भरत की वापसी
राम के वन प्रस्थान करने के उपरांत राजा दशरथ दुःख से कातर होकर शय्यागत हो गए। निरन्तर राम सीता लक्ष्मण का नाम लेकर विलाप करते हुए एक दिन उन्होंने प्राणत्याग दिए। ये नाम मानो उनके जिव्हा पर गंगा जल समान प्रतीत हो रहे थे।
पूरा राज्य शोक में डूब गया। राम के वनवास जाने से, और अपने महाराज की मृत्यु से पूरे नगरवासी शोकाकुल थे। गुरू वशिष्ठ सभी को सांत्वना और ढारस बंधा रहे थे, और उन्होंने भरत और शत्रुघ्न को अतिशीघ्र लौटने का संदेश भेजा, जो उस वक़्त अपने नाना, केकय नगर के राजा के घर गए थे।
सन्देश मिलते ही वे दोनों भाई तुरन्त लौट आये।भरत को राज्य में प्रवेश करते ही सब कुछ विचित्र सा प्रतीत हुआ। कोई उनसे कुछ नहीं बोल रहा था। वे सीधे अपनी माता के महल की ओर गए। कैकेयी ने पूरे राजसिक ठाटबाट से उनके स्वागत की तैयारी की थी।
भरत का सर्वप्रथम प्रश्न था, “पिताश्री कहाँ हैं माता? वे सदा मेरे स्वागत के लिए खड़े रहते हैं। भ्राताश्री राम, लक्ष्मण भी दिखाई नहीं दे रहे?” कैकेयी ने उत्तर न देकर मंथरा से भरत को सारा वृतांत समझाने को कहा।
मंथरा पूरे उत्साह से आगे आयी और भरत को बोली, “कुमार, हमने आपके राज्याभिषेक की सम्पूर्ण तैयारी कर ली है, अब आपके राजा बनने के पथ के सभी कंटक हट गए हैं, और तुरन्त आपको अयोध्या के महाराज के मुकुट से सुशोभित किया जाएगा। ईश्वर की कृपा से हमारी सभी योजनाएं सफल हुई हैं। इसलिए राज्याभिषेक के लिए प्रस्तुत हो जाइये। परन्तु दुःख है कि आपके पिताश्री इस भव्य क्षण को नहीं देख पाएँगे, अकस्मात मृत्यु को प्राप्त होने के कारण।”
“आपने कैसे सोचा कि आपका पुत्र, एक क्षण के लिए भी राम से अलग रह पाएगा? यदि ऐसा आपने सोचा है तो आप मेरी माँ हो ही नहीं सकतीं। मुझे अपना यह चेहरा फिर कभी मत दिखाना, आपने इक्ष्वाकु वंश को बर्बाद कर दिया? मेरा और कोई स्थान नहीं है राम के चरणों के सिवा। मैं इसी क्षण राम को वापस लाने, वन में प्रस्थान कर रहा हूँ|”
ऐसा कहते हुए, भरत तीव्रता से कक्ष से बाहर चले गए। जब भरत क्रोधित हो रहे थे शत्रुघ्न मंथरा के बाल पकड़ कर उसको मारने लगे। भरत यह देखकर शांत हुए, और उन्होंने शत्रुघ्न को उस कुबड़ी स्त्री को जिसने इतने बड़ा प्रलय ला दिया था मारने से रोका।
दोनों भाई, फिर माता कौशल्या के पास गए जो इस दारुण दुःख से विदीर्ण थीं। भरत उनके चरणों मे गिर गए और विनती की, कि माता उन्हें गलत न समझें। उन्होंने कातर भाव से कहा इस षड्यंत्र की उनको कोई जानकारी न थी। कौशल्या ने बड़े स्नेह से कहा, “इस परिस्थिति के लिये कोई दोषी नहीं है मेरा स्नेह तुम्हारे लिए सदा रहेगा पुत्र|”
वशिष्ठ मुनि ने भरत को बुलावा भेजा और स्थिति को संभालने और सामान्य बनाने हेतु राज्य भार संभालने और राम के चौदह वर्ष के उपरांत वापस आने पर राज्य उनको सौंप देने की सलाह दी।
भरत इन बातों को तुरंत समझ नहीं पाए। परन्तु पिता के निधन की खबर ने उन्हें विस्मित कर दिया। वे विव्हल होकर बोले, “मुझे पिता की अस्वस्थता के समय क्यों नही बुलाया गया? मैं इस बात से भी आश्चर्यचकित हूँ कि मेरे बड़े भ्राताश्री के रहते मेरा राज्याभिषेक क्यों? आप सब मुझे पागल कर दे रहे हैं, माताश्री कृपया मुझे विस्तार से सब बतायें।”
कैकेयी ने वात्सल्य पूर्ण हाथ पुत्र के कंधे पर रखते हुए उज्ज्वल चेहरे से मन्थरा द्वारा रची चाल जिससे भरत को लाभ हो बताया, और उसके पिता को किस तरह वचन के षड्यंत्र में फंसा कर भरत को राजा और राम को वनवास देने की पूरी बात बताई।
भरत को धीरे-धीरे पूरी परिस्थिति का बोध हुआ ,क्रोध से लाल होकर अपनी माता को धक्का देते हुए, क्रोध से चीखे, “किस तरह की स्त्री हैं आप!! इतनी पाषाण हृदय कैसे हो सकती हैं आप?आपको यह अनुभव भी है कि आपका यह कार्य पिताश्री की मृत्यु का कारण है? आपने भ्राता राम को कैसे नुकसान पहुँचाने का सोचा? उन्होंने सदैव आपको अपनी माँ समान माना था? क्या आप अनुभव कर सकती हैं कि, कितना दर्द आपने सीता जैसी देवी को दिया है? आपको लगता है कि मुझे उस बंजर देश का राजा बनने का शौक होगा, जहाँ राम और सीता न रहते हों।
भरत ने शांतचित्त होकर उनकी बात सुनी पर दृढ़तापूर्वक बोले,मेरा विनम्र प्रणाम आप सभी को और आपके प्रिय सम्भाषण को, परन्तु मैं राजा के रूप मे यहाँ, एक क्षण भी नहीं रह सकता। मैं इसी क्षण वन में जाकर राम के चरणों मे गिरकर उनको वापस लाऊँगा और राज्य सौंप दूँगा। आप सभी से अनुरोध है,आप सब भी मेरे साथ चलें, राम को वापस लाने।
सभी अचंभित थे भरत की भक्ति, निष्कपटता, और त्याग देखकर। सभी प्रफ्फुलित थे राम के अयोध्या लौट आने के विचार से। भरत ने सभी मंत्रियों को वन प्रस्थान एवं राम के राज्याभिषेक संबंधित आवश्यकताओं को पूर्ण करने के उचित निर्देश दिए।
प्रश्न
- अयोध्या लौटने पर भरत की क्या प्रतिक्रिया हुई?
- भरत ने क्या किया, जब सबने उन्हें राजा बनकर राज्य चलाने की सलाह दी?