मनोजवं
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श्लोक
- मनोजवं मारुततुल्यवेगं
- जितेंद्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
- वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
- श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये॥
भावार्थ
जिनकी गति, मन के समान तथा वेग वायु के समान है, जिन्होंने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली है, जो बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, पवन के पुत्र एवं वानरों की सेना के मुखिया हैं तथा श्री रामचन्द्र के दूत हैं। ऐसे हनुमान जी की मै शरण लेता हूँ और उन्हें प्रणाम करता हूँ|
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व्याख्या
मनोजवं | मन के सदृश्य तीव्र गति वाले| |
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मारुततुल्यवेगं | मारुत – हवा, वायु। तुल्य – समान। वेग – गति। वायु के समान गतिवाला |
जितेंद्रियं | इन्द्रियों को अपने वश में करने वाले! |
बुद्धिमतां | बुद्धिमानों में |
वरिष्ठम् | सर्वश्रेष्ठ |
वातात्मजं | वायुपुत्र अर्थात् हनुमान । |
वानरयूथमुख्यं | वानर समुदाय के प्रमुख! |
श्रीराम दूतम् | श्री राम के दूत! |
शरणम् प्रपद्ये | शरण में जाना! |
Overview
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- Language: English
- Duration: 10 weeks
- Skill level: Any level
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