सत्त्वं रजस्तम
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श्लोक
- सत्त्वं रजस्तम इति गुणा: प्रकृति संभवा:।
- निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्।।
भावार्थ
हे ‘अर्जुन! सत्व, रजस और तम तीनों गुण प्रकृति से ही पैदा होते हैं। ये गुण अविनाशी जीवात्मा को शरीर से बांँध देते हैं।
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व्याख्या
सत्वम् | सत्वगुण |
---|---|
रज: | रजो गुण |
तम: | तमो गुण |
इति | ये (गुण) |
प्रकृति सम्भवा: | प्रकृति से उत्पन्न होने वाले |
निबध्नन्ति | बाँधना |
महाबाहो | हे शक्तिशाली (अर्जुन) |
देहे | शरीर में |
देहिनम् | जीवात्मा |
अव्ययम् | अविनाशी |
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- Language: English
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