गुरू पूर्णिमा, आषाढ़ (जुलाई) के चंद्र मास में पूर्णिमा के दिन आध्यात्मिक गुरू को समर्पण दिवस के रूप में मनाई जाती है। हालाँकि, भगवान श्री सत्य साई बाबा ने औपचारिक रूप से 1956 में गुरू को सम्मानित करने की इस प्राचीन परंपरा को सभी आकांक्षियों द्वारा मनाए जाने वाले एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक उत्सव के रूप में पुनर्जीवित किया। यह एक दिवस समर्पित है- (क) गुरू को कृतज्ञता के साथ याद करने। (ख) गुरू की शिक्षाओं पर चिंतन करने। (ग) उनकी शिक्षाओं को दैनिक अभ्यास में लाने का संकल्प लेने।
इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, एक ऐसा दिन जब मानव जाति उन्हें वह कृतज्ञता प्रदान करती है जिसके वे अधिकारी हैं। ‘व्यासो नारायणो हरिः’: व्यास भगवान नारायण हैं, हरि। स्वयं भगवान नारायण, व्यास नामक ऋषि के रूप में आए, वेदों का मिलान करने और मनुष्य को ईश्वर की ओर जाने का मार्ग दिखाने के लिए।
इस खंड में ऋषि वेद व्यास की कहानी, इस त्यौहार को कैसे मनाया जाए, इस पर दिव्य संदेश, गुरू के महत्व का वर्णन करने वाली कहानियांँ, आकर्षक गतिविधि पत्रक और ऑनलाइन खेल शामिल हैं।