कराग्रे वसते
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श्लोक
- कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
- करमूले तु गोविन्द प्रभाते कर दर्शनम्॥
भावार्थ
हमारी हथेली के अग्रभाग में, सम्पत्ति की देवी लक्ष्मी का वास है, हथेली के मध्यभाग में देवी सरस्वती निवास करती हैं तथा हथेली के मूलभाग में भगवान् गोविंद जो प्राणीमात्र की रक्षा करते हैं, का वास होता है और इस प्रकार का विचार कर नेत्रों के सम्मुख मूर्ति का ध्यान करते हुए प्रातः काल में हथेलियों का दर्शन करना चाहिए|
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व्याख्या
कर + अग्रे | हाथ के आगे के भाग (अंगुलियों) पर |
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वसते | रहते |
लक्ष्मी | सम्पत्ति की देवी – लक्ष्मी |
करमध्ये | हथेली के बीच |
सरस्वती | ज्ञान तथा विद्या की देवी सरस्वती |
करमूले | हथेली के मूल भाग में, आरम्भ में (जहां से हथेली शुरु होती है) |
तु | मात्र |
गोविन्द | भगवान् विष्णु, प्रत्येक प्राणी का रक्षक व पालनकर्त्ता |
प्रभाते | सुबह, जब हम सोकर उठते हैं, प्रातः काल |
करदर्शनम् | हथेली या हाथ का दर्शन |
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