रोल-प्ले, दैनिक जीवन अथवा इतिहास से किसी विशेष स्थिति से संबंधित एक नाटकीयता है।। 5 से 8 के समूह में छात्रों को लगभग 5 मिनट, स्थिति या घटना का अभिनय करने के लिए कहा जा सकता है। इसमें, गुरू अपने प्रारंभिक विचार दे सकते हैं। तैयारी के दौरान भी शिक्षक कोई सुझाव दे सकते हैं या वहांँ सुधार कर सकते हैं। आम तौर पर, तैयारी के लिए केवल 10 से 15 मिनट का ही समय दिया जा सकता है ताकि सहजता को बढ़ावा मिले। किसी विशेष प्रभाव जैसे रंगमंच की सामग्री, पोशाक आदि की आवश्यकता नहीं है।
प्रत्येक रोल-प्ले के बाद एक चर्चा होनी चाहिए जिसमें मूल्य या उप-मूल्य को सामने लाने के उद्देश्य से स्थिति या घटना का विश्लेषण किया जाए। यह काफी हद तक छात्रों के आयु समूह तथा गुरू की कक्षा में परस्पर बातचीत को पर निर्भर करेगा। कक्षा में मार्गदर्शन एवं पूछताछ सरल पुनरावृत्ति से शुरू होनी चाहिए तथा उत्तरोत्तर, मूल्य पहचान व निर्णय की ओर ले जानी चाहिए। नाटक के लिए शीर्षक आमंत्रित किया जा सकता है; शीर्षक में हमेशा एक मूल्य अंतर्निहित होता है।
समूह परिचर्चा का उद्देश्य है-
- विद्यार्थियों को स्वयं उत्तर खोजने के लिए प्रोत्साहित करना।
- नैतिक विकास के उच्च स्तर पर तर्क-वितर्क की सुविधा प्रदान करना।
- संचार कौशल में सहनशीलता एवं दयालुता को बढ़ावा देना।
- विकल्प की प्रस्तुति में सावधानी बरतने तथा निर्णय का उपयोग करने का सुझाव देना।
- 5. सुरक्षित वातावरण में नैतिक मुद्दों को उठाने का अवसर प्रदान करना।
सीखना एक धीमी प्रक्रिया है; इसलिए यह सलाह दी जाती है कि बलपूर्वक या अचानक निष्कर्ष निकालने पर जोर न दें। भूमिका निभाने की गतिविधि को शिक्षण प्रक्रिया में एकीकृत किया जाना चाहिए ताकि समय के साथ विद्यार्थियों का रवैया स्पष्ट रूप से बदल जाए।
[संदर्भ: मानव उत्कृष्टता की ओर, शालाओं के लिए श्री सत्य साई शिक्षा, पुस्तक 3 – पांँच शिक्षण तकनीकें, सत्य साई शिक्षा संस्थान, धर्मक्षेत्र]