कर्मण्येवाधिकारस्ते
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श्लोक
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा, ते संङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।
भावार्थ
वेदों के अनुसार कर्म पर तुम्हारा अधिकार है, परन्तु कर्म के फल पर नहीं। कर्मफल प्राप्त करना तुम्हारे कर्मों का, कार्यों का उद्देश्य नहीं होना चाहिए। इसी समय भगवान हमें सतर्क करते हैं कि कर्मफल त्याग का तात्पर्य यह कदापि नहीं है, कि हम कर्म (कार्य) करना ही त्याग दें तथा पूर्णतया निष्क्रिय बन जाएंँ।
व्याख्या
कर्मणि | कर्म में, कार्य में |
---|---|
अधिकारस्ते | (अधिकार: + अस्ति) अधिकार है। |
मा | नहीं। |
फलेषु | उसके फल में। |
कदाचन | कभी भी। |
कर्मफल | कर्मों के फल। |
हेतु: | उद्देश्य। |
भू: | हो, स्वीकार कर। |
ते | तुम्हारा। |
संगो | संग,आसक्ति। |
अकर्मणि | निष्क्रियता, कर्म न करना। |
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