भारत की सांस्कृतिक परम्पराएँ और रीतियाँ
किसी भी राष्ट्र के नागरिकों की सांस्कृतिक परम्परा एवं रीति-रिवाज उस देश के ऐतिहासिक आदर्श तथा मूल्यों पर आधारित रहते हैं। देश ने इन्हें अपने इतिहास में संजोया और विकसित किया है। देश के वे आदर्श और मूल्य जो कभी बड़े जनप्रिय थे उन्हें बनाये रखने का सतत प्रयास किया गया और वे ही कालान्तर में व्यक्ति के स्वभाव, रीति-रिवाज तथा आचार-व्यवहार में समाहित हो गये। वस्तुतः ये हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिबिम्ब हैं। ऐतिहासिक घटनाओं का लोगों के जीवन पर अवश्यंभावी प्रभाव पड़ता है। हमारे देश में भी ऐसा हुआ है। राजनीतिक एवं आर्थिक उतार-चढ़ाव तो भारत में भी हुए हैं परन्तु हमारी सांस्कृतिक जीवन शक्ति ऐसी थी कि, उसकी मूलभूत बातें अत्यधिक सुदृढ़ होने के कारण आज तक वैसी की वैसी हैं। यही कारण है कि इतिहास के उतार-चढ़ाव में भारतीय संस्कृति जीवित रह सकी तथा उसकी मूल आत्मा अप्रभावित रही। पाँच हजार वर्ष पहले जो दर्शन हमारे पूर्वजों को प्रभावित करता था वह आज भी हमारे अस्तित्व को उद्देश्यपरक एवं सार्थक बना रहा है।
इस विशाल देश के विभिन्न क्षेत्रों में जीवन जीने के तरीके अलग-अलग हैं परन्तु कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोगों की सांस्कृतिक बुनियाद आध्यात्मिक ही है। असीम का आभास अर्थात अनादि अनन्त का दर्शन इस देश की अपनी विशेषता है। बाबा कहते हैं “भारत की संस्कृति हृदय से उत्पन्न हुई है। अतएव ईश्वर और उसकी सृष्टि को प्रेम करना ही इसका मूल सिद्धान्त है।” भारतीय परम्परा में भौतिकता की नहीं अपितु आध्यात्मिकता की प्रधानता है। बिना ईश्वर से संबंध जोड़े भौतिकवाद अपूर्ण और अर्थहीन होता है। भारतीय विचारों के अनुसार सत्य के परिप्रेक्ष्य में ही सभी चीजों को देखना चाहिए। सभी से अपना आध्यात्मिक संबंध रखना और सभी प्राणी एक समान हैं की भावना लेकर अनेकत्व में एकता को देखना अर्थात् सभी में ईश्वर का दर्शन करना आदि कुछ ऐसे सिद्धान्त हैं जो युगों से इस देश की संस्कृति के पोषक और आधार रहे हैं। बाबा ने पूछा जब तुम्हारा पैर किसी को लग जाता है तब तुम झुककर उसी हिस्से को छू कर क्यों नमस्कार करते हो? इसलिए कि भारतीयों का यह विश्वास है कि ईश्वर सर्वव्यापी है अत: सब चीजें शुद्ध और पवित्र हैं।
सामान्य तौर पर चर्चा करने पर ‘संस्कृति’ शब्द की कोई सीमित परिभाषा नहीं हो सकती। डॉ. वी. के. गोकाक ने हमें इसकी तर्कसंगत सुन्दर परिभाषा दी है। “संस्कृति, ज्ञान, विश्वास, रीति-रिवाज, नैतिक व आध्यात्मिक इत्यादि गुणों से इस तरह गुथी हुई है कि जो कुछ भी सत्यं, शिवं, सुन्दरं है वह इसमें समाहित हो गया है। इस सन्दर्भ में भारतीय संस्कृति बहुत व्यापक है।”
यद्यपि भारतीय संस्कृति की अपनी अद्वितीय प्राचीन विशेषताएंँ हैं फिर भी वह कभी भी विदेशी संस्कृति की विरोधी नहीं रही। इसने इस्लामी, पर्तुगाली, फ्रेंच और विशेष रूप से ब्रिटिश संस्कृति को भी स्वीकार किया था। भारतीयों ने भिन्न धर्म व संस्कृति वाले बाहरी देशों के लोगों के लिए कभी भी अपने दरवाजे बन्द नहीं किये। किसी धर्म के विकास में भारत बाधक नहीं बना, बल्कि अपने धर्म के प्रचार हेतु आने वाले विदेशियों का यहाँ सदैव स्वागत किया गया। भारतीयों ने यहूदी तथा पारसी धर्मावलम्बियों का भी स्वागत किया जिनको विश्व में सब जगह प्रताड़ित किया गया। यह कहा जाता है कि भारत की संस्कृति अपने मूलरूप में तो भारतीय है परन्तु अपनी उदारता एवं व्यापकता के कारण बहुत सी संस्कृतियों को उसने आत्मसात किया है। विदेशी संस्कृतियों का विशेष प्रभाव भारतीयों की ललित कलाओं, भाषा, उत्सव एवं रीति-रिवाज आदि पर पड़ा है।
हमारे देश की भौगोलिक रचना का मोटे तौर पर हमारी संस्कृति पर बड़ा असर हुआ है। हमारे भोजन और वस्त्र की आदतें स्थान-स्थान पर मिन्न-भिन्न हैं। भारत विश्व का सातवां बड़ा देश है। यह लगभग 3287782 वर्ग मील फैला है। भारत की बड़ी समुद्रीतटीय रेखा 6100 किलोमीटर लम्बी है। पूरे भारत को प्रमुख रूप से चार क्षेत्रों में बांँटा जा सकता है। उत्तर में उत्तर पूर्वी पर्वत श्रृंखलाएँ, फिर गंगा-सिन्धु का मैदानी भाग, प्रमुख मरुस्थली क्षेत्र, दक्षिण का समुद्रतटीय क्षेत्र। महत्वपूर्ण नदियों में हिमालय से निकली, दक्षिण भारत, समुद्रतटीय तथा देश के भीतरी भाग की नदियांँ आती हैं। इस तरह भारत में अनगिनत विभिन्नताएँ हैं। भारत में जीव-जन्तु वनस्पतियों के भी अनेक प्रकार हैं। भारत में 83 प्रतिशत जनता हिन्दू धर्म को मानती है। शेष लोग इस्लाम, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी आदि धर्मों के अनुयायी हैं। बहुत थोड़ी संख्या यहूदी धर्मावलम्बियों की भी है। भारत की जनसंख्या का बहुत कम भाग शहरों में रहता है और लगभग 70 प्रतिशत लोग गाँवों में रहते हैं।
अतः हमें भारत की सांस्कृतिक परम्परा, रीति-रिवाज और आचार व्यवहार आदि की चर्चा करते समय उसकी भौगोलिक विविधता व जनसंख्या के इस बँटवारे को भी ध्यान में रखना चाहिए।