अहंवैश्वानरो
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श्लोक
- अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रित:।
- प्राणापानसमायुक्त: पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ।।
भावार्थ
“मैं (कृष्ण) ही सब प्राणियों के शरीर में रहने वाले प्राण और अपान वायु से संयुक्त वैश्वानर अग्निरूप होकर निम्न चार प्रकार के भोजन पचाता हूँ |”
चार प्रकार के अन्न :
- भक्ष्य – चबाकर खाया जाने वाला, जैसे रोटी आदि।
- भोज्य – जिसे निगला जाता है, जैसे दूध आदि।
- लेह्य – जिसे चाटना पड़ता है, जैसे चटनी मधु आदि।
- चोष्य – जिसे चूसना पड़ता है, जैसे आम, गन्ना आदि।
व्याख्या
अहं | मैं |
---|---|
वैश्वानर | अग्नि |
भूत्वा | होकर |
प्राणिनाम् | सभी जीवित प्राणियों के देह में। |
देहम् | शरीर |
आश्रित | स्थित रहना, जो आश्रय में है। |
प्राणापान समायुक्तः | जो प्राण एवं अपान से युक्त है। |
पचामि | पाचन करता हूँ। |
अन्नम् | भोजन |
चतुर्विधम् | चार प्रकार के। |
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