इच्छाओं पर नियंत्रण
इच्छा का अर्थ है, किसी भी वस्तु के लिए, चाह रखना, जो हमे खुशी और आनंद दे। इच्छाएँ, यात्रा के दौरान लिए जाने वाले सामान की तरह होती हैं। “कम सामान सुखद यात्रा”। इसलिए धीरे-धीरे अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना सीखो, कम सामान तुम्हारी जीवन – यात्रा को सुखद और शांतिपूर्ण बनाएगा।
भगवान बाबा
इच्छाऐं हमे भ्रमित करतीं हैं, क्योंकि हम यह विश्वास करते हैं कि,
- वो पूरी होने पर समाप्त हो जाएँगीं।
- उनके पूर्ण होने पर संतोष मिलेगा।
स्वामी कहते हैं, ये धारणा बिल्कुल गलत है:
मानव जाति को समझना आवश्यक है, कि इच्छाओं के बढ़ने से खुशियाँ, गायब होने लगती हैं। इच्छाओं की कोई सीमा नही होती। चींटियों की बाम्बी की तरह वो बढ़ती रहती हैं। इच्छाओं की पूर्ति के बाद, कितनी भी खुशी, और आनंद प्राप्त अथवा महसूस, क्यों न हो, कभी पूर्ण संतोष प्राप्त नहीं होता।
“सबसे निर्धन व्यक्ति कौन?? जिसके पास सर्वाधिक इच्छाएँ, वो सबसे निर्धन। सबसे धनवान कौन? जिसके पास सन्तोष है, वो विश्व में सबसे, धनवान होता है।” -बाबा
विश्व में हर वस्तु सीमाओं मे आबद्ध होती है। जैसे स्वस्थ मनुष्य का शारीरिक तापमान 98.4F होता है, उससे अधिक होने पर वो ज्वर से पीड़ित होता है। जब रक्तचाप और मधुमेह की सीमा बढ़ जाए, तब शरीर बीमारी से ग्रसित होने लगता है।
एक बिजली की चकाचौंध, या फ़्लैश बल्ब जलने से स्वतः आपकी आँखें बंद हो जाती हैं, कारण वो अधिक रोशनी सहन नहीं कर पातीं। कान के पर्दे भी तेज ध्वनि बर्दाश्त नहीं कर सकते, उनको रुई के फाहों से बचाना पड़ता है। इससे ज्ञात होता है कि हमारा शरीर लिमिटेड कंपनी है, इसी तरह हमारी इच्छाओं को भी नियंत्रित रखना चाहिए। [दिव्य सम्भाषण-1983]
इच्छाओं पर नियंत्रण आवश्यक है, स्वस्थ सुन्दर जीवन हेतु। अनावश्यक इच्छाएँ, दुःख का कारण होती हैं। आध्यात्मिक पथ की ये सबसे बड़ी बाधक हैं। ये इच्छाएँ, हमारी खुशियों और सेहत के लिए हानिकारक हैं। इच्छाओं को कम करने से इच्छाओं पर नियंत्रण हासिल होगा। इच्छाओं के बीज को भून देने से, वो दोबारा अंकुरित नहीं होंगे।
शास्त्र और पुराण इच्छाओं पर नियंत्रण को बहुत महत्व देते हैं। इच्छाओं से इच्छाएँ जन्म लेती हैं।इच्छाएँ पूरी हों, तो मोह का जन्म होता है। इच्छाएँ पूरी न हों तो, क्रोध और द्वेष की उत्पत्ति होती है। परिणामस्वरूप, अंत में मानवीय मूल्य समाप्त हो जाते हैं।
इन असीमित तथा व्यर्थ की इच्छाओं को कैसे दूर किया जा सकता है, इस संदर्भ में बाबा ने निम्नलिखित निर्देश-बिंदुओं पर ज़ोर दिया है:
- जीवन का ए.बी.सी है हमेशा सावधान रहो।(ऑलवेज बी केयरफुल)। कुसंगति से दूर रहो।
- बुरा मत देखो, जो अच्छा हो वो देखो।
बुरा मत सुनो, अच्छा ही सुनो।
बुरा मत बोलो, अच्छा बोलो।
बुरा मत सोचो, सोचो जो अच्छा हो।
बुरा मत करो, सदैव भला करो।
इच्छाओं पर नियंत्रण एक ऐसा औज़ार है, जो इन चार बिंदुओं के प्रयोग से असीमित इच्छाओं को कम करने मे अत्यधिक प्रभावी है।
- धन
- अन्न
- समय
- ऊर्जा
समय, ऊर्जा, धन एवं अन्न ऐसे संसाधन मनुष्यों को उपहार स्वरूप मिले हैं। ये पवित्र संसाधन स्वयं ईश्वरीय स्वरूप हैं।
1. समय ईश्वर है। समय का अपव्यय करना जीवन का अपव्यव होता है।
ईश्वर को कालाय नमः, कालकालाय नमः, कालातीताय नमः, काल स्वरूपाय नमः, कहा गया है। अपने समय को बर्बाद नहीं करो, उसे शुद्ध शब्दों से परिपूर्ण रखो।
[भगवान बाबा – समर शॉवर 1993]
2. ऊर्जा ही ईश्वर है।
क्रोध, मोह, बुरे विचार, मनुष्य की शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति को क्षीण कर देते हैं। “अपनी उर्जा, व्यर्थ की बातों में, बुरे विचारों में, बेकार की बातें सुनने में और बुरे कर्मों में व्यर्थ न गवाओ”।
– [समर शॉवर 1993]
3. धन ही ईश्वर है।
“ईश्वर ही धन है”, चूँकि ईश्वर धन है, तो धन का अपव्यय करना दुष्कर्म होगा। धन, अन्न, वस्त्र, घर, आदि, उसे आडंबर प्रदर्शन में खर्च करने की अपेक्षा दान देने की प्रवृत्ति रखो। धन का अपव्यय, गलत ही नहीं घोर पाप भी होगा”
– [समर शॉवर 1993]
4. अन्न ब्रम्ह है।
किसी एक भी व्यक्ति की थाली में छोड़ा गया भोजन,एक भूखे बालक की क्षुधा मिटा सकता है। “अन्न का अपमान मत करो, अन्न ईश्वर है।”
तुम्हारा शरीर, अन्न के द्वारा निर्मित होता है, और तुम्हारे शरीर का निर्माण, तुम्हारे माता पिता द्वारा ग्रहण किये भोजन से। ‘अन्नम ब्रम्हम्’ (अन्न ब्रम्ह है)। ‘मीठा थिंदी, अति है’, अर्थात सीमित भोजन देता असीम सुख, स्वामी कहते हैं। उतना ही भोजन खाओ जितना जरूरी हो। कभी थाली में खाना नहीं छोड़ना, या उसे मत फेंकना।
– [समर शॉवर 1993]
एक बार कारुण्यानंद स्वामी ने भगवान बाबा से कहा,”स्वामी! आप तो मानव शरीर में साक्षात् ईश्वर हो और आपके सामने दीवार के उस पार, बच्चे और कुत्ते, झूठन और कचरे के ढेर में से रोटी छीनते हुए लड़ रहे हैं, ऐसा क्यों स्वामी?”
भगवान ने उत्तर दिया, “इन्होंने अपने पूर्व जन्म में ऐशोआराम की जिंदगी जी है। उन्होंने उंस जीवन मे भरपूर भोजन के सुख देखे हैं, तथा सभी अनुपम भोजन की तश्तरियों से, थोड़ा थोड़ा चख कर, कीमती भोजन बर्बाद कर कूड़ेदान में ज्यादा फेंका था। इस जन्म में अब वे, वही भोजन कूड़ेदान से, ढूंढ ढूंढ कर खा रहे हैं।
आर्थिक दृष्टिकोण से संसाधन का सही उपयोग करना, निस्वार्थता, मिल बाँट कर सभी संसाधन प्रयोग में लाना, ये आवश्यक मूल्य हैं इच्छाओं पर नियंत्रण के। पालक, गुरू, शिक्षक को चाहिये कि इन पर आधारित मूल्य परक कहानियों द्वारा बच्चों के मस्तिष्क में, इच्छाओं पर नियंत्रण की, आवश्यकता को स्थापित करें।