत्मैव | वह स्वयं ही |
रिपु: | शत्रु |
आत्मान: | उसका |
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