परित्राणाय साधूनां
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श्लोक
- परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
- धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ||
भावार्थ
सज्जनों की रक्षा व उद्धार करने के लिए एवं दुष्ट कर्म करने वाले दुर्जनों के विनाश के लिए तथा धर्म की पुनर्स्थापना के लिए मैं प्रत्येक युग में अवतरित होता रहता हूँ।
व्याख्या
परित्राणाय | रक्षा करने के लिये |
---|---|
साधूनां | सज्जनों की |
विनाशाय | नाश करने के लिये |
दुष्कृताम् | दूषित कर्म करने वाले दुष्ट व्यक्ति |
धर्म संस्थापनार्थाय | धर्म की स्थापना करने के लिये |
संभवामि | प्रकट होता हूँ, जन्म लेता हूँ |
युगे-युगे | हर युग में, समय-समय पर। |
Overview
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- Duration: 10 weeks
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