प्रस्तुतिकरण

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प्रस्तुतिकरण

बच्चो शांत और सीधे बैठो। अपने सामने रखी लौ की ओर देखो। धीमी लय में साँस लो और छोड़ो। बहुत धीरे से अपनी आँखें बंद करो। कुछ अभ्यास के बाद आँखें बंद रखते हुए भी आप इस ज्योति को अपने मानस पटल पर देख सकेंगे। यह ज्योति निर्मल है। यह ज्ञान और विवेक है। अब इस पवित्र ज्योति को अपने ललाट के मध्य में दोनों आँखों के बीच में लाते हैं। अब धीरे-धीरे हम इस ज्योति को अंदर ले जाते हैं। यह हमारे मस्तक को प्रेम और अच्छाई के स्वर्णिम प्रकाश से भर देती है।

अब, धीरे-धीरे, अपने भीतर ही इसको नीचे उतारों और कंठ के मार्ग से हृदय की सतह तक लेकिन शरीर के मध्य में लाओ। सामान्यतः इसी को हमारे ‘आध्यात्मिक हृदय’ का स्थान माना जाता है। इसकी कल्पना एक कमल की कली के रूप में करो ज्योति के प्रकाश और ऊष्मा से उसकी पंखुड़ियाँ एक-एक करके खुलने लगती है। अब ज्योति नीचे आकर कमल के फूल के केन्द्र में स्थित हो जाती है। धीरे-धीरे फूल मुरझा जाता है शेष रहती है केवल ज्ञान की पवित्र ज्योति। आध्यात्मिक हृदय के आले में आसन जमाए हुए यह चारों ओर प्रेम और ऊष्मा फैला रही है।

अब शरीर के विभिन्न अंगों को पवित्र और निर्मल करने की दृष्टि से उनमें ज्योति ले जाते हैं। हम दोनों आँखों को दिव्य प्रकाश से भरने के लिए उनमें ज्योति को लाते हैं। अब हम अपने चारों ओर भला ही भला देखेंगे। हम ज्योति को दोनों कानों में लाते हैं और इनको पवित्र करते हैं। अब ये अच्छी ध्वनियों ही सुनेंगे भक्ति संगीत, आनंददायक शब्द न कि गंदा संगीत या दूसरों की आलोचना।

भला देखो; बुरा मत देखो
भला सुनो; बुरा मत सुनो
भला बोलो; बुरा मत बोलो
भला सोचो; बुरा मत सोचो
भला करो; बुरा मत करो। – श्री सत्य साई बाबा

हम ज्योति को जीभ और मुँह पर लाते हैं ताकि वे शुद्ध प्रकाश से भर जाएँ। हम विनम्रता तथा प्रेमपूर्वक बोलें, प्रभु के गुणगान करें। केवल स्वास्थ्यकर भोजन और पेय ही खाएँ-पीएँ। हमारा पूरा मन प्रेम की ज्योति से भर जाए।

इसी प्रकार, हम ज्योति को दोनों भुजाओं में फिर उँगलियों तक ले जाते हैं। फिर, हम ज्योति को दोनों टाँगों में और पैरों की उँगलियों तक ले जाते हैं और उनको पवित्र प्रकाश देते हैं। अब हमारे हाथ जो भी काम करते हैं, हमारे पैर जहाँ ले जाते हैं, वह अच्छा ही होगा। अब ज्योति को वापस आध्यात्मिक हृदय के केन्द्र में ले आएँ।

अब हमारा पूरा शरीर दिव्य ज्योति से भर गया है। हम अपने अंदर प्रेम की ऊष्मा का अनुभव कर रहे हैं। अब हम इस प्रेम को दूसरों के साथ बाँट सकते हैं। कल्पना करें कि हममें से फैलता हुआ यह प्रकाश आपके पूरे शरीर को समाविष्ट करते हुए उससे भी आगे फैल रहा है। अपने आपको प्रेम के प्रकाश में लिपटा हुआ अनुभव करें। पहले ज्योति मुझमें थी; अब मैं ज्योति में हूँ।

ज्योति का इतना विस्तार होने दो कि वह आपके प्रियजनों – माता, पिता, भाई, बहन आदि सबको ढँक ले। इन सबको अपने प्यार से घिरे हुए महसूस करो। अब इसका विस्तार अपने मित्रों, रिश्तेदारों और पालतू पशुओं तक होने दो। जिनसे आपकी अनबन हो, उन तक भी अपना प्यार पहुँचने दो ताकि वे आपके मित्र बन जाएँ।

अब पूरी दुनिया को घेरने के लिए इस ज्योति को चारों ओर फैलाओ। महसूस करो कि चारों ओर प्रेम की ऊष्मा है; केवल प्रेम, शांति और आनंद है। अनुभव करो कि “तुम और प्रकाश एक ही हो।”

धीरे-धीरे ज्योति को समेटो और वापस अपने ही में समाहित कर लो। कुछ समय तक वहीं रहने दो। शांति का, हर्ष का आनंद लो। अब लौटने का समय हो गया है। दोनों हथेलियों को नमस्कार की मुद्रा में जोड़ो और आपस में धीरे से रगड़ो; फिर उनसे हलके से अपनी बंद आँखें रगड़ो। धीरे से आँखें खोलो।

यदि बच्चों को इस सत्र में आनंद मिला है तो वे अपनी ऊर्जा में बढ़ोत्री पाएँगे और अधिक शांति तथा धैर्य का अनुभव करेंगे। वे इस गतिविधि को प्रेरक पाएँगे। परीक्षा का प्रश्न पत्र लिखने के पहले तथा सोने के पहले प्रार्थना करते समय उन्हें मौन बैठक या ज्योति ध्यान करने के लिए कहिए।