श्री रामकृष्ण परमहंस का जीवन तथा शिक्षाएँ
लगभग 150 से भी अधिक वर्ष पहले, भारत की पवित्र भूमि को एक आध्यात्मिक गुरू का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था, जिन्होंने अपने जीवन द्वारा शिक्षा दी और एकत्व की सत्यता का अनुभव किया। ये कोई और नहीं बल्कि श्री रामकृष्ण परमहंस थे। उन्होंने इस बात में विश्वास रखते हुए कि राधा और कृष्ण (भक्त और भगवान) एक हैं, अद्वैतवाद को प्राप्त किया। जब उन्होंने रामायण पढ़ी, तो उन्होंने हनुमान का अनुकरण करने एवं भगवान और भक्त के बीच वही एकता लाने की कोशिश की।
स्वामी कहते हैं कि परमात्मा की पूजा हृदय से होनी चाहिए। जब हृदय से भक्ति प्रवाहित होती है तो मौन रहकर परमात्मा की आवाज का अनुभव किया जा सकता है। यह रामकृष्ण का अनुभव था। वे किसी भी क्षण ईश्वर की वाणी की प्रतीक्षा में पूर्ण मौन रहते थे। जब वाणी संयमित होती है, तो भीतर की आत्मा की आवाज स्वयं सुनाई देती है।
इस खंड में श्री रामकृष्ण परमहंस के जीवन की घटनाएंँ सम्मिलित हैं जो बालविकास के समूह 3 के पाठ्यक्रम का एक हिस्सा हैं।