श्री सत्य साई एजुकेयर – वैश्विक शांति एवं खुशी का मार्ग
यह वास्तव में आधुनिक समय का एक रहस्य है कि जीवन में हमारे सभी प्रयास शांति और खुशी की ओर निर्देशित होते हैं, लेकिन वे दूर के भ्रामक लक्ष्य बन गए हैं, जिन्हें हम कभी प्राप्त नहीं कर सकते। सुख तथा शांति की खोज में, यद्यपि मनुष्य ने भौतिक समृद्धि में नए मील के पत्थर हासिल किए हैं; तथापि वास्तविकता यह है कि मनुष्य लगातार दुखी होता जा रहा है।
कभी-कभी यह तर्क दिया जाता है कि गरीबी और शारीरिक विकलांगता मानव दुख का मुख्य कारण है। फिर भी, प्रचुर धन या शारीरिक कौशल जीवन में पूर्णता या खुशी की भावना प्रदान करने में विफल रहे हैं। चाहे व्यक्तिगत जीवन हो अथवा परिवार, चाहे राष्ट्र के भीतर हो या वैश्विक स्तर पर, हम पाते हैं कि वातावरण नकारात्मकता से भरा है, सद्भाव की कमी है। विडंबना यह है कि शांति के नाम पर युद्ध लड़े जा रहे हैं।
यह वास्तव में एक आश्चर्यजनक पहेली है कि शांति व प्रेम का प्रतीक मनुष्य, हमेशा अपने बाहर उस मायावी शांति की तलाश और लालसा करता रहता है। शांति, सद्भाव और खुशी कोई दार्शनिक अवधारणा नहीं है जिसे किताबों से सीखा और याद किया जा सके; न ही उन्हें विभिन्न प्रणालियों, रणनीतियों अथवा अनुष्ठानों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। मानवीय इच्छाओं तथा आकांक्षाओं के उत्तर के लिए, हम भगवान श्री सत्य साईं बाबा, विश्व गुरू के अद्वितीय संदेश की ओर देखने के लिए बाध्य हो रहे हैं, जिन्हें अब मानव जाति आधुनिक युग के सार्वभौमिक शोधक के रूप में पहचानती है।
2 फरवरी 1958 को छात्रों को संबोधित करते हुए बाबा ने कहा था, ‘वर्तमान शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य आपको कमाने वाला और नागरिक बनाना है, लेकिन यह आपको सुखी जीवन का रहस्य अर्थात अवास्तविक और वास्तविक के बीच का भेद नहीं बताती।’
12 सितंबर 1963 को उन्होंने पुनः कहा, ‘शिक्षा केवल जीवन जीने के लिए नहीं है, यह जीवन के लिए है – एक पूर्ण, सार्थक, अधिक सार्थक जीवन। यदि यह मात्र लाभकारी रोजगार के लिए है तो इसमें कोई बुराई नहीं है, लेकिन शिक्षित लोगों को यह समझना चाहिए कि अस्तित्व ही सब कुछ नहीं है, लाभकारी रोजगार ही सब कुछ नहीं है। आज जरूरत इस बात की है कि हम अच्छी गुणवत्ता वाला जीवन जिएंँ। उत्कृष्ट चरित्र तथा अच्छे आचरण का पालन-पोषण दुनिया की जरूरत है।’
प्राचीन संस्कृति में, हमारे बच्चों को सिखाया जाने वाला पहला पाठ यह था कि हम सभी दिव्य हैं, कि ‘ईश्वर और मैं एक हैं।’ जीवन में एक बच्चे की यात्रा पूरे ब्रह्मांड के साथ एक अभिन्न संबंध की समझ के साथ शुरू होती है, कि दिव्य ब्रह्मांडीय ऊर्जा, चैतन्य, हमारे सहित पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है।
बच्चे के लिए खुशी और आनंद स्वाभाविक हैं; वे उसका अंतर्निहित स्वभाव हैं। फिर भी, जब बच्चा बड़ा हो जाता है, तो प्राकृतिक आनंद और शांति को बनाए रखने की कला और कौशल खो जाता है। भगवान बाबा बताते हैं कि यह हमारे बाहर होने वाली किसी भी चीज़ का परिणाम नहीं है। जब मन अंतर्निहित दिव्यता के साथ अपने संबंध को अनदेखा करता है, और दुनिया को अपनी इंद्रियों की विशेषताओं के माध्यम से देखता है, तो वह अपनी शांति तथा खुशी को इंद्रियों की अनियमितताओं के लिए गिरवी रख देता है।
मन विचारों का केंद्र है, जो पाँच इंद्रियों एवं पाँच गुणों द्वारा निर्मित है। जब तक प्रेम के प्रकाश के बिना मन में विचार अनुभव किए जाते हैं और प्रक्रिया करते हैं, तब तक मनुष्य भ्रम की दुनिया का अनुभव करता है। जैसे ही मन में उठने वाले इन विचारों को प्रेम के प्रकाश में परिलक्षित किया जाता है, सत्य और भ्रम के बीच का भेद प्रकट होता है। इसका परिणाम विचार, वचन तथा कर्म की एकता में परिणित होता है, जो प्रेम, सत्य, धर्म, शांति और अहिंसा के अंतर्निहित मानवीय मूल्यों को व्यवहार में लाता है।
श्री सत्य साई एजुकेयर, अपने भीतर के दिव्यत्व की निरंतर एकीकृत जागरूकता में रहने के साधन, ज्ञान और तकनीक को प्रकट करता है। इस ज्ञान तथा कौशल को व्यवहार में लाकर, मनुष्य प्रेम की अपनी जन्मजात शक्ति को प्रकट करने में सक्षम होता है, जो उसे शांति और खुशी प्रदान करती है।