वेदानुद्धरते
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श्लोक
- वेदानुद्धरते जगन्निवहते भूगोलम् उद्बिभ्रते।
- दैत्यं दारयते बलिम् छलयते क्षत्रक्षयं कुर्वते।।
- पौलस्त्यं जयते हलं कलयते कारुण्यमातन्वते ।
- भ्लेछान्मूर्चयते दशाकृतिकृते कृष्णाय तुभ्यं नमः।।
भावार्थ
यह स्तुति भगवान विष्णु की है। जिन्होंने अपने भक्तों की प्रार्थना पर, जब-जब उन पर (भक्तों पर) अधर्म की विपदा पड़ी, तब-तब उनकी रक्षा हेतु, विभिन्न रूपों में अवतार लिया। इस श्लोक में उनके दस प्रमुख अवतारों का वर्णन है। वेदों में ऐसा वर्णन किया गया है कि भगवान विष्णु ने वेदों का उद्धार करने के लिए मछली (मत्स्यावतार) के रूप में अवतार लिया, डूबती हुई पृथ्वी को बचाने के लिये शक्तिशाली कछुए (कूर्म) के रूप में अवतार लेकर उसका भार अपनी पीठ पर उठाया, विश्व की रक्षा के लिए वाराह अवतार धारण किया, दैत्य हिरण्यकश्यपु का संहार करने के लिए नरसिंह अवतार, बलि को पाताल पहुँचाने के लिए वामन अवतार, क्षत्रियों के अहम् को नष्ट करने के लिए परशुराम अवतार, रावण का वध करने के लिए रामावतार, और कंस का वध करने के लिए कृष्णावतार लिया! करुणा सिंधु बनकर बुद्ध अवतार और दुष्टों में समाई दुष्टता को दूर करने के लिए कल्कि अवतार लिया। हे! दशावतारी (कृष्णरुपी) भगवान (विष्णु) मैं आपकी शरण में हूँ, मेरी रक्षा कीजिये। आपको मेरा प्रणाम है।
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व्याख्या
वेदान् | वेदों का! |
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उद्धरते | उद्धार करने के लिए! |
जगन्निवहते | जगत् (विश्व) का भार वहन करने वाले! |
भूगोलम् | पृथ्वी |
उद्बिभ्रते | ऊपर उठाकर रखने वाले! |
दैत्यं | राक्षस! |
दारयते | चीरना, मारना! |
बलिं | राजा बली |
छलयते | फँसाना, धोखा देना, छल करना! |
क्षत्रक्षयं | क्षत्रियों का नाश! |
कुर्वते | करने वाला | |
पौलस्त्यम | पुलस्त्य का पुत्र रावण! |
जयते | विजय |
हलम् | कृषि में उपयोगी एक प्रकार का औजार! |
कलयते | किया |
कारुण्यमातन्वते | करुणामय! |
म्लेछां | दुष्ट अथवा निम्न प्रकृति के लोग! |
मूर्चयते | बेहोश करना! |
दशाकृतिकृते | दस आकार धारण करने वाले! |
कृष्णाय | आकर्षक, भगवान कृष्ण! |
तुभ्यं | आप को |
नमः | नमस्कार है| |
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