ईश्वराम्बा सुत श्रीमन्
ईश्वराम्बा सुत श्रीमन्
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प्रथम पद
- ईश्वराम्बा सुत श्रीमन्, पूर्वा संध्या प्रवर्तते
- उत्तिष्ठ सत्य साईशा कर्त्तव्यम् दैवमाह्निकम्॥१॥
भावार्थ
हे ईश्वराम्बा के पुत्र भगवान या ऐश्वर्ययुक्त आभा से मंडित भगवन पूर्व अरुणोदय हो रहा है। सत्य पर चलने का ईश्वरीय कर्त्तव्य का संकल्प जो आपने लिया है, वह पूर्ण करना है अतएव हे सत्य साई भगवान जागिए, उठिए।
व्याख्या
ईश्वराम्बा सुतः | ईश्वराम्बा के पुत्र |
---|---|
श्रीमन् | श्रीमान ( आदरसूचक ) |
पूर्वा संध्या | पूर्व में अरुणोदय |
प्रवर्तते | हो रहा है |
उत्तिष्ठ | उठिए |
सत्य | सत्य |
साईशा | हे भगवान श्री सत्य साई |
कर्त्तव्यम् | आप अपने दैविक कार्य कीजिये |
दैवमाह्निकम् | दैनिक दिनचर्या |
सुप्रभातम् का आंतरिक महत्व
हम ईश्वर की सन्तान हैं l प्रतिदिन हम अपनी दिनचर्या प्रारम्भ करने से पूर्व यह जागरूकता अपने मन में लायें, ताकि हम अपनी अंदरूनी दिव्यता को जागृत कर सकेंl भगवान श्री सत्य साई बाबा कहते हैं, “मैं भगवान हूँ और तुम भी भगवान हो।”
प्रातःकाल की बेला में जब हम सुप्रभातम् का उच्चारण करते हैं तो हमें अपने मन में यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिये कि हमारा स्वामी, ईश्वर हमारे अंतस् में विद्यमान है जो इन्द्रियों के माध्यम द्वारा हमसे अनेकों कार्य कराता है। हमारे कार्य ऐसे होने चाहिए जिन्हें ईश्वरीय कार्य की संज्ञा दी जा सके अर्थात जिन्हें अच्छे कर्म के नाम से पुकारा जा सके। कोई भी बच्चा जब कोई कार्य करता है अथवा कोई विचार मन में लाता है तो वह याद रखता है कि “भगवान साई मेरे अंतस् में विराजमान हैं अतः क्या “वो” अर्थात भगवान ऐसे कार्य कर सकते हैं जो कि मैं कर रहा हूँ। या ऐसे विचार भगवान के मन में आ सकते हैं जो कि अपने मन में ला रहा हूँ।” तोउसको उचित कार्य करने की प्रेरणा प्राप्त होगी। यहाँ पर स्पष्ट कर देना उचित होगा कि भगवान सभी का कल्याण करते हैं अतः जब बच्चा स्वयं को भगवान का स्वरूप समझता है तो वह भी सबके कल्याण का ही विचार मन में लाएगा और ऐसे ही कर्म भो करेगा जो कि सभी के लिये कल्याणकारी हों। प्रातःकाल की बेला में जैसे ही नया दिन शुरू होता है, हमें सुप्रभातम् का गान करना चाहिये । इसका गान करने से हमें सदा यह याद रहेगा कि ईश्वर हमारे अन्तर में ही विद्यमान है। उसे कहीं दूर खोजने की आवश्यकता नहीं है।
यहाँ पर ईश्वराम्बा का तात्पर्य हम सभी से है। हम सभी एक ही अमर दिव्य आत्मा के पुत्र हैं। पुट्टपर्ती हमारा शरीर है । वे भक्त जो कि अत्यन्त उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हैं, वास्तव में और कोई नहीं वरन् हमारी इन्द्रियाँ ही हैं| फल, फूल और भेंट हमारे कर्म हैं । शुद्ध हृदय वाली सीता के समान स्त्रियाँ हमारी शक्तियाँ है जो कि प्रत्येक व्यक्ति में निहित हैं , जैसे इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति, विचार शक्ति, वाक् शक्ति इत्यादि । हम जो भी कर्म करते हैं वह सभी इन्हीं शक्तियों पर ही निर्भर करते हैं ।
इस प्रकार यदि हम अपने अन्तर में स्थित ईश्वर को जाग्रत करने का प्रयास करें। उसकी उपस्थिति का हमें आभास रहे तो हम एक न एक दिन अवश्य ही ज्ञान, विज्ञान, सुज्ञान और प्रज्ञान के आलोक से प्रकाशित “उसके” (ईश्वर के) निवास को प्राप्त कर लेंगे अर्थात् हमारी मंजिल हमें मिल जायेगी।
यही सुप्रभातम् का आंतरिक अर्थ एवं महत्व है।