आदाय दिव्य
आदाय दिव्य
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पंचम पद
- आदाय दिव्य कुसुमानि मनोहराणि
- श्रीपाद पूजन विधिम् भवदङ्घ्रिमूले।
- कर्तुं महोत्सुकतया प्रविशन्ति भक्ताः
- श्री सत्य साई भगवन् तव सुप्रभातम् ॥५॥
भावार्थ
भक्तगण भगवान के चरणों की पूजा के लिए शास्त्रों में बताए अनुसार बहुत ही मनोहारी रंग-बिरंगे पवित्र पुष्पों को लाए हैं। वे बहुत सारी आकाँक्षाओं के साथ उत्साहपूर्वक आए हैं। हे भगवान उनकी अन्तः चेतना को जागृत करके आशीर्वाद दीजिए।
व्याख्या
आदाय | लाए हैं |
---|---|
दिव्य | दैवी |
कुसुमानि | पुष्प |
मनोहराणि | आकर्षक और लुभावना |
श्री पाद पूजन | चरण कमलों की पूजा करने |
विधिम् | परम्परा के अनुसार |
भवदङ्घ्रिमूले | आपके पवित्र चरण |
कर्तुम | करना |
महोत्सुक तया | बहुत ही उत्साह के साथ, आकांक्षा के साथ |
प्रविशन्ति | प्रवेश कर रहे हैं |
भक्ताः | भक्तों |
आंतरिक महत्व
हे भगवान, कांतियुक्त दैवी सत्य को मेरी चेतना में उदित कीजिए और अपने दिव्य प्रकाश से मुझे प्रकाशित कीजिए जिससे सत्, रज एवं तम तीनों गुणों से प्रेरित कर्म सुंदर हों, फूल जैसी सुगंध बिखेरें और हमें अपने अन्य भाइयों की सेवा के लिए प्रेरित करें।
हमें अपनी अंतर्चेतना को जगाने का आशीर्वाद लेकर अच्छे दिन का प्रभात होने की प्रार्थना करना चाहिए।
व्याख्या
हमारे हृदय में सद्ज्ञान जागने के पश्चात हमारे जीवन में परिवर्तन आ जाता है और हम अपने गुरु के प्रति प्रेम और कृतज्ञता को प्रदर्शित कर पाते हैं। गुरु ही हमें हमारे जीवन के लक्ष्य से परिचित कराता है। हम अपने लक्ष्य प्राप्ति की यात्रा प्रारम्भ कर दें, यही वास्तविक सत्य है। नाम संकीर्तन के करते रहने से अब हमारा मन साफ और पवित्र हो गया है, अत: हमारी चेतना उत्तरोत्तर ऊँची उठ रही है। अब गुरु से हमारा सम्बन्ध बहुत ही घनिष्ठ अथवा ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए उसके चरण कमलों में पूजा के सच्चे पुष्प अर्पित करने पड़ेंगे। ये आठ प्रकार के पुष्प हैं, जो दिन प्रतिदिन खिलते और विकसित होते हैं। यही सच्ची पाद पूजा है जो भगवान चाहता है| प्रकृति के पुष्प तो सूख जाते हैं, मुरझा जाते हैं परंतु ये पुष्प जो हमारे हृदय में खिलते हैं, हमेशा तरोताजा रहते हैं, सदा खिले रहते हैं और ये ही पाद पूजा के लिए बहुमूल्य भेंट हैं। ये पुष्प हैं :-
- अहिंसा – मन, वचन, कर्म से हिंसा न करना, प्रेमपूर्ण रहना
- इंद्रिय निग्रह – इंद्रियों पर नियंत्रण
- सर्वभूतदया पुष्पम् – प्राणिमात्र के लिए सहानुभूति और दया
- क्षमा – धैर्य
- शांति – समत्वभाव
- सत्य – सभी प्राणियों के अंदर निहित सत्य
- ध्यान – हमारी अन्तर्निहित दिव्यता के प्रति जागृति, विचार, वाणी और क्रिया के प्रति जागरूक रहना
- तपस – विचार, शब्द और कार्य में एकरूपता
पाद पूजा :
जरूरतमंद और बीमार व्यक्तियों की सेवा सच्ची पूजा है। भगवान हमारे सभी साथियों के हृदय में निवास करता है और चूंकि वह सबके हृदय में अंतर्निहित है वह हमारी सेवा, (जो हम अन्य साथियों की करते हैं) स्वीकार करता है, ग्रहण करता है।
भगवान के चरणों की पूजा, पारंपरिक है जिसे पाद पूजा कहते हैं। स्वामी कहते हैं -“सम्पूर्ण विश्व भगवान का शरीर है। विचारक, वैज्ञानिक तथा योजना बनाने वाले – भगवान का मस्तिष्क है। समाज के संरक्षक जैसे – जल सेना, थल सेना व वायु सेना आदि भगवान की भुजाएं हैं। व्यापारिक समाज भगवान की जंघा हैं और सेवक, गरीब नीचे तदके के लोग भगवान के चरण हैं। स्वामी कहते हैं, “उसकी सेवा, जो सबकी सेवा करता है, परंतु दूसरे से कभी सेवा आकांक्षा नहीं रखता, वही पाद पूजा और पाद नमस्कार है, मैं ऐसे लोगों का स्वागत करता हूँ।”
सुप्रभातम् के पाँचवे पद में हम मनोमय कोष तक पहुँच जाते हैं, यहाँ हमारा सूक्ष्म शरीर है।
भगवान के चरणों तक ले जाने के लिए यही सम्पूर्ण शक्ति और सर्वगणों से युक्त है। हम अपने अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के गुणों को उनको समर्पित करते हैं जिससे वह हमारा उचित मार्गदर्शन कर सके, हमें सुधार सके। यह पद बहुत ही सुंदर है, जिसमें सुगंध से परिपूर्ण मनमोहक रंगोवाले सुंदर पुष्पों को भगवान के चरण कमलों में अर्पित करने का आकर्षक शब्द चित्र प्रस्तुत किया गया है। भगवान के छोटे और कोमल चरणों को हमें अपने हृदय में प्रतिस्थापित करना चाहिए। उसके उपदेशों को, आदर्शों को निरंतर स्मरण रखना ही उस तक पहुँचने का उत्तम मार्ग है। यह पद हमारे मन को या सूक्ष्म शरीर को उत्साहित करता है और आनंद प्रदान करता है कि हम पाद पूजा करें। यह हमारे अंतर को छू जाता है और भगवान के दर्शन की अभिलाषा को बढ़ाता है।